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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

रवि रतलामी को प्रतिष्ठित मंथन - दक्षिण एशिया पुरस्कार 2009

चिट्ठा चर्चा में 22 दिसम्बर की चर्चा में तरकश डाट काम को प्रतिष्ठित मंथन - दक्षिण एशिया पुरस्कार 2009 मिलने की जानकारी दी गई थी. दूसरे दिन की चर्चा में यह ज्ञात हुआ कि यह प्रतिष्ठित पुरस्कार  हम सबके प्रिय चिट्ठाकार रवि रतलामी को भी प्रदान किया गया है. इस पोस्ट पर रवि भाई नें टिप्पणी कर इसे स्पस्ट किया - आप सभी का धन्यवाद. वैसे, पुरस्कार मुझे नहीं, मेरे एम्बीशियस, पेट प्रोजेक्ट - छत्तीसगढ़ी प्रोग्राम सूट - केडीई 4.2 को मिला है. और पुरस्कार का नाम मीडिया मंथन नहीं, बल्कि आई टी सेक्टर का मंथन पुरस्कार है. अधिक जानकारी यहाँ देखें - http://www.manthanaward.org/section_full_story.asp?id=803. यह हमारे लिये यह बहुत ही उत्साहजनक समाचार है. 13 श्रेणियों में दिया जाने वाला प्रतिष्ठित मंथन पुरस्‍कार   जमीनी स्तर पर स्थानीय भाषा सामग्री के डिजिटल उपकरणों में प्रयोग के रूप में छत्तीसगढी आपरेटिंग सिस्टम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानें के लिए रवि शंकर श्रीवास्तव जी को प्रदान किया गया है . रवि भाई नें अपनी निस्ठा और लगन से परिश्रमपूर्वक यह छत्तीसगढी आपरेटिंग सिस्टम बनाया है, यह उनके कल्

छत्तीसगढ़ के हिन्दी चिट्ठों का वार्षिक विश्लेषण

अंतरजाल में बडी तेजी से हिन्दी भाषा की बनती पैठ में हिन्दी ब्लागों का योगदान अहम है. अंतरजाल में अन्य भाषाओं की तुलना में हिन्दी चिट्ठों का भविष्य क्या होगा इस पर चिंतन न करते हुए हिन्दी चिट्ठों की समृद्धि से हम आशान्वित हैं कि अभी और इसका विकास होगा. भाई रविन्द्र प्रभात जी नें अपने चिट्ठे परिकल्पना पर इन विषयों पर गहन अध्ययन करते हुए वार्षिक चिट्ठों का गंभीर विश्लेषण प्रस्तुत किया है. इनके वार्षिक परिकल्पना लेखों में समस्त हिन्दी चिट्ठों के संसार को समाहित किया गया है. हमें विश्वास है उनके ये विश्लेषणात्मक लेख हिन्दी चिट्ठाकारी को नई दिशा देनें में समर्थ होंगें. भाई रविन्द प्रभात की परिकल्पना लेखों में से देश के बडे नक्शे का आदर करते हुए हम यदि अपने प्रदेश के भौगोलिक नक्शे पर नजर डालें तो हमारे प्रदेश से शरद कोकाश , बी.एस.पाबला , गिरीश पंकज , जी.के.अवधिया , ललित शर्मा ,  राजकुमार ग्वालानी , डॉ. महेश परिमल , एवं मेरे चिट्ठों का दशावतार एवं नव-उपरत्नो   में नामोल्लेख आया है. हम इसे पढ कर उत्साहित हैं इसके पीछे जो भावनांए रही है वह आप मेरे इस लेख से पूरी तरह से समझ सकते हैं. छ

नक्सलवाद की तथा कथा - कनक तिवारी की पुस्तक 'बस्तर: लाल क्रांति बनाम ग्रीन हण्‍ट’

बस्तर में नक्सलवाद को लेकर ' छत्तीसगढ़ ’ और ' इतवारी अखबार ’ के सुपरिचित लेखक तथा प्रदेश के सीनियर एडवोकेट कनक तिवारी के अपने निजी विचार और तर्क रहे हैं। उनके कई लेख 'छत्तीसगढ़’ में प्रकाशित होकर बहुचर्चित हुए हैं। कनक तिवारी की दृष्टि बस्तर में नक्सलवाद को लेकर शासकीय नीतियों और कार्यक्रमों में आदिवासी कल्याण की अनदेखी करने के कारण सत्ता प्रतिष्ठान की समर्थक नहीं है। उहोंने संविधान के आदेशात्‍मक और वैकल्पिक प्रावधानों को अमल में नहीं लाने के कारण राज्‍यपाल पद के विवेकाधिकारों की भी समीक्षा की है। कनक तिवारी का मानना है कि नक्सलवाद मूलत: एक हिंसात्‍मक विचारधारा है जो पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी क्षेत्र में बड़े किसानों और जमींदारों के गरीब किसानों पर किए जा रहे अत्‍याचारों के कारण पहले तो एक विद्रोह के रूप में पैदा हुई और बाद में उस पर धीरे-धीरे माओवाद का मुलम्मा चढ़ाया गया। गांधीवादी दृष्टि के कट्टर समर्थक होने के कारण कनक तिवारी माओवाद या तथाकथित नक्सकलवाद के जरिए राजनीतिक परिवर्तन लाने के किसी भी हिंसक संकल्प का पुरजोर विरोध करते हैं। उनका लेकिन साथ-साथ यह भी मानना ह

हिन्‍दी ब्‍लाग लिखिये और पैसा कमाईये, मुफ्त में कीबोर्ड कुटाई के दिन अब लद गए.

हिन्‍दी के लगातार बढते ब्‍लागों के बावजूद अभी तक यह माना जा रहा था कि हिन्‍दी ब्‍लागों से अभी आमदनी कुछ भी नहीं होने वाली है. उल्‍टा नेट के पैसे और ब्‍लाग में रमने का समय दोनों बेहिसाब खर्च हो रहे हैं. गूगल एडसेंस के हिन्‍दी ब्‍लागों से रूठ जाने के कारण प्राय: सभी हिन्‍दी ब्‍लागरों का यह मानना रहा है कि ब्‍लाग लेखन से आय हिन्‍दी के बजाए अंग्रेजी ब्‍लागों के जरिए ही संभव है. समय समय पर इस संबंध में काफी टिप्‍पणीपाउ पोस्‍ट भी लिखे गए और आशा का डोर थामे हुए हिन्‍दी ब्‍लागर न केवल जमें रहे बल्कि दो-दो चार-चार दस-दस ब्‍लाग एक साथ लिखते रहे हैं. हम में से अधिकांश हिन्‍दी ब्‍लागर्स ब्‍लाग लेखन से पैसा कमाने के जुगत में निरंतर लगे हैं किन्‍तु प्रिट मीडिया में हमारे ब्‍लाग के कुछ पोस्‍टों के प्रकाशन से प्राप्‍त दो-चार सौ रूपयों के अतिरिक्‍त कोई बडी और नियमित आमदनी नहीं हो पाई है. हम लगातार प्रयासरत रहे कि छत्‍तीसगढ के राजनैतिक नेताओं के बैनर में नियमित ब्‍लाग लेखक के रूप में हम अपने हिन्‍दी ब्‍लाग लेखन को व्‍यावसायिक रूप दे पायें किन्‍तु यह नहीं हो पाया. वहीं एक अनाम ब्‍लागर बिना आहट प्रोफेश

कबाड में छुपे सौंदर्य को रूप देती एक कला साधिका : रश्मि सुन्‍दरानी

हजारों लाखों लोगों नें चंडीगढ के राक गार्डन को देखा होगा और सबने उसे सराहा होगा किन्‍तु राक गार्डन बनाने वाले पद्मश्री सम्मान से सम्मानित नेक चंद सैणी की सृजनशील मानस जैसा चिंतन और उनके पदचिन्‍हों पर चलते हुए उसे साकार करने का प्रयास बिरले लोगों नें किया होगा। इन्‍हीं में से एक हैं नगर पालिक निगम दुर्ग के आयुक्‍त, राज्‍य प्रशासनिक अधिकारी श्री एस.के.सुन्‍दरानी की धर्मपत्‍नी श्रीमती रश्मि सुन्‍दरानी । राक गार्डन की कला नें उन्‍हें इतना प्रभावित किया कि उनकी कल्‍पनाशील मन नें न केवल राक गार्डन में लगाए गए कलाकृतियों के सौंदर्य और उनकी कलागत बारीकियों को आत्‍मसाध किया वरण उससे कुछ अलग हटकर काम करने का जजबा मन में पाला ओर एक संसार रच डाला। कल्‍पनाओं को साकार स्‍वरूप देने का जजबा लिये पर्यावरण अभियांत्रिकी में स्‍नातकोत्‍तर श्रीमती रश्मि सुन्‍दरानी नें जब दुर्ग नगर निगम में अपने आयुक्‍त पति के साथ कदम रखा तो नगर पालिक निगम के स्‍टोर्स में पुराने रिक्‍शों, कचरा ढोने वाले हाथ ठेलों, मोटर बाईकों और गाडियों के टायरों, रिंगों का कबाड अंबार के रूप में भरा देखा। नगर पालिक निगम दुर्ग विभागीय नि

भरी जवानी में ब्‍लागिया वानप्रस्‍थ से धबराया ब्‍लागर

मेरे द्वारा पिछले कुछ महीनों से ब्‍लाग नहीं लिख पाने एवं कई महीनों से ब्‍लागों में टिप्‍पणी नहीं कर पाने की स्थिति पर ललित शर्मा जी नें मजाकिया लहजे में उमडत घुमडत विचार ब्‍लाग पर टिप्‍पणी की थी कि मैंनें वानप्रस्‍थ ले लिया है। (हालांकि उन्‍होंनें यह टिप्‍पणी मेरे व्‍यावसायिक कार्यगत समस्‍याओं के चिंता स्‍वरूप स्‍नेहवश लिखा था) मैंनें भी इसे मजाकिया रूप से स्‍वीकार कर तो लिया किन्‍तु गहरे में इस पर पडताल भी करने लगा कि ब्‍लागों पर टिप्‍पणी नहीं कर पाना नई परिभाषा के अनुसार एक तरह से ब्‍लाग जगत से वानप्रस्‍थ लेना है, और बतौर हिन्‍दी ब्‍लागर वानप्रस्‍थ लेने की बात पर चिंता होने लगी क्‍योंकि यही एक ऐसा जरिया है जिसके सहारे हम अपनी बात अपने बहुतेरे मित्रों तक सामूहिक रूप से साझा कर पाते हैं भले ही हमारी बातें, हमारे विषय की उपादेयता बहुसंख्‍यक हिन्‍दी जगत के लिए हो या न हो. सो हम ब्‍लागजगत में सक्रिय रहने के पुन: जुगत लगाने लगे हैं, किन्‍तु परेशानी बरकरार है. ब्‍लाग पोस्‍टों को पढने के बाद साथी चाहते हैं कि कि कम से कम उनके ब्‍लाग पर 'उपस्थित श्रीमान' की टिप्‍पणी लगा कर वापस जा

दुर्ग में ब्लागरों की चिंतन बैठक में हावर्ट् फ़्रास्ट के ‘आदि विद्रोही’ भी

दुर्ग में ब्लागरों की मैथरान बैठक के बीच शरद कोकाश जी से हावर्ट् फ़्रास्ट के ‘आदि विद्रोही’ पर भी चर्चा हुई, हमने बतलाया कि यह किताब हमारे ब्लागर साथी फुरसतिया अनूप शुक्ल जी को बहुत पसंद है तो शरद जी नें बतलाया कि यह किताब भोपाल के अजित वडनेरकर जी को भी बहुत पसंद है और स्वयं उन्हें शरद जी को भी पसंद है. हमने मायूसी जाहिर की कि हम अपनी उत्सुसकता के बावजूद इसे पढ नहीं पाये हैं तो शरद जी नें अपने विशाल लाईब्रेरी में से ‘आदि विद्रोही’ निकाल कर दिखाया और हमने अपना कैमरा चमकाया. मैथरान बैठक की रपट शीध्र ही आपको मिलने वाली है अभी चित्रों का मजा लीजिये सूर्यकांत गुप्‍ता जी , राजकुमार ग्‍वालानी जी , शरद कोकाश जी , ललित शर्मा जी , बी.एस. पाबला जी एवं बालकृष्‍ण अय्यर जी मालवीय नगर चौक पर अनिल पुसदकर जी से गुफ्तगू ब्‍लागों को कम्‍प्‍यूटर में निहारते हुए गहन चर्चा में मशगूल ब्‍लागर महू फोटू इंचा लेतेव भईया, किताब मन के संग फोटू बने पढईया-लिखईया दिखहूं, कोन जनी इही ला देख के मोर गरिबहा बिलाग म टिप्‍पणी के बढोतरी हो जाए.

रामहृदय तिवारी रंगकर्म और भाषा के आगे-पीछे का संघर्ष डॉ. परदेशीराम वर्मा

पिछले छ: माह से छत्‍तीसगढ के ख्‍यात निर्देशक, रंगकर्मी व शव्‍द शिल्‍पी श्री रामहृदय तिवारी से मिलने और कुछ पल उनके सानिध्‍य का लाभ लेने का प्रयास कर रहा था किन्‍तु कुछ मेरी व्‍यस्‍तता एवं उनकी अतिव्‍यस्‍तता के कारण पिछले शनीवार को उनसे मुलाकात हो पाई. सामान्‍यतया मैं उनके फोन करने और उनके द्वारा मुझे बुलाने पर नियत समय पर पहुंच ही जाता हूं किन्‍तु इन छ: माह में मुझे कई बार उनसे क्षमा मांगना पडा था. पिछले दिनों हमारी मुलाकात छत्‍तीसगढ के विभिन्‍न पहलुओं पर निरंतर कलम चला रहे प्रो. अश्विनि केशरवानी जी के दुर्ग आगमन पर हुई थी तब श्री रामहृदय तिवारी जी द्वारा हमें दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित किया गया था और उन्‍होंनें अपनी व्‍यस्‍तताओं के बीच हमें लगभग पूरा दिन दिया था तब सापेक्ष के संपादक डॉ. महावीर अग्रवाल जी भी हमारे साथ थे. कल के मुलाकात में हिन्‍दी की प्राध्‍यापिका डॉ. श्रद्धा चंद्राकर द्वारा सर्जित किए जा रहे लघुशोध ग्रंथ- 'छत्तीसगढ़ी लोकनाट्य को समृद्ध करने में निर्देशक रामहृदय तिवारी का अवदान’ पर भी चर्चा हुई जिसके संबंध में डॉ. श्रद्धा का कहना है कि यह लघु शोघ प्रबंध संपूर्

महाभारत से गहरा नाता रहा है छत्तीसगढ का - वीरेन्द्र कुमार सोनी

अपनी मातृभूमि के इतिहास को समझने की दृष्टि का विकास और अपनी भूमि के प्रति आसक्ति के आधार पर इस आलेख में छत्‍तीसगढ़ के प्राचीन काल से संबंधित इतिहास के बनते प्रसंगों का सृजनात्‍मक संदर्भो में रूपायन का प्रयास किया है। जिसमें महाभारत कालीन घटनाओं का सिलसिलेवार उल्लेख है। लेखक का मानना है कि इन घटनाओं के आधार पर दक्षिण कोशल यानि हमारे छत्‍तीसगढ़ का महाभारतकाल से गहरा नाता रहा है। छत्‍तीसगढ़ के अनेक नगरों एवं स्थानों का नाम जो आज भी प्रचलित है उनमें इस बात की पुष्टि भी होती है मसलन, गंडई पंडरिया (गाण्‍डीव पाण्‍डवरिया), भीम खोह (भीम खोज), अरजुन्‍दा, गाण्‍डीव देह (गुण्‍डरदेही), सहदेव पुर, भीम कन्‍हार, देवपाण्‍डप, पंच भैय्या, यादवों का गॉंव नंदगांव (राजनांदगांव), भील-आई (भिलाई) प्रमुख है। लेखक ने छत्‍तीसगढ़ अंचल के विभिन्‍न स्थानों के नाम के आधार पर उनका महाभारतकालीन साम्य ढूढऩे की कोशिश की है। यह सर्वविदित तथ्‍य है और पुराणें में इसका उल्लेख है कि त्रेतायुग में घटित भगवान श्री राम एवं रावण के मध्‍य युद्ध के पश्चात वानरों एवं भालुओं ने अपनी राजधानी किष्किंधा पर्वत के पम्पापुर नामक स्थान पर बन

जय लट्ठेश्‍वरनाथ की प्रतिक्रिया में .....सन्दर्भ : हरिभूमि 16 व 20.11. 2009

पिछले दिनों प्रलेस की एक गोष्‍ठी एवं बिलासपुर के प्रख्‍यात रावत नाच महोत्‍सव में सम्मिलित होने गए दुर्ग-भिलाई के साहित्‍यकारों के रेल से वापसी के समय आरक्षित बोगी में बैठ जाने एवं एक लाठी को लट्ठेश्‍वरनाथ बनाकर बोगी में निर्विघ्‍न सीट कब्‍जा करने का किस्‍सा साहित्‍यजगत में छाए रहा वहीं हरिभूमि रायपुर के पत्रकार श्री राजकुमार सोनी नें इस वाकये पर हरिभूमि के विशेष कालम में दिनांक 16 व 20 नवम्‍बर को लम्‍बा - लम्‍बा लेख लिख कर इसे संपूर्ण प्रदेश में विमर्श हेतु प्रस्‍तुत कर दिया.  हम आगे प्रयास करेंगें, इस लेख और इस पर लोगों की प्रतिक्रियाओं को क्रमश: प्रकाशित करें. इसी कडी में हमें मेल से भिलाई के साहित्‍यकार एवं मुक्‍तकंठ के संपादक सतीश कुमार चौहान नें अपनी प्रतिक्रिया प्रेषित की है, पाठकों के लिए यह प्रस्‍तुत है. - जय लट्ठेश्‍वरनाथ के माध्यम से लेखक राज कुमार सोनी ने प्रदेश के तमाम उन साहित्यिक मठाधीशों पर अपनी भडास निकाली वह गैरवाजिब नही हैं, दरअसल लेखक जो लिख रहा हैं वह उसके लम्बें अनुभव का परिणाम हैं, जिस पर अलग से बहस की जा सकती हैं .......................को ही इसकी पहल करनी चाहिय

छत्तीसगढ़ी नाचा के दधीचि दुलारसिंह साव मदराजी

देवासुर संग्राम में देवों के विजय के लिए दधीचि ने हड्डीयों का दान दिया था । वैसे ही छत्तीसगढ़ी लोकमंच की अंत्यन्त लोकप्रिय विधा नाचा के लिए दुलारसिंह साव मदराजी ने भी इसी परंपरा में अपना सर्वस्व होम कर दिया था । लोकमंच के संवर्धनकर्त्ता दाऊओं में दुलारसिंह साव मदराजी ही अकेले उदाहरण हैं जो सौ एकड़ जमीन के मालिक के रूप में मंच पर आये और चालीस वर्ष मंच पर रोशनी बिखरने के बाद जब इस लोक से विदा हुए तो - सिंकदर जब गया दुनियां से दोनों हाथ खाली थे । मदराजी दाऊ सर्वस्व अर्पित करने वाले महान भक्तों की परंपरा के छत्तीसगढ़ी कलाकार थे । वे ही सबसे पहले हारमोनियम लेकर छत्तीसगढ़ी लोकमंच पर अवतरित हुए । वे स्वयं विलक्षण हारमोनियम वादक थे । जीवन की संध्या में जब बारी बारी सब साथ छोड़ गये तब भी उनके पास हारमोनियम रह गया । जमीन-जायदाद सब लुट गए रह गया हारमोनियम । उस्ताद वादक कलाकार मदराजी दाऊ अंतिम दिनों में छोटे छोटे नाचा दलों में हारमोनियम बजाते थे । वह भी अनुरोध के साथ । बुलवाराम, ठाकुरराम, बोड़रा जैसे महान नाचा कलाकारों को एक जगह रिंगनी रवेली साज के मंच पर एकत्र कर मदराजी दाऊ ने नाचा का वो रिंगन

द्विअर्थी साखियां व अन्‍य साखियां

द्वि अर्थी साखियां - नाचा में यदा - कदा द्विअर्थी साखी का प्रयोग किया जाता है। सुनने में अश्लील लगते हैं किंतु भवार्थ स्पष्ट   करने पर अश्लीलता की परिधि से बाहर आ जाते हैं। नाचा में इस तरह की साखियां पहले कही जाती थी किंतु अब इसका प्रयोग नहीं किया जाता, अश्लीलता व अशिष्ट ता से बचने के लिए। एक तो वैसे भी अभिजा त्‍य वर्ग नाचा व नाचा कलाकारों को अशिष्ट   कहता और हेय दृष्टि   से देखता है। आज पाश्चा त्‍य प्रभावों से ग्रसित अभिजा त्‍य व शिष्ट   समाज की अशिष्टता व अश्लीलता ही उसकी शिष्टता है। ब्‍लू फिल्म देखने के आदि शिष्ट   समाज को नाचा में अश्लीलता नजर आती है पर ब्‍लू फिल्मों में नहीं। कुछ द्विअर्थी साखियां - छाती से छाती मिले , मिले पेट से पेट। दूनों में रगड़ घ सड़ होय , निकले सफेद - सफेद।। उपरोक्त साखी में स्थूलत : एकाकार स्‍त्री - पुरुष की संभोग क्रिया का अर्थ आशातीत होता है। जबकि सूक्ष्मत : इसका भावार्थ चक्‍की से हैं। चक्‍की के दो पाट होते हैं दोनों में रग