विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
चिट्ठा चर्चा में 22 दिसम्बर की चर्चा में तरकश डाट काम को प्रतिष्ठित मंथन - दक्षिण एशिया पुरस्कार 2009 मिलने की जानकारी दी गई थी. दूसरे दिन की चर्चा में यह ज्ञात हुआ कि यह प्रतिष्ठित पुरस्कार हम सबके प्रिय चिट्ठाकार रवि रतलामी को भी प्रदान किया गया है. इस पोस्ट पर रवि भाई नें टिप्पणी कर इसे स्पस्ट किया - आप सभी का धन्यवाद. वैसे, पुरस्कार मुझे नहीं, मेरे एम्बीशियस, पेट प्रोजेक्ट - छत्तीसगढ़ी प्रोग्राम सूट - केडीई 4.2 को मिला है. और पुरस्कार का नाम मीडिया मंथन नहीं, बल्कि आई टी सेक्टर का मंथन पुरस्कार है. अधिक जानकारी यहाँ देखें - http://www.manthanaward.org/section_full_story.asp?id=803. यह हमारे लिये यह बहुत ही उत्साहजनक समाचार है. 13 श्रेणियों में दिया जाने वाला प्रतिष्ठित मंथन पुरस्कार जमीनी स्तर पर स्थानीय भाषा सामग्री के डिजिटल उपकरणों में प्रयोग के रूप में छत्तीसगढी आपरेटिंग सिस्टम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानें के लिए रवि शंकर श्रीवास्तव जी को प्रदान किया गया है . रवि भाई नें अपनी निस्ठा और लगन से परिश्रमपूर्वक यह छत्तीसगढी आपरेटिंग सिस्टम बनाया है, यह उनके कल्