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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

क्या गरूड वनस्पति या इसकी फली घर मे रखने से साँप नही आता?

5. हमारे विश्वास, आस्थाए और परम्पराए: कितने वैज्ञानिक, कितने अन्ध-विश्वास?
- पंकज अवधिया
इस सप्ताह का विषय
क्या गरूड वनस्पति या इसकी फली घर मे रखने से साँप नही आता?
छत्तीसगढ और आस-पास के राज्यो मे यह माना जाता है कि गरुड नामक वनस्पति या इसके पौध भागो को घर मे रखने से साँप नही आते है। इस बार इसी विषय पर चर्चा की जाये।
प्राचीन और आधुनिक वैज्ञानिक साहित्यो मे दुनिया भर मे बहुत सी ऐसी वनस्पतियो का वर्णन मिलता है जिनमे साँपो को दूर रखने की क्षमता है। बहुत सी ऐसी भी वनस्पतियाँ है जो साँपो को आकर्षित करती है। छत्तीसगढ मे भ्रमरमार नामक दुर्लभ वनस्पति साँपो को आकर्षित करने के गुणो के कारण जानी जाती है। राज्य के जाने-माने वनौषधि विशेषज्ञ माननीय भारत जी जो अब हमारे बीच नही है, इस वनस्पति से कैसर जैसे असाध्य समझे जाने वाले रोगो की चिकित्सा करते थे। साँपो से अपनी आजीविका चलाने वाले सपेरे बहुत सी ऐसी वनस्पतियो के विषय मे जानते है जो साँपो को दूर रखती है। मैने अपने वानस्पतिक सर्वेक्षणो के माध्यम से हजारो शोध आलेख लिखे है इस विषय पर अभी भी ज्यादातर ज्ञान अलिखित रूप मे है। सर्प-विष की चिकित्सा करने वाले पारम्परिक चिकित्सक भी ऐसी वनस्पतियो के विषय मे जानते है। अभी तक देश भर मे 600 से अधिक प्रकार की ऐसी वनस्पतियो के विषय मे जानकारी उपलब्ध है। पर सभी वनस्पतियाँ सभी तरह के साँपो को रोक पाने मे सक्षम नही है। इसका गूढ ज्ञान बहुत कम लोगो के पास है।



गरुड नामक वनस्पति को साँपो से सुरक्षा के लिये उपयोगी माना जाता है पर यह मुश्किल है कि अकेले छत्तीसगढ मे 15 से अधिक प्रकार की वनस्पतियो को इस नाम से पुकारा जाता है। आप तो जानते ही है कि स्थानीय नाम हर कोस मे बदलते है। आमतौर पर गरुड के नाम पर एक लम्बी सी फली मिल जाती है जिसमे साँप के शरीर जैसे निशान बने होते है। हाल ही के दिनो मे गरुड वनस्पति से बनायी गयी लकडी की सर्पनुमा आकृति भी बाजार मे मिलने लगी है। इसे भी उपयोगी बताया जाता है। पर दोनो ही प्रकार की वनस्पतियो के साथ मेरे अनुभव अच्छे नही है।
एक बार जब घर मे नाग निकला तो मैने इनका प्रयोग किया पर वह तो बेधडक उसके ऊपर से निकल गया। पहली बात तो उसे इनके होते घर मे ही नही आना चाहिये था। बाद मे कई साँप पर आजमाया पर निराशा ही हाथ लगी। मैने इन्हे मेलो से खरीदा था। जब इसे लेकर मै विशेषज्ञो के पास गया तो पहले तो वे खूब हँसे फिर मजाक मे बोले कि साँपो को शायद यह नही पता होगा कि इससे साँप भागते है। उन्होने समझाया कि असली गरुड यह नही है। दरअसल इस मान्यता का व्यव्सायीकरण हो गया है और इसी का लाभ उठाकर शहरी इलाको मे इन्हे ऊँची कीमत पर बेचा जा रहा है। शहरो मे लोग सर्प से बहुत घबराते है अत: भयादोहन से इनकी खूब बिक्री होती है। पारम्परिक विशेषज्ञो ने बताया कि सभी साँप जहरीले नही होते। यही बात आधुनिक विशेषज्ञ भी कहते है। यदि मै साँप के प्रकार बताऊँ तो ही वे वनस्पति सुझा सकते है। पर शहरो मे तो नाना प्रकार के साँप निकल आते है ऐसे मे हर बार अलग-अलग वनस्पति का प्रयोग सम्भव नही जान पडता।
मैने अपने घर को साँपो से दूर रखने के लिये सरल उपाय अपनाया है। बरसात मे सभी प्रवेश द्वारो पर फिनायल से भीगा गीला कपडा रख देते है या लक्षमण रेखा खीच देते है। इससे साँप गन्ध के कारण नही आते है।
हाल ही के वर्षो मे गरुड के नाम पर कई वनस्पतियो के नाम सामने आने के कारण जंगलो से इसका एकत्रण बढा है। इससे अनावश्यक ही उनकी प्राकृतिक आबादी पर खतरा बढ रहा है। किसी का इस पर ध्यान नही है और ऐसा ही चलता रहा तो हम बहुत सी वनस्पतियो को खो बैठेंगे।




मुझे लगता है कि साँपो के प्रति आम लोगो मे भय कम करने के लिये सर्प विशेषज्ञो और पारम्परिक ज्ञान के महारथियो का एक दल बनाकर देश भर मे जन-जागरण अभियान चलाना चाहिये। हर साल बडी मात्रा मे साँप बेवजह मारे जाते है। मनुष्य उनके इलाको मे नयी कालोनियाँ बना रहा है और साँपो को खतरा बता रहा है। जन-जागरण के अलावा इस दल को साँप से सम्बन्धित वनस्पतियो का भी वैज्ञानिक अध्ययन करना चाहिये और उन वनस्पतियो के प्रयोग पर अंकुश लगाना चाहिये जो प्रभावी नही है। साँप, वनस्पतियाँ, पारम्परिक और आधुनिक विशेषज्ञ सभी अपने है तो फिर इस शुभ कार्य मे देर कैसी?
अगले सप्ताह का विषय
नीम के पुराने वृक्ष से रिसने वाला रस एक चमत्कारिक घटना है या नही?



टिप्पणियाँ

  1. सांप से भय लगता है पर वह इतना सुन्दर भी लगता है कि मारने का मन नहीं करता।
    भय और सुन्दरता का अद्वितीय मिश्रण है सांप!

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  2. सांप से डर लगना भी वाजिब है।आपकी पोस्ट पढ़कर सांपों के प्रति हमारी कुछ धारणा शायद बदल जाये।

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  3. ह्म्म, यह बात तो हमने भी सुनी और अंतत: बरसात के दिनों मे सर्प के अतिआगमन के कारण आजमाया भी है। फायदा तो हुआ था निश्चित ही। वाकई इस गरूड़ वनस्पति को रखने से कम हुए और उसके बाद तकरीबन आने ही बंद हो गए।
    अब इस गरूड़ाकृति के कारण आने बंद हुए या अन्य कोई कारण यह विश्लेषण नही किया।

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  4. पंकज जी यह जानकर खुशी हुई कि सडक किनारे सांपो के आकार वाले लकडी और जडी लेकर बेचने वाले लोगों को ठगते हैं । गांवों में इस गरूड लकडी के एक से एक किस्‍से हैं पर मेरा भी अनुभव स्‍पष्‍ट रहा है कि गरूड के नाम से जन उपलव्‍ध लकडी में कुछ भी प्रभाव नहीं रहता मेरे पिताजी भी लगभग तीस वर्ष पूर्व ऐसी लकडी घर में रखते थे पर कई कई दिनों खपरैल वाले हमारे घर के हिस्‍से में चिडिये के घोंसलों में करैत बडे मजे से बच्‍चों को चट करता था और हमारे बिस्‍तरों में भी कभी कभार अपना संतुलन खो कर गिर जाता था तो मॉं कहती थी 'का काम के तुंहर गरूड लकडी' ढेरों किस्‍से हैं सांप के मेरे पास भयंकर अनुभव भी । पर इन्‍हीं अनुभवों में मैने सीखा है जिसे कुछ लोग मांत्रिक परंपरा मानते हैं कि मैं 'सांप-सांप' के मानव आवाज आने से उस आवाज के विपरीत भागता हूं ताकि वह सांप बच सके लोग हंसते हैं कि मैं उनसे डरता हूं, लगभग आधा जीवन गांव में बिताया हूं कई बार खेतों में बाडियों में नागों, करैतों से सामना हुआ है पर हर बार मेरे पिता के मुंह से सुनी वो बातें सांप के साथ याद आयी है कि डोमी (नाग)जब प्रात: अपने बिल से बाहर निकलता है तो भगवान से प्रार्थना करता है कि ब्राहृमण और गौ से समना मत करवाना भगवान । मतलब यह कि ये काटते तभी हैं जब आप इन्‍हें छेडें या आपका शरीर इस पर आक्रामक की तरह पड जाए । आप सभी से मेरा निजी अनुरोध है कि सांपों को मारे नहीं भगाने का यत्‍न अवश्‍य करें, फिनाईल व मिट्टी के तेल का गंध इन्‍हें दूर भगा देता है ।

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  5. what is the botanical of this tree?

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