आभासी दुनिया के दीवाने : ब्लागर्स सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

आभासी दुनिया के दीवाने : ब्लागर्स

सन् 1995 से भारत में इंटरनेट के पदापर्ण के बाद से नेट में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए भारत के लोग निरंतर प्रयास में लगे रहे हैं जो आज तक जारी है। अंग्रेजी वेबसाईटों के बाद इंटरनेट में हिन्दी वेबसाईटें भी धीरे धीरे छाने लगी है इसी के साथ भारत में इंटरनेट के कनेक्शनों में भी भारी वृद्धि हुई है। विकासशील देशों के इन नेट प्रयोक्ताओं को टारगेट करते हुए इंटरनेट में विज्ञापन के द्वारा अरबों आय कमाने वाली कम्पनियों के द्वारा अपने वेबसाईटों में ट्रैफिक बढ़ाने के उद्देश्य से विभिन्न प्रयोग भी किये हैं। जिसमें ई मेल, कम्यूनिटी वेब साईट व ब्लाग आदि शामिल हैं, इससे इंटरनेट में सर्फिंग करने वालों को देर तक नेट में बांधे रखने का कार्य भी हुआ है। इसके नेपथ्य में साईटों में लगे विज्ञापन को अधिकाधिक लोगों तक पहुंचाना रहा है ।

कम्पनियों का उद्देश्य कुछ भी हो पर इसके चलते अपनी भावनाओं का आदान प्रदान करने की इच्छा संजोये लोगों को ब्लाग सौगात के रूप में एक बेहतर व विश्वव्यापी प्लेटफार्म मिला है, जो इस सदी के अंतरजाल विकास का उल्लेखनीय सोपान है ।

ब्लाग लेखन को हिन्दी जगत नें विभिन्न परिभाषाओं से नवाजा है, वहीं इस पर वाद- विवाद एवं मत भिन्नता भी प्रदर्शित हुई है । किसी नें इसे डायरी लेखन कहा तो किसी नें इसे वर्तमान परिस्थिति के अनुसार 'कबाड़' तो किसी नें इसे 'साहित्य' की श्रेणी में खड़ा किया । परिभाषाओं एवं इसकी विषय सामाग्री पर हो रहे विवादों से परे यदि हम इसके लेखकों के उद्देश्यों पर अपना ध्यान आकर्षित करें तो यह बात उभर कर सामने आती है कि 4000 हिन्दी ब्लागर्स, किसी न किसी रूप में इंटरनेट पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिये लगातार प्रयास करते नजर आ रहे हैं ।

पहले अपनी लेखनी को जनता तक ले जाने का माध्यम प्रिंट मीडिया ही रहता था, जहां कुछ अपवादों को छोडक़र, स्थापित लेखकों व संपादकों के रहमों करम पर रचनायें जनता तक पहुचती थीं । छपने के बाद एक- एक कहानी या कविता पर देश में जगह जगह छोटी छोटी गोष्ठियां होती थीं उससे संबंधित समाचार छपते थे । टिप्पणीकार समीक्षक बनकर गली के पानठेलों पर अपनी स्तुति गान खुद करता था और लोग दबी जुबान में उसका साथ देते थे। अब ब्लाग ने ऐसे मठाधीशों की कलई खोलकर रख दी है यहां तो पोस्ट पब्लिश हुआ कि पूरा विश्व एग्रीगेटरों के सहारे गोष्ठी कर लेता है और बिना माल्यार्पण समाचार पत्र में समाचार छपवाये जाते हैं । ऐसे लोग जो कागज रंगते थे पर छपते नहीं थे, या छपने भेजते भी नहीं थे, उनकी डायरियों और मानस में भावनायें भरी पड़ी रहती थी, ऐसे रचनाकारों को तो ब्लाग नें बढिय़ा अवसर दिया है। सही मायनों में ऐसे ही रचनाकारों नें ही, ब्लाग को पठनीय व स्तरीय बनाया है । इनके कारण ही ब्लाग की चर्चा अब प्रिंट मीडिया को भी करना पड़ रहा है।

पिछले दिनों अपनी दमदार लेखनी व निरंतरता के कारण हिन्दी ब्लाग जगत में कम समय में ही छा जाने वाले अनेक ब्लागरों ने ब्लाग लेखन के मुद्दों पर चर्चा करते हुए लिखा था कि हिन्दी ब्लागर्स अपने मानस में एक आभासी दुनिया का निर्माण करते हैं जिसमें ब्लाग उनके स्वयं के आभासी व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करता है। ब्लागर्स अपनी इसी दुनिया का आनंद लेता है, जो वह बोलना चाहता है, पाडकास्ट पर दिल खोलकर बोलता है ब्लाग पर लिखता है । उसकी बातों को लोग सुनते हैं और उसकी लेखनी को लोग पढ़ते भी हैं , इससे वह संतुष्ट होता है । मनोवैज्ञानिक भी कहते हैं कि यदि मनुष्य अपनी भावनाओं को व्यक्त न कर पाये तो कुंठा ग्रस्त हो जाता है, तो यहां उसी कुंठा का इलाज होता है।

17 दिसम्बर 1997 से जान बर्जर का Logging the Web - Blog का क्रांतिकारी पदार्पण आभासी दुनियां के दीवानों का मयखाना है जहां टिप्पणीकार व पाठक शाकी है तो ब्लागर व वर्डप्रेस पैमाने और ब्लाग लेखक के शब्द जाल हैं। इस आभासी किन्तु ज्ञान के मधुशाला में सब मदमस्त हैं, आईये आप भी एक बार हमारी इस महफिल में ...

मधुर भावनाओं की सुमधुर
नित्य बनाता हूँ हाला,
भरता हूँ इस मधु से अपने
अंतर का प्यासा प्याला,
उठा कल्पना के हाथों से स्वयं
उसे पी जाता हूँ,
अपने ही में हूँ मैं साकी,
पीनेवाला, मधुशाला।।

संजीव तिवारी
(यह लेख उदंती.काम के अगस्‍त' 2008 अंक में प्रकाशित है )

टिप्पणियाँ

  1. दीपक नामक एक अभासी दुनिया के दिवाने ने अपनी उपस्थिती दर्ज करायी !!

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  2. ठीक है संजीव भाई...आपसे तो कई लोग यह कहेंगे." कनखियों से देख देख आदत लगा दी, अब पास आ गए है तो दीवाना बुलाते हो."

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  3. वाह जी, खूब रही यह मधुशाला!!

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  4. यह लेख वस्तुत बहुत अच्छा है।

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