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जून, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

क्‍या नशेबो फराज थे तनवीर, जिन्‍दगी आपने गुजार ही दी : हबीब तनवीर (Habib Tanveer)

1 सितम्‍बर 1923 को बैजनाथपारा, रायपुर, छत्‍तीसगढ में जन्‍में हबीब अहमद खान के पिता हाफिज मुहम्‍मद हयात खान माता नजीरून्निशा बेगम थीं । रायपुर से चलते हुए इस पथिक नें पूरी दुनियॉं नापी, दुनियां के लगभग सत्रह देशों में अपनी नाट्य प्रस्‍तुतियां दी और ढेरों सम्‍मान एवं पुरस्‍कार अर्जित किये। नाट्य के लिये संगीत नाटक अकादमी का पुरस्‍कार 1969, शिखर सम्‍मान 1975, मनोनीत राज्‍य सभा सदस्‍य, जवाहर लाल नेहरू फेलोशिप, पं. सुन्‍दर लाल शर्मा पीठ रविशंकर विवि में विजिटिंग प्रोफेसर, अंतर्राष्‍ट्रीय नाट्य महोत्‍सव में फ्रिंज फस्‍ट एवार्ड एडिनबरा 1982, भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से विभूषित 1982, इंदिरा कला संगीत विवि से डी.लिट की मानद उपाधि 1983, दिल्‍ली साहित्‍य कला परिषद का पुरस्‍कार 1983, नांदीकार पुरस्‍कार कलकत्‍ता, महाराष्‍ट्र राज्‍य उर्दू अकादमी पुरस्‍कार, आदित्‍य बिडला पुरस्‍कार, मध्‍य प्रदेश हिन्‍दी साहित्‍य सम्‍मेलन का भवभूति अलेकरण 1990, कालिदास सम्‍मान 1990, रविन्‍द्र भारती विवि कलकत्‍ता द्वारा मानद डी.लिट की उपाधि 1993, छत्‍तीसगढ शासन का दाउ मंदराजी सम्‍मान 2002, राष्‍ट्रीय अलंकरण पद्मभूषण

रावघाट प्रोजेक्ट को मिली मंजूरी : योद्धा का साकार हुआ स्‍वप्‍न

दिसम्‍बर 2007 में मैंनें एक पोस्‍ट पब्लिश की थी 'रावघाट के योद्धा : अधिवक्‍ता विनोद चावडा' । विनोद चावडा जी की लडाई रंग लाई है और भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने बीएसपी को रावघाट में आयरन ओर (लौह अयस्क) के उत्खनन के लिए 2028.979 हेक्टेयर की पर्यावरण स्वीकृति दे दी है। सुप्रीम कोर्ट की सेंट्रल इंपावर कमेटी की अनुशंसा पर वानिकी स्वीकृति पहले ही मिल गई थी। भारत सरकार ने नवंबर 2008 में ही 883.22 हेक्टेयर वन भूमि को डायवर्सन करने के लिए स्टेज-वन का फारेस्ट्री क्लीयरेंस दे दिया था। उसके बाद से अंतिम पर्यावरण स्वीकृति के लिए फाइल वन एवं पर्यावरण मंत्रालय में लंबित थी। भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार अब रावघाट परियोजना में कोई रोड़ा नहीं है। बीएसपी जब चाहे अपने माइनिंग प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर सकता है। भिलाई स्‍टील प्‍लांट फारेस्ट्री क्लीयरेंस वाले एरिया में माइनिंग कर सकेगा, जिसमें लगभग 511 मिलियन टन लौह अयस्क है। यह 35-40 साल तक के लिए पर्याप्त है। यहां के अयस्क में आयरन की मात्रा लगभग 63 प्रतिशत है, जो लगभग राजहरा के बराबर ही है। रावघाट के लिए लालायित बीएसपी प्रबंधन जैसे-जैस

भीषण प्रदूषण और बट सावित्री

 तपते सूरज के बावजूद उस दिन घर का वातावरण कूल-कूल था, ना ही मेरा बालक धमाचौकडी कर रहा था ना ही श्रीमतिजी उसे शांत रहने को फटकार लगा रही थी। मैंनें घर के सभी कमरों को बडी बारीकी से झांका-ताका, कुछ सूंघने का भी प्रयास किया, कूलर के खस को भी निहारा पर कुछ समझ में नहीं आया। मुझे लगा आज वातावरण में ही तपिश कुछ कम होगी,  पर बरांडे में रंगोली और आटे से ताजा बने शुभ चिन्‍ह और वहां गमले में लगे बरगद के छोटे पेंड को विराजमान हुए देखकर माजरा समझ आ गया।  यह कूल माहौल वट सावित्री व्रत (जिसे छत्‍तीसगढ में 'बरसइत' कहा जाता है ) का था।  हमें याद है गांवों में बरसइत के दिन बडे बरगद के पेड पर सुबह से ही महिलाओं की भीड जमती थी और चढावे में चढाये गये प्रसादों को पाने के लिये बच्‍चों की भीड भी बरगद के आस-पास मंडराती थी। गर्मियों की छुट्टियों में हमें इस त्‍यौहार का बेसब्री से इंतजार रहता था क्‍योंकि गर्मियों में हमारे गांव में हमारे बहुतेरे रिश्‍तेदार आये रहते थे, जिनमें से महिलायें उस दिन सामूहिक रूप से बट वृक्ष को पानी देकर उसकी पूजा अर्चना करतीं थीं और यमराज से भी अपने पति को छीन लाने वाली सावि