विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
आफिस से निकलते ही एक मित्र का फोन आया, लगभग चार साल बाद उसने मुझे याद किया था. उसने पूछा कहां हो मैंनें कहा 'अपनी नगरी में, घर जाने के लिये निकल गया हूं. बोल बहुत दिनों बाद याद किया, तू कहां है. ' 'किस रोड से जा रहे हो.' मित्र नें मेरे प्रश्न का जवाब दिये बिना पूछा. मैनें कहा 'क्यूं बताउं भई, कोई रिवाल्वर लेके खडा है क्या, मुझे उडाने..........' बातें लम्बी चली. मित्र नें कहा 'नेहरू नगर चौंक आवो मै भिलाई आया हूं.'
चौंक में पहुचकर मित्र को पहले ढूंढा, उसके आदत के अनुसार वहां कतार से लगे खाने-पीने की चीजों की गुमटियों में मैनें नजर दौडाई. 'सेक्टर 7 का मशहूर देवी आलूगुण्डा' के बोर्ड को देखकर समझ गया कि दोस्त जरूर यहां होगा. कल्याण कालेज के दिनों में हम सेक्टर सेवन के देवी आलूगुण्डा के लिये देर तक खडे रहते और छीना झपटी के बाद एकाध आलूगुण्डा खाकर ही घर जाते थे. पर दोस्त वहां नहीं था. अब हमने मोबाईल लगाया. दोस्त नें कहा 'तुम्हारे सामने जो होटल दिख रही है 'ग्रॉंड ढिल्लन' उसके पांचवे माले में आवो, लिफ्ट के बाजू में मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं.' हमने कहा कि 'अबे नीचे आ, यहां आलुगुण्डा खाते हैं, यहीं बैठकर बातें करेंगें.' पर उसने कहा 'प्लीज'.
उसके प्लीज के कारण हम चले तो गये उपर काफी बातें हुई देर तक हमने पुरानी यादों को जिया पर देवी के गुमटी में आलूगुण्डा खाते हुए जो मजा आता वह यहां पांच सितारा रेस्टारेंट में कहा.
दोस्त के साथ पुरानी यादें दोहराना हमेशा ही अच्छा लगता है।
जवाब देंहटाएंदोस्त के साथ पुरानी यादें दोहराना हमेशा ही अच्छा लगता है।
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंbeete huye kuchh pal hamesha yadgar rah jate hain...
ऐसी ही कितनी गुमटियों से बचपन की यादें जुड़ी होती हैं..पांच सितारा में न वो स्वाद-न वो बात
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