स्कूलो मे योग शिक्षा सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

स्कूलो मे योग शिक्षा

छत्तीसगढ के शिक्षा विभाग ने बाबा रामदेव के सुझाओ को मानते हुए 2005 के शिक्षा सत्र से योग शिक्षा को स्कूलो मे सम्मिलित किया था, इसके आदेश के साथ ही राज्य शैक्षणिक अनुसन्धान परिषद ने 1 से 12 तक के छात्रो के लिये योगासनो की सूची जारी की थी और पूरे प्रदेश मे मास्टर ट्रेनर तैयार किये गये थे . ये मास्टर ट्रेनर प्रत्येक स्कूल के एक शिक्षक को योग पाठ्यक्रम की शिक्षा भी दिये थे तकि शिक्षक बच्चो को योग सिखा सके .

इस पाठ्यक्रम को जीवन विज्ञान का नाम दिया गया जिसमे प्रार्थना सभा व कालखण्डो मे जीवन विज्ञान व योग की गतिविधियो को सिखाने का निर्देश था . पर दुर्ग जिले को छोडकर छत्तीसगढ के किसी भी जिले के स्कूलो मे यह पाठ्यक्रम शासन के निर्देशो के बावजूद लागू नही किया जा सका .
दुर्ग जिले मे यह पाठ्यक्रम सही ढंग से चल रहा है इसके लिये जिले के 11 शिक्षक राजस्थान के लाडलू मे 20 दिन की विशेष प्रशिक्षण लेकर आये है . जिले मे पाठ्यक्रम के सही संचालन के लिये पोरवाल चेरिटबल ट्रस्ट व जीवन विज्ञान अकादमी दुर्ग के स्वयंसेवक सहयोग कर रहे है और जिले के स्कूलो मे अनुलोम विलोम व कपाल भांति धीरे धीरे छाने लगा है .

पूरे राज्य के एक जिले ने इसके लिये प्रयास किया पर इस सद प्रयास को राजनीति का ग्रहण लगने वाला है . जिले के कतिपय नेताओ द्वारा इसे स्कूली बच्चो को धर्म विशेष से जोडने का प्रयास है कह कर सरकार पर आरोप लगाये जा रहे है . चिंता और प्रबल हो जाती है जब जिले के ख्यात शिक्षाविद प्रो. एस सी मेहता कहते है कि एसा करके हम कैसा समाज देने जा रहे है, संविधान ने हमे धर्म निरपेक्षता का पाठ पढाने का निर्देश दिया है स्कूलो मे धर्मगुरुओ व धार्मिक मान्यताओ का प्रवेश निषेध होना चहिये !

क्या सोचते है आप बाल मन मे अनुलोम विलोम व कपाल भांति से धार्मिक मान्यताओ का प्रभाव पडेगा !

टिप्पणियाँ

  1. यौन शिक्षा के समर्थक योगशिक्षा का विरोध तो करेंगे ही. लोगों को सोचना है कि उन्हें क्या चाहिए.

    जवाब देंहटाएं
  2. सबसे पहले तो हमें जरुरत इस बात कि है तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग अपना चश्मा बदले जिन्हें हर बात में धर्म और सांप्रदायिकता नज़र आती है!!

    संजीव जी, दुर्ग जिले के जो अधिकांश लोग इसका विरोध कर रहे हैं उनके तार कहां जुड़े हैं पता करवा लिजिए बस!! इशारा ही काफ़ी है!!

    जवाब देंहटाएं
  3. देर आये दुरुस्त आये। यह अच्छा कदम है। पर एक बात कहना चाहूँगा। य़ोग सही मार्गदर्शन मे ही सीखा जाना चाहिये। गलत योग नुक्सानदायक भी हो सकता है। मै चौथी मे सरस्वती स्कूल मे पढ्ता था जहाँ योग सीखाया जाता था पर कभी भोजन के बाद तो कभी खाली पेट। बीमार को भी योग कराया जाता था। यह ठीक नही है। निगरानी जरुरी है।

    जवाब देंहटाएं
  4. योग शिक्षा को किसी धर्म के साथ नही जोड़ा जाना चाहिए। यौन शिक्षा की जगह अगर योगशिक्षा दी जाए तो बेहतर होगा।

    जवाब देंहटाएं
  5. अगर मार्गदर्शक योग्य हैं तब तो यह बहुत ही सार्थक पहल है. इसे जरुर लागू होना चाहिये.

    मुद्दा उठाने के लिये साधुवाद. मिडिया को भी इस दिशा में जागरुक पहल करना होगी.

    जवाब देंहटाएं
  6. योग शिक्षा अत्यंत आवश्यक है मेरे ख्याल से हर स्कूल में योग शिक्षा का होना अनिवार्य होना चाहिये…ताकि आगे आने वाले समय में सभी निरोग और बलवान हो…योग क्रियायें इन्सान की समस्त व्याधियों से रक्षा करती है ये अलग बात है कि योग के द्वारा किया गया उपचार तुरन्त कारगर सिध्द नही हुआ है परन्तु देर से होने के बावजूद भी यह एक अचूक चिकित्सा है बशर्ते कि यह बिमारी कि अवस्था में न किया जाये यह भी सत्य है योग अगर सही शिक्षक के परामर्श से किया जाये तो ही उपयुक्त है…यौन शिक्षा भी आवश्यक है यदि आज के युवा होते बच्चो का सही दिशा में मार्गदर्शन हो तो देश भर में फ़ैले बलात्कार और उनसे होने वाले खून खराबे से बचा जा सकता है… इस शिक्षा में भी योग्य शिक्षक की अनिवार्यता होनी चाहिये…अधिकतर आज कल यहि सुनने में आता है की शिक्षक भी बच्चो का शिक्षा के नाम पर शोषन कर रहे है…इस लिये पहले यह कहना जरूरी नही की बच्चो को क्या शिक्षा दी जाये पहले यह जाँच जरूरी है की सभी प्रशिक्षक योग्य है की नही…ताकि बच्चो का भविष्य उज्ज्वल बनाया जा सके…

    सुनीता(शानू)

    जवाब देंहटाएं
  7. बढिया काम हो रहा है दुर्ग में जानकर खुशी हुई, सांप्रदायिकता ढूँढने वाले तो सरस्वती वन्दना और वन्देमातरम में भी ढूँढ लेंगे.. उद्देश्य पवित्र हो तो ऐरे-गैरों की परवाह नहीं करना चाहिये...

    जवाब देंहटाएं
  8. बच्चो को यौन शिक्षा देना ज़रूरी है.
    क्योकि जब बच्चो के साथ यौन सबंध स्थापित करते है, तब बच्चा इन कार्यो से बहुत डरता है,जिस कारण वह न तो स्वयं संतुष्ठ हो पाता है नही सामने वाले को संतुष्ठ कर पाता है.
    यदि बच्चे को यौन शिक्षा दी जाए तो वह स्वयं भी संतुष्ठ हो जाएगा,और सामने वाले को भी संतुष्ठ कर पाएगा

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भट्ट ब्राह्मण कैसे

यह आलेख प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट जी नें इस ब्‍लॉग में प्रकाशित आलेख ' चारण भाटों की परम्परा और छत्तीसगढ़ के बसदेवा ' की टिप्‍पणी के रूप में लिखा है। इस आलेख में वे विभिन्‍न भ्रांतियों को सप्रमाण एवं तथ्‍यात्‍मक रूप से दूर किया है। सुधी पाठकों के लिए प्रस्‍तुत है टिप्‍पणी के रूप में प्रमोद जी का यह आलेख - लोगों ने फिल्म बाजीराव मस्तानी और जी टीवी का प्रसिद्ध धारावाहिक झांसी की रानी जरूर देखा होगा जो भट्ट ब्राह्मण राजवंश की कहानियों पर आधारित है। फिल्म में बाजीराव पेशवा गर्व से डायलाग मारता है कि मैं जन्म से ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय हूं। उसी तरह झांसी की रानी में मणिकर्णिका ( रानी के बचपन का नाम) को काशी में गंगा घाट पर पंड़ितों से शास्त्रार्थ करते दिखाया गया है। देखने पर ऐसा नहीं लगता कि यह कैसा राजवंश है जो क्षत्रियों की तरह राज करता है तलवार चलता है और खुद को ब्राह्मण भी कहता है। अचानक यह बात भी मन में उठती होगी कि क्या राजा होना ही गौरव के लिए काफी नहीं था, जो यह राजवंश याचक ब्राह्मणों से सम्मान भी छीनना चाहता है। पर ऊपर की आशंकाएं निराधार हैं वास्तव में यह राजव

क्या सफेद फूलो वाले कंटकारी (भटकटैया) के नीचे गडा खजाना होता है?

8 . हमारे विश्वास, आस्थाए और परम्पराए: कितने वैज्ञानिक, कितने अन्ध-विश्वास? - पंकज अवधिया प्रस्तावना यहाँ पढे इस सप्ताह का विषय क्या सफेद फूलो वाले कंटकारी (भटकटैया) के नीचे गडा खजाना होता है? बैगनी फूलो वाले कंटकारी या भटकटैया को हम सभी अपने घरो के आस-पास या बेकार जमीन मे उगते देखते है पर सफेद फूलो वाले भटकटैया को हम सबने कभी ही देखा हो। मै अपने छात्र जीवन से इस दुर्लभ वनस्पति के विषय मे तरह-तरह की बात सुनता आ रहा हूँ। बाद मे वनस्पतियो पर शोध आरम्भ करने पर मैने पहले इसके अस्तित्व की पुष्टि के लिये पारम्परिक चिकित्सको से चर्चा की। यह पता चला कि ऐसी वनस्पति है पर बहुत मुश्किल से मिलती है। तंत्र क्रियाओ से सम्बन्धित साहित्यो मे भी इसके विषय मे पढा। सभी जगह इसे बहुत महत्व का बताया गया है। सबसे रोचक बात यह लगी कि बहुत से लोग इसके नीचे खजाना गडे होने की बात पर यकीन करते है। आमतौर पर भटकटैया को खरपतवार का दर्जा दिया जाता है पर प्राचीन ग्रंथो मे इसके सभी भागो मे औषधीय गुणो का विस्तार से वर्णन मिलता है। आधुनिक विज्ञ

क्या कौरव-पांडव का पौधा घर मे लगाने से परिवार जनो मे महाभारत शुरु हो जाती है?

16. हमारे विश्वास , आस्थाए और परम्पराए: कितने वैज्ञानिक , कितने अन्ध-विश्वास ? - पंकज अवधिया प्रस्तावना यहाँ पढे इस सप्ताह का विषय क्या कौरव-पांडव का पौधा घर मे लगाने से परिवार जनो मे महाभारत शुरु हो जाती है? आधुनिक वास्तुविदो को इस तरह की बाते करते आज कल सुना जाता है। वे बहुत से पेडो के विषय ने इस तरह की बाते करते है। वे कौरव-पांडव नामक बेलदार पौधे के विषय मे आम लोगो को डराते है कि इसकी बागीचे मे उपस्थिति घर मे कलह पैदा करती है अत: इसे नही लगाना चाहिये। मै इस वनस्पति को पैशन फ्लावर या पैसीफ्लोरा इनकार्नेटा के रुप मे जानता हूँ। इसके फूल बहुत आकर्षक होते है। फूलो के आकार के कारण इसे राखी फूल भी कहा जाता है। आप यदि फूलो को ध्यान से देखेंगे विशेषकर मध्य भाग को तो ऐसा लगेगा कि पाँच हरे भाग सौ बाहरी संरचनाओ से घिरे हुये है। मध्य के पाँच भागो को पाँडव कह दिया जाता है और बाहरी संरचनाओ को कौरव और फिर इसे महाभारत से जोड दिया जाता है। महाभारत मे इस फूल का वर्णन नही मिलता है और न ही हमारे प्राचीन ग्रंथ इसके विषय मे इस तरह क