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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

गिरधर जी.बरनवा के हाइकू

कथ्‍य और शिल्‍प की दृष्टि से हाइकू गागर में सागर भरने की काव्‍य विधा है । हाइकू पांच, सात, पांच अर्थात सत्रह सत्रह अनुशासन में निबद्ध विलक्षण विधा है । जापान में बौद्धमत में आये विसंगतियों को उजागर कर दुरूस्‍त करने हेतु सूत्रों में, कम शव्‍दों में अपनी बात कहने के लिए इस विधा का उद्भव हुआ । हाइकू की विषयवस्‍तु है प्रकृति । सेनरेय की तकनीक (पांच, सात, पांच अर्थात सत्रह अक्षरानुशासन) ही हाइकू के विकास की पृष्‍टभूमि मानी जा सकती है । आज दुनिया में तमाम मुल्‍कों में विभिन्‍न भाषाओं में हाइकू लेखन जारी है । हिन्‍दी में अज्ञेय, डॉ.सुधा गुप्‍ता, डॉ.महावीर, शंभूशरण द्विवेदी, डॉ.भगवत शरण अग्रवाल, रामनिवास पंथी, मदन मोहन उपेन्‍द्र, उर्मिला कौल, सूर्य देव पराग, राजेन्‍द्र परदेशी, कु.नीलिमा शर्मा, सूर्यदेव पाठक आदि सशक्‍त हस्‍ताक्षर हैं । फिलहाल मनुष्‍य भी तो प्रकृति का अहम हिस्‍सा है उसके हाव-भाव, क्रिया कलाप अलग नहीं हैं और इसीलिये सेनरेय और हाइकू की स्‍पष्‍ट लकीर खींची नहीं जा सकती हो सकता है भावी लेखनी में दोनो अलग अलग रूप में साहित्‍य में अपना स्‍थान बना लें । इस पर मैं खुलकर बहस करना चाहता हूं आप यदि इस विधा पर मुझसे चर्चा करना चाहते हैं तो मुझसे मेरे मोबाईल नम्‍बर पर संपर्क कर सकते हैं क्‍योंकि इस विधा के विकास के लिए बहस की आवश्‍यकता है आप मेरे चंद हाइकू पढे और पसंद आये तो आर्शिवाद देवें -


दाढ में खूंन
जनतंत्र में घुन
नेता के गुन ।

दिल दीवाना
ढाई आखर प्रेम
चल मस्तापना ।

जला रावण
साल में एक दिन
फिर अमर ।

आदमी तो है
आदमीयत नहीं
ढूढे हाइकू ।

खोना ही पाना
देखिये खोकर
अपने आप ।

बिकी कलायें
बिग-बी बेंचे तेल
पूंजी का खेल ।

रजनीगंधा
लुटी अंधियारे में
सुबह रोई ।

चंपा-चमेली
लिपटी वृक्ष तने
खुश नसीब ।

ओ रातरानी
महकाती रातभर
भोर उदास ।

ये ढूंठ पेड
फल, पुष्पे न छाया
ये अवधूत ।

जीवन परिचय

पूरा नाम : अनवर गिरधर सिंह बरनवा
लेखन नाम : गिरधर जी.बरनवा
जन्‍म तिथि : 9 अप्रैल, 1948
जन्‍म स्‍थान : कस्‍तूरी, जिला शहडोल, म.प्र.
शिक्षा : एम.ए. (राजनीतिशास्‍त्र, इतिहास), बी.एड. सागर विश्‍वविद्यालय
लेखन : प्राथमिक विद्यालय के मायूस विद्यार्थी से लेकर अबतक
विधायें : गीत, जनगीत, गजल, मुक्‍तक, दोहे, शेर, हाइकू,नुक्‍कड नाटक, ललित निबंध, लघु कथा, क्षणिकायें समीक्षा
आलोचना : विभिन्‍न रचनाओं व कृतियों की समीक्षायें प्रकाशित । रंगकर्म - निर्देशन : छत्‍तीसगढी फिल्‍म ‘शहीद वीर नारायण सिंह’, जनगीत, लोकगीत, नाटक, नुक्‍कड नाटक अभिनय : छत्‍तीसगढी फिल्‍मों, नाटकों एवं लोककला प्रदर्शन कार्यक्रमों में
प्रकाशन : देश के विभिन्‍न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का अनवरत प्रकाशन, देश भर में कवि सम्‍मेलनों में शिरकत
संस्‍थागत : जनवादी लेखक संघ का संस्‍थापक सदस्‍य, छत्‍तीसगढ राज्‍य समिति का सदस्‍य
शीध्र प्रकाश्‍य कृतियांप्रेरण तुझे सलाम (जनगीत संग्रह), मधुमय है यह प्रीत की बानी (गजल संग्रह), ढूंढो वही पानी (आधुनिक कविता संग्रह), ले मशाल चले चलो ... (मुक्‍तक संग्रह), हाइकू मंगल (हाइकू)
संपर्क : फ्लैट नं. 4, रेड्डी बाडा, नवदुर्गा चौक, पुजारी स्‍कूल के पीछे, रविनगर, राजातालाब, रायपुर (छ.ग.) मोबाईल : 09425517501


एकता भेष
अनेकता में बसा
भारत देश ।

बोल री बोल
न सह जुल्म मौन
कहती मैना ।

पूजते शिला
हरि मिले पर्वत
पूजो कबीर ।

चिढाता मुंह
कैकटस के फूल
रेस्त्रां के बीच ।

दीप शिखा में
जल जायेगा शलभ
दीवाना पन ।

आम बौराया
बागों कूजे कोकिल
बसंत आया ।

मरा गरीब
दंगों में हरबार है
न अजीब ।

श्राद्ध दिवस
साल में एक दिन
बुलाते काक ।

कुत्ते का कद
आदमियों से भी उंचा
बुश की दृष्टि ।

गोली जाने
न राम-रहीम भक्त
चलती जब ।

बहती हवा
भूमें कंचन बौर
फागुन आया ।

फूलों के कान
कह आई तितली
भ्रमर आये ।

पीली सरसों
ले बासंती चूनर
ली अंगडाई ।

चुगती दाना
समझाये गौरया
माँ की ममता ।

उतारा पैंट
पहचान के बाद
मार दी गोली ।

लोक मंगल
निस्रित अविरल
सृजन जल ।

चले आंधियॉं
आशा के दीप जले
बुझ न पाये ।

दर्द दिल में
लेकर ‘गिरधर’
लिखे हाइकू ।

भर उजास
फूटे रवि किरणें
लघु प्रयास ।

गिरधर जी.बरनवा

टिप्पणियाँ

  1. कमेण्ट में हायकू तो नहीं रचूंगा। पर अपनी प्रसन्नता अवश्य व्यक्त करूंगा रचनायें पढ़ कर।
    धन्यवाद अच्छी पोस्ट हेतु।

    जवाब देंहटाएं
  2. पहली बार हाईकु (चार लफ्जो का सच " ) के बारे में जाना, पढ़कर बहूत अच्छा लगा , धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  3. आज आपके ब्लॉग पर आकर कई रचनाएँ एक साथ पढ़ डालीं. गिरधर जी के हाइकु तो बहुत ही भाए. छत्तीसगढ़ के फाग पढ़कर मन दौड़ता है अपने देश की ओर.

    जवाब देंहटाएं

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आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

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