विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
रामनाथ नें जीवन पाया साठ साल या इकसठ साल
रामनाथ नें जीवन में कपड़े पहने कुल छह सौ गज़
पगड़ी पॉंच, जूते पंद्रह
रामनाथ नें अपने जीवन में कुल सौ मन चावल खाया
सब्जी दस मन,
फाके किए अनगिनत, शराब पी दो सौ बोतल
अजी पूजा की दो हज़ार बार
रामनाथ नें जीवन में धरती नापी
कुल जुमला पैंसठ हज़ार मील
सोया पंद्रह साल.
उसके जीवन में आसीं, बीबी के सिवा, कुल पाँच औरतें
एक के साथ पचास की उम्र में प्यार किया
और प्यार किया नौ साल
सत्तर फुट कटवाये बाल और सत्रह फुट नाख़ून
रूपया कमाया दा हज़ार या ग्यारह हज़ार
कुछ रूपया मित्रों को दिया, कुछ मंदिर को
और छोड़ा कुल आठ रूपये उन्नीस पैसे का क़र्ज ...
... बस, यह गिनती रामनाथ का जीवन है
इसमें शामिल नहीं चिता की लकड़ी, तेल, कफ़न,
तेरहीं का भोजन
रामनाथ बहुत हँसमुख था
उसने पाया एक संतुष्ट-सुखी जीवन
चोरी कभी नहीं की-कभी कभार कह दिया अलबत्ता
बीबी से झूठ
एक च्यूँटी भी नहीं मारी-
गाली दी दो-तीन महीने में एक आध
बच्चे छोड़े सात
भूल चुके हैं गॉंव के सब लोग अब उसकी हर बात.
हबीब तनवीर
(वर्तमान साहित्य के सितम्बर 09 के अंक में प्रकाशित सत्यदेव त्रिपाठी जी के आलेख से साभार)
हबीब तनवीर जी पर आरंभ में एक पोस्ट - क्या नशेबो फराज थे तनवीर, जिन्दगी आपने गुजार ही दी.
इस लेख में उल्लेखित गोविन्दराम निर्मलकर पर आरंभ में एक पोस्ट - लोक कला के ध्वज वाहक.
इस लेख में उल्लेखित रामचन्द्र देशमुख पर आरंभ में एक पोस्ट - अंचल की पहिचान के पर्याय.
रामनाथ नें जीवन में कपड़े पहने कुल छह सौ गज़
पगड़ी पॉंच, जूते पंद्रह
रामनाथ नें अपने जीवन में कुल सौ मन चावल खाया
सब्जी दस मन,
फाके किए अनगिनत, शराब पी दो सौ बोतल
अजी पूजा की दो हज़ार बार
रामनाथ नें जीवन में धरती नापी
कुल जुमला पैंसठ हज़ार मील
सोया पंद्रह साल.
उसके जीवन में आसीं, बीबी के सिवा, कुल पाँच औरतें
एक के साथ पचास की उम्र में प्यार किया
और प्यार किया नौ साल
सत्तर फुट कटवाये बाल और सत्रह फुट नाख़ून
रूपया कमाया दा हज़ार या ग्यारह हज़ार
कुछ रूपया मित्रों को दिया, कुछ मंदिर को
और छोड़ा कुल आठ रूपये उन्नीस पैसे का क़र्ज ...
... बस, यह गिनती रामनाथ का जीवन है
इसमें शामिल नहीं चिता की लकड़ी, तेल, कफ़न,
तेरहीं का भोजन
रामनाथ बहुत हँसमुख था
उसने पाया एक संतुष्ट-सुखी जीवन
चोरी कभी नहीं की-कभी कभार कह दिया अलबत्ता
बीबी से झूठ
एक च्यूँटी भी नहीं मारी-
गाली दी दो-तीन महीने में एक आध
बच्चे छोड़े सात
भूल चुके हैं गॉंव के सब लोग अब उसकी हर बात.
हबीब तनवीर
(वर्तमान साहित्य के सितम्बर 09 के अंक में प्रकाशित सत्यदेव त्रिपाठी जी के आलेख से साभार)
हबीब तनवीर जी पर आरंभ में एक पोस्ट - क्या नशेबो फराज थे तनवीर, जिन्दगी आपने गुजार ही दी.
इस लेख में उल्लेखित गोविन्दराम निर्मलकर पर आरंभ में एक पोस्ट - लोक कला के ध्वज वाहक.
इस लेख में उल्लेखित रामचन्द्र देशमुख पर आरंभ में एक पोस्ट - अंचल की पहिचान के पर्याय.
हबीब तनवीर साहब की सृजनात्मकता का यह पक्ष भी कितना मजबूत है । आभार ।
जवाब देंहटाएंआभार इस प्रस्तुति का.
जवाब देंहटाएंइस दुनिया में ज्यादातर लोग रामनाथ ही हो जाते हैं। कविता के प्रस्तुतिकरण के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंहबीब तनवीर इतने बड़े कवि थे नहीं मालूम था ... ऐसे दर्द तो जानती थी पर ये लेखा जोखा आँख भर गया .
जवाब देंहटाएंज़िंदगी को बहुत करीब से देखते और दिखाते थे तनवीर साहब्।
जवाब देंहटाएंकैसा गज़ब हिसाब है छोटी छोटी बातों का /एक अदद जीवन का
जवाब देंहटाएंतनवीर जी की कविता पढ़वाने के लिए धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंमुझे नहीं पता था कि हबीब तनवीर कविता भी लिखते थे। आपकी इस पोस्ट से जाना...
जवाब देंहटाएंआभार.. हैपी ब्लॉगिंग
जवाब देंहटाएंचित्रगुप्त क्या कहते हैं? कहां गये होंगे रामनाथ। मुद्दे की बात वह है!
जवाब देंहटाएंसंजीव भाई, हबीब तनवीर जैसी बहुमुखी प्रतिभा के धनी इंसान के कवि पक्ष को उभारने वाली शानदार कविता के लिए बधाई एवं धन्यवाद आपके गुरतुर गोठ , और हबीब तनवीर की कविता वाले दोनों लेख तो मेरे कंप्यूटर पर सही दिखाई दे रहे हैं, लेकिन सलवा जुडुम वाला लेख फिर से सही दिखाई नहीं दे रहा है, समय निकाल कर मेरी समस्या का समाधान कीजिएगा,,,,
जवाब देंहटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंसुंदर बहुत सुंदर
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