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जुलाई, 2008 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

भू.पू.राष्‍ट्रपति श्री डॉ.ए.पी.जे.अब्‍दुल कलाम नें जारी किया कार्टून चित्र

कार्टून आज संचार के लिए बेहद लोकप्रिय माध्‍यम बन गया है । कार्टून के माध्‍यम से बहुत सारी चीजों को बताया और समझाया जा सकता है । आज इसका इस्‍तेमाल शिक्षा, बच्‍चों को जागरूक करने और नये संदेश देने के लिए एक रोचक ढंग से किया जा रहा है । इसी परिपेक्ष्‍य में जनसंपर्क एवं कारपोरेट कम्‍यूनिकेशन पर केन्द्रित देश की एकमात्र ई-पत्रिका ‘ ई-ज्‍वाईन ’ के संपादक एवं प्राईम टाईम पाइंट पब्लिक रिलेशन प्राईवेट लिमिटेड एवं प्राईम टाईम फाउंडेशन के अध्‍यक्ष व मुख्‍य प्रशासनिक अधिकारी श्री के.श्रीनिवासन की पहल और मार्गदर्शन पर छत्‍तीसगढ, रायपुर के कार्टूनिस्‍ट एवं कार्टून वॉच पत्रिका के संपादक श्री त्र्यंबक शर्मा नें जनसंपर्क कार्टून चरित्र (पी आर कार्टून करेक्‍टर) प्रिंस तैयार किया है । इसे भारत के पूर्व राष्‍ट्रपति श्री डॉ.ए.पी.जे.अब्‍दुल कलाम नें विगत दिनों चेन्‍नई में जारी किया । इस अवसर पर डॉ. कलाम पी आर करैक्‍ब्‍र तैयार करने के लिए श्री के.श्रीनिवासन एवं श्री त्र्यंबक शर्मा को बधाई एवं शुभकामनायें दीं और उन्‍होंनें कार्टून करैक्‍टर पर अपने हस्‍ताक्षर भी किए । उल् ‍लेखनीय है कि जनसंपर्क

छत्तीसगढ़ी संस्कृति, साहित्य एवं लोककला की आरूग पत्रिका अगासदिया - 30 : ब्‍लाग संस्‍करण

छत्तीसगढ़ी संस्कृति , साहित्य एवं लोककला की आरूग पत्रिका वर्ष - 1 , अंक - 2 , अप्रैल - जून - 2008 अगासदिया - अव्यवसायिक , त्रैमासिक अंधकार से लड़कर ज ग में जो भी जहां जिया , उसके लिए सदैव प्रकाशित रहा अगासदिया छत्तीसगढ़ राजनीति के चाणक्य श्रद्धेय दाऊ वासुदेव चन्द्राकर के व्यक्तित्व पर केन्द्रित मुद्रक : यूनिक, पंचमुखी हनुमान मंदिर के पीछे, मठपारा, दुर्ग (छ.ग.) ०७८८-२३२८६०५ वेब प्रकाशन : संजीव तिवारी अनुक्रमणिका 1. सात संस्मरण 2. भूपेश की जीत का रहस्य : डॉ . परदेशीराम वर्मा 3. जीवन वृत्त - वासुदेव चंद्राकर 4. नेलशन कलागृह और सियान संरक्षक दाऊ वासुदेव चंद्राकर 5. मूर्तिकार जे . एम . नेल्सन के गांधी और मेरी मुसीबत 6. प्रथम डॉ . खूबचन्द बघेल अगासदिया सम्मान से विभूषित 7. दाऊ वासुदेव चन्द्राकर , अमृत सम्मान परिशिष्ट 8. कल के लिये : रवि श्रीवास्तव 9. काँग्रेस के नैष्ठिक सिपाही श्री वासुदेव चन्द्राकर : राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल 10. दाऊजी जैसे छत्तीसगढ़ महतारी के सपूत सदा अभिनंदित होंगे

स्वाधीनता संग्राम सेनानी स्‍व.श्री मोतीलाल त्रिपाठी

छत्तीसगढ के अग्रणी स्वतंत्रता सग्राम सेनानियों में स्व . श्री मोतीलाल त्रिपाठी जी का नाम सम्मान से लिया जाता है , इन्होंनें जहां स्वतंत्रता आन्दोलन के समय में गांधीवादी विचारधारा को जन जन तक पहुचाया वहीं स्व्तंत्रता प्राप्ति के बाद सामाजिक क्रांति लाने बेहतर समाज के निर्माण में उल्लेखनीय योगदान दिया । आज कृतज्ञ छत्तीसगढ श्री त्रिपाठी जी के 8 5वीं जयंती पर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करता है । स्व. श्री मोतीलाल त्रिपाठी जी का जन्म 24 जुलाई 1923 को छत्ती‍सगढ के एक छोटे से ग्राम धमनी में हुआ । इनके पिता स्व . श्री प्यारेलाल त्रिपाठी सन् 1930 के स्वतंत्रता आंन्दोलन में पं.सुन्दरलाल शर्मा व नंदकुमार दानी जी के साथ अपनी सक्रिय भूमिका निभा रहे थे । बालक मोतीलाल उस अवधि में अपनी प्राथमिक शिक्षा ग्राम पलारी में ले रहे थे तभी गांधी जी के स्वागत का अवसर इन्हें प्राप्त हो गया था । प्राथमिक शिक्षा के बाद माता श्रीमति जामाबाई त्रिपाठी एवं स्वतंत्रता संग्राम के कर्मठ सिपाही पिता प्यारेलाल का संस्कार लिये बालक मोतीलाल हाईस्कूल की शिक्षा ले

पिता का वचन : कहानी

छत्‍तीसगढ में बस्‍तर की वर्तमान परिस्थितियों पर मैंनें कलम चलाने का प्रयास किया है जो कहानी के रूप में यहां प्रस्‍तुत कर रहा हूं । आप सभी से इस कहानी के पहलुओं पर आर्शिवाद चाहता हूं :- पिता का वचन कहानी : संजीव तिवारी चूडियों की खनक से सुखरू की नींद खुल गई । उसने गहन अंधकार में रेचका खाट में पडे पडे ही कथरी से मुह बाहर निकाला, दूर दूर तक अंधेरा पसरा हुआ था । खदर छांधी के उसके घर में सिर्फ एक कमरा था जिसमें उसके बेटा-बहू सोये थे । बायें कोने में अरहर के पतले लकडियों और गोबर-मिट्टी से बने छोटे से कमरानुमा रसोई में ठंड से बचने के लिए कुत्ता घुस आया था और चूल्हे के राख के अंदर घुस कर सर्द रात से बचने का प्रयत्न कर रहा था । जंगल से होकर आती ठंडी पुरवाई के झोंकों में कुत्ते की सिसकी फूट पडती थी कूं कूं । सुखरू कमरे के दरवाजे को बरसाती पानी की मार को रोकने के लिए बनाये गये छोटे से फूस के छप्पकर के नीचे गुदडी में लिपटे अपनी बूढी आंखों से सामने फैले उंघते अनमने जंगल को निहारने लगा । अंदर कमरे से रूक रूक कर चूडियां खनकती रही और सिसकियों में नये जीवन के सृजन का गान, शांत निशा में मुखरित ह

'अंकल' की घुसपैठ गांवों तक

पिछले दिनों मैं अपने परिवार के साथ बाजार गया, वहां से खरीददारी करके पत्नी के साथ छत्तीसगढी में बतियाते हुए बाहर निकला । बाजार के बाजू में जहां मेरी गाडी खडी थी वहां कुछ मजदूर काम कर रहे थे । उनमें से एक जवान, टीशर्ट छाप मजदूर नें मुझसे पूछा 'टाईम क्या हो गया है अंकल ?' मेरी पत्नी मुस्‍कुराने लगी । गाडी निकालते हुए एक पल के लिए मेरे दिमाग में क्रोध का, पता नहीं कहां से तीव्र ज्वार छा गया । मैंनें गाडी वैसे ही छोडी और तेजी से कुछ कदम दूर खडे मजदूर की ओर लपका । मेरी श्रीमति मेरे इस अचानक लपकने के कारण चकरा गई और वो भी मेरे पीछे आ गई, मुझे यूं देखने लगी मानो कह रही हो ' क्या हुआ ?' उस मजदूर के पास पहुचते ही मेरा गुस्सा कुछ शांत हो गया था । मैनें उससे छत्तीसगढी में पूछा ' छत्तीसगढी जानथस ?' वह अचानक मेरे को अपने सामने पाकर तनिक घबरा गया, बोला 'हॉं, हमन तो छत्तीसगढिया आन ' मेरा मन तो हुआ कि एक झन्नाटेदार झापड उसके गाल में रसीद करूं पर अपने आप को संयत करते हुए मैनें दूसरा प्रश्न दागा ' अंकल के स्पेलिंग जानथस ?' अब वह घुनमुनाने लगा, उसके साथ के सब मजदूर

एक माटी प्रेमी का स्‍क्रैप

आरकुट में मेरे एक मित्र का जन्‍म भूमि के माटी प्रेम से सराबोर एक स्‍क्रैप आया । भाई नें उस स्‍क्रैप में 1975 में एक प्रसिद्ध छत्‍तीसगढी साहित्‍यकार की कविता को आरकुट के सहारे हमें लिख भेजा । रचना बहुत ही प्रेरणास्‍पद व संग्रहणीय है इस कारण हमने उसे अपने छत्‍तीसगढी ब्‍लाग में पब्लिश किया है । आपसे अनुरोध है कि इसे देखें एवं कमेंट उसी ब्‍लाग में देकर उनका उत्‍साह बढावें । लिंक - गुरतुर गोठ

आईये याद ताजा कर लें रवि रतलामी CNN-IBN में

First Hindi Blog Promo Amitabh will Blog in Hindi और अंत में लालू परसाद की कविता सभी वीडियो यूट्यूब से साभार

लैपटाप : एक ब्लागर की आत्मकथा (कहानी)

किचन से पत्‍नी की बर्तनों पर उतरते खीज की आवाज तेज हो गई थी । मैं अपने लेपटाप में हिन्‍दी ब्‍लागों को पढने में मस्‍त था । ‘डिंग ! ’ जी टाक से आये संदेश नें ध्‍यान आकर्षित किया । ’10.45 को मिलो, आवश्‍यक है ।‘ यह प्रिया का संदेश था । मैंनें ब्‍लाग को मिनिमाईज कर जी टाक के उस मैसेज बाक्‍स को खोला, जवाबी संदेश लिखने वाला ही था कि प्रिया जी टाक से आफलाईन हो गई । मैंनें टेबल में पडा हुआ अपना मोबाईल उठाया जो मेरे पेशे के कारण सामान्‍यतया वाईब्रेट मोड में ही रहता है । प्रिया के चार मिस्‍ड काल थे । पत्‍नी का मूड मुझे देर रात एवं सुबह से लेपटाप में घुसे देखकर खराब था । मैनें उसे किचन में झांका और उससे बिना कुछ कहे फ्रैश होने टाईलेट में घुस गया । आनन फानन में मुझे तैयार होते देखकर पत्‍नी के घंटों से बंद मुह से शव्‍द फूटे ‘ कहॉं जा रहे हो ? आज तो सन्‍डे है ना ? ’ ‘हॉं यार एक जरूरी मीटिंग है, एकाध घंटे में वापस आ जाउंगा फिर आज फिल्‍म देखने जायेंगें । और हां खाना भी आज बाहर ही खायेंगें ।‘ बोलते हुए मैं गैरेज में रखी बाईक को निकालने लगा । ’मीटिंग है तो इसे क्‍यों छोड जा रह

संकल्पशक्ति का अभाव : छत्तीसगढ में नक्सलवाद

पिछले दिनों से छत्‍तीसगढ में नक्‍सलवाद बनाम सलवा जुडूम या मानवाधिकर का हो हल्‍ला अंतरजाल संसार में छाया हुआ है । लगातार किसी न किसी ब्‍लाग में सनसनीखेज आलेख प्रकाशित हो रहे हैं । इस कलम घिसाई में पत्रकारों, ब्‍लागरों, समाज सेवकों, चिंतकों के साथ ही हमारे पुलिस प्रमुख भी पहले से ही रंग चुके कैनवास में अपनी कलम की स्‍याही उडेल रहे हैं । पहले दैनिक छत्‍तीसगढ में फिर हरिभूमि में और अब ब्‍लाग पर । लेखन चालू आहे । पर परिणाम सिफर है, मानवाधिकारवादी, गांधीवादी, छत्‍तीसगढ के तथाकथित हितचिंतक सभी कलम घिस रहे हैं इसलिये कि, छत्‍तीसगढ में लेखन के द्वारा जनजागरण होगा और नक्‍सली अपना हथियार नमक के दरोगा के पास डालकर आत्‍मसर्मपण करेंगें और पुलिस मानवाधिकार की रक्षा में प्रतिबद्ध होकर अपराधियों के चूमा चांटी लेगी । ‘लिखते रहो, लिखते रहो’ कई ब्‍लागर्स मित्र ब्‍लाग में बडी मेहनत से तैयार की गई व पब्लिश की गई पोस्‍टों पर ऐसी ही टिप्‍पणी देते हैं । पिछले दिनों दिल्‍ली के एक पत्रकार नें तो गजब ढा दिया वो इसलिये क्‍योंकि छत्‍तीसगढ के लोग कहते हैं कि अन्‍य प्रान्‍त से छत्‍तीसगढ की दशा देखने व लिखने की मं

अहिमन कैना : छत्तीसगढी लोक गाथा

रानी अहिमन राजा बीरसिंग की पत्‍नी है । एक दिन उसे तालाब में स्‍नान करने की इच्‍छा होती है इसके लिये वह अपनी सास से अनुमति मांगती है । उसकी सास कहती है कि घर में कुंआ बावली दोनो है तुम उसमें नहा लो तालाब मत जाओ तुम्‍हारा पति जानेगा तो तुम्‍हारी खाल निकलवा लेगा । अहिमन बात नहीं मानती और अपनी चौदह सेविकाओं के साथ तालाब स्‍नान के लिये मिट्टी के घडे लेकर निकल पडती है । तालाब में नहाने के बाद वह अपनी मटकी को खोजती है । उसकी मटकी को तालाब में आये एक व्‍यापारी अपने कब्‍जे में ले लेता है अहिमन के मटकी मांगने पर व्‍यापारी उसे पासा खेलने पर देने की बात कहता है । अहिमन कैना पासा के खेल में अपने सभी गहने हार जाती है और दुखी मन से कहती है कि अब जा रही हूं गहने नही देखने पर मेरे सास ससुर मुझे गाली देंगें । तब व्‍यापारी उसे उसका मायका व ससुराल के संबंध में पूछता है । अहिमन बताती है कि दुर्ग के राजा उसके भाई है और दुर्ग उसका ससुराल है । व्‍यापारी का दुर्ग राजा (महापरसाद) मित्र रहता है अत: वह उसे बहन मान सभी हारे गहनो के स्‍थान पर नये गहने, सोने का मटका व नई साडी देता है । अहिमन अपने सेविकाओं के साथ अपन