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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

“पापा ये स्‍टेफ्री क्‍या होता है ?”

जून माह में निर्मल आनंद में फिल्‍म की चर्चा करते हुए श्रीयुत तिवारी जी कहते हैं -

.. दूसरी है ३४ वर्षीय तब्बू.. वो तो खैर क्या कहें.. कटारी है कटारी.. देख के मन करता है.. बस कब मौका मिले और सेक्स कर लें उसके साथ.. क्यों आप का नहीं करता.. हमारा तो करता है.. अमिताभ का भी करता है..

आप लोगों से पूछा गया है कि क्‍या आप का नहीं करता ? हमें उस समय बेहद अटपटा लगा था । आज उन स्‍मृतियों को ताजा किया तो उनकी यह साफगोई दिल को छू गई, भरे समाज में इस बात को लेकर आये और कह दिये जो बढी दाढी से छुपी रह सकती थी । फिल्‍म तो हम नहीं देखे पर इधर उधर से जो जानकारी मिली उसके अनुसार से यह बडे लोगों की बडी बातें थी । किसी नें कहा नयी चिंतन को जन्‍म देती कहानी है ।




क्‍या है यह चिंतन, फिल्‍म व टीवी सीरियल वाले भरपूर कोशिस कर रहे हैं, नारी पुरूष उन्‍मुक्‍तता व स्‍वैच्‍छाचारिता की सहज (? पैशाचिक) प्रवृत्ति को अपने फिल्‍मों व लोकप्रिय सीरियलों में दिखायें ताकि समाज में बदलाव लाया जा सके बच्‍चे भी जान सके कि अपनी मां के उदर से उत्‍पन्‍न भाई बहनों के अलग अलग पिता के संबंध में अपनी मां की वैचारिक स्‍वतंत्रता या स्‍वच्‍छंदता के संबंध में । यद्धपि यहां पर सगे का अर्थ खो गया है । एक होड सी लगी है एक पुरूष दूसरे की पत्‍नी, एक पत्‍नी दूसरे का पति और बहुत कुछ । आकांक्षा करोडों की है धरातल हजार की भी नहीं।

विगत दिनों महानगरों से हाईप्रोफाईल तथाकथित द्रौपतियों के समाचार लगातार आ रहे हैं । अभी हाल में नागपुर से पकडी गई हाईप्रोफाईल कालगर्ल की बाकायदा वेबसाईटें हैं व उनका दर तय है कम से कम एक लाख रूपया । यह एक लाख रूपया देने वाले निर्मल आनंद वाले तिवारी जी नहीं हो सकते हां यह हो सकता है वह टैक्‍सी ड्राईवर जिससे कल अरबों की सम्‍पत्ति व ढेरों कार बरामद हुए हैं । तब्‍बू से सेक्‍स करने की इच्‍छा रहने के बाद भी सफेद चोला ओढे लम्‍बा चौडा तर्क व दर्शन का पिटारा सम्‍हाले हां हूं ओह आह कहते ऐसे लोगों की लंबी फेहरिश्‍त है ।

पिछले दिनों श्री ज्ञानदत्‍त पाण्‍डेय जी नें अपने एक पोस्‍ट में जार्ज फर्नांडीज के संबंध में लिखा था कि वे टेलीविजन नहीं देखते, बिल्‍कुल सही करते हैं क्‍या शेष बचा है ।




मनोरंजन के नाम पर नैतिकता को ताक पर रख कर फिल्‍माये गये क... क... क... और यदि समाचार में मन रमाना चाहें तो सेक्‍स स्‍कैंडल, दिल्‍ली के फार्म हाउसों की पार्टिया, यूक्रेन की लडकियां, कास्टिंग काउच, बार बालायें अस्‍सी प्रतिशत सेक्‍स से जुडे खबर । बाकी कुछ बच गया तो अमूल माचो, स्‍टेफ्री सिक्‍योर ।




आज मेरा 11 साल का लडका मुझसे पूछ रहा था, “पापा ये स्‍टेफ्री क्‍या होता है ? उसे कहां लगाते हैं ?”
क्‍या कहते हैं आप ? आपसे यदि आपका बेटा ऐसा प्रश्‍न करे तो आप क्‍या उत्‍तर देगें ? कहां से होकर आ रही है यह विचारधारायें ?

टिप्पणियाँ

  1. अब हमारे लड़के तो बड़े हो गये हैं. ऐसे प्रश्न हमें ही उनसे पूछने होते हैं. :)

    सिरियस नोड पर, इन बातों को समझाने के तरीके होते हैं. सिर्फ चुप करा देने से तो काम नहीं चलता मगर ऐसे प्रश्नों पर हम हमेशा चुप ही कराये गये, शायद हमारे समय माहौल ही ऐसा था.

    बच्चों के मनोविज्ञान और उनके द्वारा पूछॆ गये प्रश्नों पर बाजार में और इन्टरनेट पर काफी पुस्तकें और जानकारी हैं, उन्हें खंगालें. शुभकामनायें.

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  2. भाई, प्रश्न तो होने चाहियें. हममें/आपमें/बच्चेमें. उत्तर मिले न मिले. चाहे जब मिले. बच्चे के प्रश्न के स्तर को आप सुधार सकते हैं तो सुधारें, पर प्रश्न दबायें मत!

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  3. पापा ये स्‍टेफ्री क्‍या होता है ? उसे कहां लगाते हैं ?

    ऐसे प्रश्नों का बच्चों को सही उत्तर देना बहुत आवश्यक है। और भी आवश्यक है कि यह उत्तर बच्चों को अपने माता पिता से मिले। यह एक भौतिक और शारीरिक क्रिया से सम्बन्धित प्रश्न है। यदि आपका बच्चा पूछे कि ओल्ड स्पाइस क्या होता है? उसे कहाँ लगाते हैं? तो जिस निर्लिप्त भाव से आप जवाब देंगे, उसी प्रकार इस प्रश्न का जवाब भी दें। बच्चा केवल एक जानकारी माँग रहा है जो कि माता पिता खुद दें तो सर्वोत्तम होगा।

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  4. हर जिज्ञासु बालक के माँ-बाप या अभिभावक इन प्रश्नो से दो-चार होते ही है. बच्चे की उम्र के हिसाब से सहजता से समझाया जाता है.

    हम टी.वी. वालो को तो कोस सकते है, की कण्डोम के विज्ञापन दिखा देखाते है, मगर उन समझदारों को क्या कहेंगे जिन्हे उपयोग में आये कण्डोम का निपटारा नहीं आता और मार्गो पर फेंक कर गन्दगी फैलाते है? बच्चे तब भी पुछेंगे की यह क्या है?

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  5. आप उसे बताये कि "मासिक स्त्राव" क्या होता है ? क्यों होता है? कब होता है? उसके क्या प्रभाव है? ये कैसे मह्त्त्वपूर्ण है ? और फिर बताये कि स्टेफ़्री क्या होता है?

    जननांग भी शरिर के अंग है, और उनके बारे मे बात करने में कैसी झिझक!

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