हिन्दुस्तान अमरीका बन जाए तो कैसा होगा : अनुगूँज 22 सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

हिन्दुस्तान अमरीका बन जाए तो कैसा होगा : अनुगूँज 22


(चित्र बडा करके पढे)
हमने फुरसद के क्षणों में भईया फुरसतिया की बातों को मानते हुए परयास किया है आशा है आपको भी पसंद आयेगा ।

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टिप्पणियाँ

  1. आपकी उम्मीद बिल्कुल सही निकली. पसंद आया. हस्तलेख की पुनः तारीफ करुँ क्या?

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  2. अच्छा है। हस्तलेख तो बहुत अच्छा है। ऐसे ही लिखते रहें।

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  3. अनुवाद का अनुबंध दिलायें तो रवी रतलामी को और मुझे न भूल जायें. आपको जालजगत में इतने आनुवादपटु कहीं न मिलेंगे. कुछ नगद नारयण की प्राप्ति हो जायगी.

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  4. हस्तलिपि तो कमाल है.


    विचार भी विचारणीय है. आमीन कहते है, और क्या.

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  5. ख़ूब रंग-बिरंगा !
    बढ़िया :)

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  6. हस्त लिपि थोड़ी बिगाड़ो - वर्ना हमें शर्म आ रही है. और ये सारी मलाई छत्तीसगढ़ को ही देने का इरादा है - झारखण्ड, ओडिसा, बिहार, पूर्वांचल को भी अमेरिका नहीं तो इटली तो बनादो!

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  7. हा हा , मस्त!!!

    ज्ञान दद्दा, इनकी हस्तलिपि देख कर हमें भी शर्म आती है लेकिन छू कर निकल जा रही है!!

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  8. वाह संजीव भाई, मस्त लिखा। हस्तलेख भी बहुत सुन्दर है।

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  9. आपके सुलेख को देख कर बचपन में पिताजी की नसीहत याद आ गई जब वे अक्षरों के मामले में हमेशा सतर्क किया करते थे.सुलेख मन की स्वच्छता का आईना भी होता है संजीव भाई.इससे प्रेरणा भी मिलती है कि साफ़-सुथरा लिखा जा सकता है.पांडेजी और संजीत भाई से कहना चाहूँगा कि मित्रवर..हिन्दी सुलेख के पथ पर सबसे बड़ा रोड़ा है बाँपपेन का इस्तेमाल..इसी का सब किया धरा है ये कचरा...फ़ाउंटन पेन आज भी सुलेख के लिये सबसे ज़्यादा मुफ़ीद है.

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  10. kya likha hain sanzeev jeee, koti koti dhanywad aur just hum aasha karety hain aisa hi ho aney wali pusto ke liye

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आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

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