विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
शब्द तो सभी बोलते हैं
छापते हैं
मूल्यवान होते हैं
शब्दकोश में तो
शब्दों की सर्वाधिक
भीड ही होती है
लेकिन कवि के द्वारा
प्रयुक्त कविता के शब्द
कुछ भिन्न ही हुआ करते हैं
क्योंकि समय आने पर
कवि तो मर जाता है
परन्तु कविता के शब्द
अनन्त काल तक
मुखर बने रहते हैं ।
नारायण लाल परमार
01.01.1927 - 27.04.2003
कोई अफसोस नहीं बीत गई रात का
मुझको विश्वास बहुत इस नये प्रभात का
गत पांच दशकों में हिन्दी गीत की परम्पराओं के साथ समकालीन भावबोध का कुशल संयोजन करके अपार सफलता एवं प्रतिष्ठा अर्जित करने वाले प्रदेश के वरिष्ठ गीतकार आदरणीय स्व.नारायण लाल परमार जी को नमन, वंदन ... श्रद्धासुमन ..
संजीव तिवारी
सृजन के प्रारम्भ में शब्द था। अंत में भी शब्द बचेगा। कवि जीवित रहेगा कविता में।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
जी नमस्कार,
जवाब देंहटाएंसबसे पहले तो नए साल पे आपको ढेरो बधाई और मंगलकामनाएं ,और साथ में इतनी खुबसूरत और साफ-सुथरी kvita के लिए आपको ढेरो आभार...
अर्श
भावपूर्ण हिन्दी गीतों की परम्परा को शब्दों में जीवंत रखने वाले साहित्यकार को शत-शत वंदन .
जवाब देंहटाएंसंजीव जी आपको शुभ कामनाएं .............
वाकई कवि रहे या न रहे , उसकी रचनाएँ अमर हो जाती हैं ,,
जवाब देंहटाएंश्रद्धेय परमार जी को मेरा भी नमन, विनम्र श्रद्धांजली
आपका
विजय