विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
छत्तीसगढ के प्रसिद्ध मूर्तिकार जे.एम.नेल्सन को इस वर्ष पद्मश्री का सम्मान प्रदान किया गया । हम भिलाई में कई वर्षों से नेल्सन के कलागृह के सामने बडी-बडी मूर्तियों को आकार लेते देख रहे हैं साथ ही मीडिया में उनके मूर्तियों के जगह-जगह पर स्थापित होने का समाचार भी पढते आ रहे हैं । उनकी बनाई मूर्तियों की खासियत यह होती है कि राह चलता व्यक्ति भी उन मूर्तियों को देखकर ठिठक पडता है और निहाने लगता है उसकी जीवंतता को । आज नेलसन जी का जन्म दिन है, हम पिछले कई दिनों से उनसे मिलने का कार्यक्रम तय कर रहे हैं पर हो ही नहीं पा रहा है, आज उनके घर में हमने दस्तक दिया तो पता चला कि जे.एम.नेल्सन जी भिलाई के कुष्ट रोगियों के बीच परिवार सहित अपना जन्म दिन मनाने गये हैं अत: उनसे मुलाकात नहीं हो पाई, पर आज उनका जन्मदिन है इस कारण हम इस पोस्ट को और विलंब न करते हुए आज ही प्रस्तुत कर रहे हैं । मूर्तिकार नेलसन को जब यह सम्मान प्राप्त हुआ तो हमारे पत्रकार मित्रों से चर्चा के दौरान सहज स्वभाव के धनी नेलसन नें कहा कि ‘ कर्म ही पूजा है। इसी भावना से मैने अपना कर्म किया। सरकार ने उसका सम्मान करते हुए