भिलाई स्‍पात संयंत्र में जंगरोधी रेलपांत का निर्माण सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

भिलाई स्‍पात संयंत्र में जंगरोधी रेलपांत का निर्माण

भिलाई स्‍पात संयंत्र नें पिछले कई वर्षों से लौह उत्‍पादन में एक से बढकर एक कीर्तिमान स्‍थापित कियें हैं । नेंहरू जी के स्‍वप्‍न को साकार करता यह संयंत्र रूस भारत मित्रता का सबसे बडा मिशाल है । इस संयंत्र नें पिछले कुछ वर्षों से रेलपांतों के निर्माण में भी कीर्तिमान स्‍थापित कर रहा हैं । इसी संबंध में इन दिनों क्षेत्रीय समाचार पत्रों में प्रतिदिन समाचार प्रकाशित हो रहे हैं प्रस्‍तुत हैं एक विवरण ।


(रेलपांत निर्माण में प्रवीणता के यादगार के रूप में रेल चौंक का दृश्‍य)

केन्‍द्र सरकार के एक महत्‍वांकांक्षी प्रोजेक्‍ट समुद्रीय तटवर्ती क्षेत्रों के लिए बेहतर केमिकल कंपोजिशन के साथ किफायती जंगरोधी रेलपांत बनाने पर भिलाई में काम शुरू हुआ है एवं प्रतिदिन इससे नित नये अनुसंधान व परीक्षण किये जा रहे हैं । संयंत्र नें पहली खेप में प्रथम स्‍वीकृत केमिकल कंपोजिशन की रेलपांत परीक्षण के लिए तैयार भी कर लिया है । इसके लिए भिलाई स्‍पात संयंत्र नें रेल टेक्‍नालाजी के क्षेत्र में अंतर्राष्‍ट्रीय मानकों के अनुसार अनुसंधान के लिए पहली बार दो प्रमुख केन्‍द्रीय एजेंसियों से हांथ मिलाया है जिससे कि अब तक भिलाई में बन रही जंगरोधी रेलपांत की केमेस्‍ट्री में कुछ संशोधन होगा एवं देश के समुद्री इलाकों को किफायती जंगरोधी रेलपांत मिल पायेगी


केन्‍द्र सरकार नें बेहतर गुणवत्‍ता के रलपांतों के निर्माण हेतु टेक्‍नालाजीकल मिशन फार सेफ्टी शुरू किया है । जिसमें मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से आईआईटी कानपुर, भारतीय रेलवे की ओर से अनुसंधान इकाई आरडीएसओ और स्‍टील अथारिटी आफ इंडिया की ओर से भिलाई स्‍पात संयंत्र प्रमुख भागीदार हैं । भिलाई स्‍पात संयंत्र के जीएम मिल्‍स भरतलाल कहते हैं ‘’प्रोजेक्‍ट टीएमआरएस पर जब काम शुरू हुआ तो मालिबडेनियम धातु सबसे मंहगी थी । अब निकल की टेक्‍नालाजी इस्‍तेमाल कर किफायती जंगरोधी रेलपांत विकसित की गयी है । हालांकि निकल भी अब पहले जितनी सस्‍ती धातु नहीं रही फिर भी हमारे यहां जो रेलपांत विकसित की गयी है वह मालिबडेनियम से सस्‍ती ही पडेगी जो तटवर्तीय क्षेत्रों के लिए रेलवे के मानकों के अनुरूप होगी ।

तो अब लौह नगरी से सस्‍ती व उच्‍च गुणवत्‍ता के रेलपांतों का निर्माण प्रारंभ हो जायेगा एवं देश को रेलपांतों की नियमित सप्‍लाई मिल पायेगी ।

रेल भारत की जीवन धारा है एवं इसे जीवन देने में मेरे शहर की भी भागीदारी है यह मेरी सुखद अनुभूति है और मैं इसे आपके साथ बांटना चाहता हूं ।

टिप्पणियाँ

  1. मेरे लिये उपयुक्त्त जानकारी. धन्यवाद.

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  2. आभार कि आपने यहां अपनी अनुभूति यहां बांटी!!

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  3. बहुत ज्ञानवर्धक जानकारी.सचमुच ज्ञान बढा.

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  4. यह जानकारीवर्धक तो है ही लेकिन इसके साथ भिलाई नाम सुनकर बांछे खिल जाती है और मैं यादों के समन्दर में डूबने लगता हूं.

    संजीव भाई. भिलाई सेक्टर चार स्कूल में मेरी प्राथमिक शिक्षा हुई है और चार बरस तक भिलाई में ही रहा हूं सेक्टर छह पुलिस कोतवाली कॉलोनी में. भिलाई शुरू से ही नियोजित और स्वच्छ शहर रहा है. सात सालों से वहां जाना नहीं हुआ. अब भी ठीक ठाक ही होगा.

    भिलाई इस्पात संयंत्र में कामकाज तेज़ी पर है यह सुनकर राहत मिली क्योंकि इन दिनों सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों पर सरकार उदासीन है और हम चाहते हैं कि पीएसयू बने रहे क्योंकि यही हमारे उद्योग धंधे हैं जो मिश्रित अर्थव्यवस्था में संतुलन बनाए रखते हैं. यहीं वे संस्थान हैं जहां मज़दूरों के हितों की सुनवाई हो सकती है और वे ज़िम्मेदार होते हैं. रहा सवाल मूर्खतापूर्ण सरकारी आलस्य का तो इसके लिए कर्मी नहीं बल्कि प्रबंधन ज़िम्मेदार होता है. चंद बड़े राजनीतिज्ञ और सरमाएदार जानबूझकर सरकारी संस्थानों से प्रायोजित सुस्ती के लिए माहौल बनाते हैं ताकी निजी क्षेत्र अपना एकाधिकार जमाए. ऐसे दौर में भिलाई इस्पात संयंत्र नित नयी ऊंचाइयां प्राप्त कर रहा है- ये जानकर गर्वानुभूति होती है.

    आपने यह जानकारी दी .. इसके लिए धन्यवाद

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  5. बहुत शुक्रिया संजीव जी जानकारी देने के लिये...

    अच्छा लगा पढ़कर!
    सुनीता(शानू)

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  6. रोचक और ज्ञानवर्दध्क ।

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आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

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