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जनवरी, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

पिरामिडो, ममियो, अजायबघरों व मिथकों के अतिरिक्त काहिरा

महफूज रेस्तरॉं से निकलते हुए हमने वहां के मैनैजमैंट से पूछा कि इतने अच्छे और मशहूर रेस्तरॉं का नाम किसी साहित्यकार के नाम से कैसे कर दिया गया क्योंकि हमारे देश में तो साहित्यकारों के नाम से सार्वजनिक व सरकारी इमारतें होती है जिसकी पूछ परख साल में दो बार जयंती और पुण्यतिथि पर होती है. इसी बहाने सरकारी विभाग या चंद संजीदा लोग उस इमारत के बहाने उस साहित्यकार को याद कर लेते हैं. कट्टरपंथी स्लामिक राजनैतिक पार्टी मुस्लिम ब्रदरहुड के दमदार विपक्ष के बावजूद अरब में लिखने पढने वाले के नाम से रेस्तरॉं का खुलना अरब के साहित्य के प्रति लगाव की एक अलग छवि प्रस्तुत कर रहा था. प्रबंधन से जानकारी प्राप्त हुई कि यह रेस्तरॉं भारत के ओबेरॉय ग्रुप की है तो और भी खुशी हुई चलो हमारे देश में नोबेल पुरस्कार विजेता रविन्द्र नाथ के नाम पर कोई होटल या रेस्तरॉं हो कि ना हो यहां मिश्र में नोबेल विजेता के नाम पर ओबेरॉय ग्रुप नें कुछ उल्लेखनीय किया तो. साथ चल रहे मित्र नें बतलाया कि काहिरा के मुख्य सडक तलाल हर्ब स्ट्रीट में उसने एक स्थान सूचक पट्टी देखा था जिसमें मैमार अलशाय अल हिन्दी अर्थात हिन्दी टी हाउस लिखा था.

काहिरा में महफ़ूज़ और तिल्दा का चांवल

पिछले दिनों ब्लॉग जगत में अदा जी के घर के चित्रों को ब्लॉग में प्रस्तुत करने के संबंध में प्रकाशित एक पोस्ट पर सबने दांतो तले उंगली दबा ली थी और जिस प्रकार पाबला जी ने कनाडा यात्रा की वैसी यात्रा करने के लिए अनेक ब्लॉगर उत्सुक थे. कल पाबला जी हमारे पास आये तो हमने भी बिना पासपोर्ट वीजा के कनाडा यात्रा के गुर के संबंध में पाबला जी से पूछा पर वे बाद में बतलाता हूं कह कर टाल गए. हमने अपनी जुगत और जुगाड लगाई. इन दिनो हिन्दी ब्लॉगजगत में आभासी दुनिया के भूगोल पर बडी-बडी विद्वतापूर्ण पोस्टें आ रही है सो हमने भी इस आभासी दुनिया का सहारा लिया और उड चले तूतनखामीन और पिरामिडो के देश मिश्र की ओर. इंडियन एयरलाईन्स से काहिरा की ओर उडते हुए नील नदी, सहारा रेगिस्तान और पिरामिडो को हवाई नजरों से देखना सचमुच में अपने आप में एक सुखद अनुभूति थी. शहर के लगभग मध्य स्थित काहिरा हवाईअड्डे से होटल की ओर जाते हुए हम सडकों के आजू बाजू बने भवनो के अलावा सडक के किनारे खोमचे लगाए भुट्टा भूनते, खजूर बेंचती काली लबादों में लिपटी बूढी हो चली महिलाओं को देखकर काहिरा की सम्पन्नता और विपन्नता से रुबरू होते रहे. टैक

रायपुर हिन्दी ब्लागर्स परिचय मिलन और चिट्ठा चर्चा विवाद के पार्श्व से

छत्तीसगढ के रायपुर में प्रदेश के हिन्दी ब्लॉगरों का परिचय मिलन की चित्रमय खबरें आप पिछले दिनों से छत्तीसगढ के ब्लॉगरों के पोस्टों में देख रहे हैं. आपकी सार्थक प्रतिक्रिया भी टिप्पणियों के माध्यम से वहां दर्शित हो रही है और हिन्दी ब्लागिंग के विकास के पदचाप को आप हम महसूस कर रहे है. इस सम्बन्ध मे संजीत त्रिपाठी जी के पोस्ट  फिर मिलने की आशा के साथ छत्तीसगढ़ ब्लॉगर बैठक संपन्न, एक रपट  पर उठाये गये कुछ मुद्दो पर मैं इस पोस्ट के माध्यम से अपने निजी विचार रखना चाहता हूं. मेरे ब्लॉग सफर मे संपूर्ण आभासी दुनिया के भूगोल की ओर पीछे देखुं  तो तब के पांच सौ के आंकडे के अंदर के हिन्दी ब्लाग जगत नें छत्तीसगढ के हर आने वाले ब्लागों का तहेदिल से स्वागत किया और प्रोत्साहन भी दिया. तब नारद एग्रीगेटर हुआ करता था और अनुप शुक्ल जी चिट़ठाचर्चा किया करते थे. हम तब से आजतक इस चिट़ठाचर्चा से नियमित पाठक नहीं रहे. ना ही हमने इसे कोई तूल दिया, हम तो ब्लागजगत में अनूप जी जैसे ही बातें लिये आये थे कि हम भी जबरै लिखबे यार ......... सो लिखते गये. साथी ब्लॉगर उन दिनों नेटवर्किंग व गुटों की वैसी ही बातें करते

क्या इंटरनेट परोस रहा है नक्सल विचार धारा ??

गूगल सर्च में यदि आप अंग्रेजी एवं हिन्दी में ‘नक्सल’ शब्द को खोंजें तो लगभग पांच लाख पेज की उपलब्धता नजर आती है. इन पांच लाख पेजों पर सैकडों पेजों के लिखित दस्तावेज, चित्र व फिल्मो के क्लिपिंग्स उपलब्ध हैं जिनमें से कईयों मे, लाल गलियारे को स्थापित करने वाली विचारधारा को हवा दी गई है. इन पेजों में घृणा का बीज बोंते लोग भी हैं तो मावोवादी विचारधारा के विरूद्ध आवाज उठाने वाले लोग भी हैं जो टिमटिमाते दिये के सहारे इस हिंसक विचारधारा के अंधेरे को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं. सैकडों व हजारों की संख्या में प्रतिदिन क्लिक होने वाले. खूब पढे जाने वाले इन ब्लागों में शहीद कामरेडों के चित्रों, छत्तीसगढ में हुए तथाकथित पुलिस बर्बरता के किस्से, फर्जी मुठभेडों व शोषण के शब्द चित्रों, बलत्कार के वाकयों को बयां करते लेखों व विचारों की अधिकता है. इसके साथ ही मानवतावा‍दी विचारधारा वाले व हिंसा से विरत रहने के अपील करते लेखों व नक्सल समस्या पर सार्थक विमर्श करते ब्लागों की भी कतारें  हैं. इसके अतिरिक्त नेट में फैले तथाकथित मानवतावादी, खालिस मावोवादी, नक्सलवादी व जनवादियों एवं बस्तर, नक्सल व छत्तीसगढ

देवकीनन्दन खत्री से अलबेला खत्री तक हिन्दी की यात्रा : माईक्रो पोस्ट

मेरे पिछ्ले पोस्ट मे हुए टंकण त्रुटि पर ललित शर्मा जी की टिप्पणी पर भाई शरद कोकाश जी ने लिखा 'ललित जी के लिये एक शोध विषय का सुझाव - " देवकीनन्दन खत्री से अलबेला खत्री तक हिन्दी की यात्रा ". देवकीनन्दन खत्री जी का नाम हिन्दी के विश्व मानस पटल मे जाना पहचाना है. शरद भाई के इस टिप्पणी ने  देवकीनन्दन खत्री जी व उनके किताबो को मेरे मन मे और जीवंत कर दिया. हमने तिलिस्मी लेखक बाबू देवकीनन्दन खत्री के सम्बध मे नेट मे उपलब्ध जानकारियो को नेट में खोजना शुरु किया तो जो लिंक (LINK) मिले उन्हे यहा रखते हुये हमने इस माईक्रो पोस्ट की रचना कर दी. बाबू देवकीनन्दन खत्री के  काजर की कोठरी , नरेंद्र-मोहिनी , कुसुम कुमारी , वीरेंद्र वीर , गुप्त गोंडा , कटोरा भर , भूतनाथ , चंद्रकान्ता और चन्द्रकान्ता सन्तति से होकर अलबेला खत्री की कविताओ तक बहती हिन्दी की यात्रा सचमुच गंगा है. निरंतर सृजनशील अलबेला खत्री जी की लोकप्रिय कविताओं की धारा, हिन्दी की इस गंगा मे, अनवरत बहेगी और भविष्य मे शरद भईया के सुझाये इस विषय पर निश्चित ही शोध भी होंगे. हिन्दी के मठाधीशों ने तो हरिशंकर परसाई , रवी

ब्लॉग प्लेटफार्म दो प्रकार के लोगों के लिए सार्थक है बिगनर या अमिताभ बच्चन ??

मैंनें पिछले दिनों छत्तीसगढ़ के एक मसिजीवी को हिन्दी ब्लॉग जगत मे आने और हिन्दी ब्लॉग बनाने के लिए कहा तो उन्होंनें तपाक से कहा कि ना बाबा ना, ब्लॉग प्लेटफार्म दो प्रकार के लोगों के लिए सार्थक है. एक तो वे जो पहले से ही किसी क्षेत्र में पूर्ण स्थापित हैं जैसे अमिताभ बच्चन और दूसरे वे जो बिगनर है या पहचान बनाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. जिनके मन में लेखन का कीडा कुलबुला रहा है और विचार व भावनायें शब्दों का रूप लेने के लिए उद्धत हैं किन्तु उनका श्रृंगार होना अभी शेष है उन शब्दों को सजाने के लिए यह आदर्श प्लेटफार्म है. दुर्ग के एक साहित्यकार नें भी कुछ दिन पहले मुझसे नामवर सिंह जी के ब्लॉग बवाल पर लगभग ऐसा ही कहा था. मैनें उनकी बातों पर नोटिस इसलिए नहीं लिया था क्योंकि वे इंटरनेट या ब्लॉग से पूर्णत: परिचित नहीं थे. अभी जिन मसिजीवी से मेरी चर्चा हुई उन्होंनें छत्तीसगढ़ सहित देश के विभिन्न हिन्दी ब्लॉगरों का नाम लेते हुए उनके ब्लॉग और विषयवस्तुओं की विवेचना भी की. मैं आश्चर्यचकित हो गया कि वे न केवल हिन्दी ब्लॉगिंग से परिचित हैं बल्कि ब्लॉग पोस्टों को गहराई से पढते भी हैं. उन्होंनें स्व

शास्त्रीयता की कसौटी में खरा उतरने को उद्धत हिन्दी ब्लागिंग

किसी भी भाषा की परम्परा रही है कि कोई लेख, कविता, कहानी या अन्य विधा लेखन की शास्त्रीयता की कसौटी मे तुल कर साहित्य की श्रेणी मे स्वीकार कर ली जाती है और उसे तथाकथित सहित्यिक मठाधीशो को भी किंचित ना-नुकुर के बावजूद भी स्वीकार करना पडता है. मठाधीशो को हिन्दी ब्लागिंग के दमदार धमक के कारण पुस्तक पाठन रुचि के गिरते ग्राफ की चिंता है. उनका मानना है कि  किसी भी विधा मे शास्त्रीयता अध्ययन और निरंतर प्रयाश से आती है. और यह शास्त्रीयता मोटी मोटी किताबो मे बन्द है. इन्ही सन्दभों में हिन्दी ब्लागरो के शव्द सामर्थ्य व पुस्तक अध्ययन की रुचि हमे देखने को मिली.  पिछले दिनों ब्लाग पोस्टों को पढनें के दौरान डॉ.अरविन्द मिश्रा जी के पोस्ट पर पढने को मिला कि वे तीन पुस्तकें क्रय कर लाये  है और किताबों का अवगाहन कर रहे है. अपने छत्तीसगढ के   ललित शर्मा जी नें भी अवधिया जी के एक पोस्ट में टिप्पणी में कहा कि उन्हें आजकल बहुत किताबें पढनी पडती हैं जबकि वे स्वयं संस्कृत,  ज्योतिष, भाषा सहित अनेक विषयों के ज्ञाता हैं एवं एकेडमिक रूप से भी वे इन विषयों को पढ चुके हैं. इनके अतिरिक्त और भी कई हिन्दी ब्लागर है

हाय महंगाई ..... महंगाई महंगाई .

दस पैसे कप चाय तीस पैसे का दोसा से दादाजी का नाश्‍ता हो जाता था आज ये सच्चाई जितनी सुखद लगती हैं, उतनी ही दुखद लगती हैं कि हमारा पोता बीस रुपये कप चाय पीकर दो सौ रुपये का दोसा खाऐगा, बात साधारण सी इसलिऐ हो जाती हैं क्योकि आज जिस वेतन पर पिताजी सेवानिवृत हो रहे हैं बेटा आज उस वेतन से अपनी सेवा की शुरुवात कर रहा हैं, सन् 1965 में पैट्रोल 95 पैसे लीटर था चालीस सालो में पचास गुना बढ गया तो आश्‍चर्य नही की 2050 में भी अगर हम इसके विकल्प को न तलाश पाऐ तो 2500 रुपये लीटर आज जैसे ही रो के या गा के खरीदेगे, मंहगाई के नाम पर इस औपचारिक आश्‍वासन से किसी का पेट नही भरता पर कीमत का बढना एक सामान्य प्रक्रिया जरुर हैं पर ये सिलसिला पिछले कुछ सालो से ज्यादा ही तेज हो गया हैं जहां आमदनी की बढोतरी इस तेजी की तुलना में अपेक्षाकृत कमजोर महसूस कर रही हैं वही से शुरू होती हैं मंहगाई की मार, दरअसल मंहगाई उत्पादक व विक्रेता के लिऐ तो मुनाफा बढाने का काम करती हैं पर क्रेता की जेब कटती जाती हैं. देश में तेजी से बढती मंहगाई पर राजनेताओ की लम्बे समय से खामोशी समझ से परे हैं बस कैमरे के सामने आपस में कोस कर इति

विश्वरंजन या तो मारे जाएंगे या जेल जाएंगे - सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख जनहित वकील प्रशांत भूषण ने आक्रोश में कहा

दैनिक छत्तीसगढ़ के मुख्य पृष्ट  मे आज प्रकाशित रपट विशेष संवाददाता, रायपुर, 11 जनवरी (छत्तीसगढ़)। प्रसिद्ध सुप्रीम कोर्ट वकील और अनेक जनवादी संगठनों की ओर से विभिन्न मामलों में पैरवी करने वाले प्रशांत भूषण छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक विश्वरंजन पर जमकर बरसे। उन्होने आपरेशन ग्रीन हंट को तत्काल रोकने की मांग करते हुए कहा कि जिस हिसाब से छत्तीसगढ़ पुलिस निर्दोष आदिवासियों का खून बहा रही है उसके चलते जल्द ही या तो विश्वरंजन गोली से मार दिए जाएंगे अथवा वे जेल के भीतर होंगे। उन्होने चेतावनी दी कि ग्रीन हंट से सिविल वार का अंदेशा है और यह गृह युद्ध छत्तीसगढ़ के शहरी क्षेत्रों को भी अपनी लपेट में ले लेगा। उन्होने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में एमनेस्टी इंटरनेशनल भेजे जाने की मांग भी की। उन्होने विश्वरंजन को छद्म साहित्यकार निरूपित करते हुए छत्तीसगढ़ के साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों की इस बात को लेकर आलोचना की कि वे विश्वरंजन को साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित कर उन्हे सिर पर उठाए घूम रहे हैं। एक कार्यक्रम के सिलसिले में बिलासपुर आए प्रशांत भूषण कल प्रसिद्ध वकील कनक तिवारी के कार्यालय

वनवासियों की असल चेतना

जलते बस्तर के दंतेवाडा से लगातार आ रहे समाचारों - विचारों की कडी में संपादक सुनील कुमार जी का विशेष संपादकीय कल छत्तीसगढ में पढने को मिला. देश की स्थिति परिस्थिति के संबंध में मीडिया जनता तक सच को लाती है, दिखाती है या पढाती है. इस संपादकीय से यह स्पष्ट हुआ कि यह मीडिया का नैतिक कर्तव्य ही नहीं आवश्यक कार्य (ड्यूटी) भी है. और सुनील कुमार जी नें इसे बखूबी निभाया है. लोगों को वास्तविक परिस्थिति से अवगत कराने की मीडिया की भूमिका को कायम रखते हुए सुनील कुमार जी नें समय समय पर अपने समाचार पत्र में व संपादकीय में छत्तीसगढ का स्पष्ट चित्र सदैव प्रस्तुत किया हैं. वर्तमान परिदृश्य में दंतेवाडा में गांधीवाद के नाम पर विश्व जन मानस को प्रभावित करने एवं अपने पक्ष में लेने के तथाकथित मानवाधिकार वादियों के प्रयासों की हकीकत ‘खादी की बंदूकें’ से उजागर हो गई है. पिछले दिनों हिन्दी ब्लागों में भी बहुत हो हल्ला हुआ कि छत्तीसगढ के ब्लागर्स एवं पत्रकार कुछ विशेष आवश्यक और ज्वलंत मुद्दों में तथ्यात्महक एवं विचारपरक रपट प्रकाशित नहीं कर रहे हैं. ब्लाग जगत में सक्रिय रहने के कारण हम पर भी स्पष्ट‍त: ऐसे आ

खादी की बंदूकें - सुनील कुमार जी की विशेष संपादकीय

बस्तर में सरकार के खिलाफ कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आकर एक प्रदर्शन शुरू किया तो वहां के स्थानीय लोगों में से सैकड़ों ने उसका विरोध शुरू किया है। इन स्थानीय लोगों का मानना है कि अपने-आपको गांधीवादी कहने वाले ये संगठन नक्सलियों के हाथ मजबूत करने का काम कर रहे हैं। सरकार का भी यही मानना है कि ऐसे बहुत से संगठन लगातार सरकार को और सुरक्षा बलों को चारों तरफ अदालतों से लेकर आयोगों तक में फंसाकर उन्हें नक्सल मोर्चे से दूर उलझाकर रखने का काम कर रहे हैं और इससे नक्सलियों के हाथ मजबूत हो रहे हैं। मीडिया का एक तबका जो बस्तर से दूर बसा हुआ है वह भी बस्तर के आदिवासियों के मानवाधिकार हनन की उन्हीं कहानियों को सुन रहा है और सुना रहा है जिनमें आरोप सुरक्षा बलों पर लगे हैं या सरकार पर लगे हैं। नक्सलियों की की जा रही लगातार हिंसा के बारे में उनके पास उसी सांस में कहने के लिए बस दो शव्द होते हैं जिस सांस में वे सरकार को कटघरे में खड़ा करके उसे रायपुर से बिलासपुर होते हुए दिल्ली तक जवाबदेह और जिम्मेदार ठहराते हैं। यह बात सही है कि लोकतत्र में जवाबदेह और जिम्मेदार तो सरकार ही होती है। लगातार हिंसा करने

धीरज धरें हिन्दी ब्लागजगत मे लाखों रुपये बरसने वाले हैं

हिन्दी ब्लाग जगत में लगातार नये ब्लागरों के आगमन एवं वर्तमान ब्लागरों की चढ-बढ कर ली जा रही हिससेदारी यह शुभ संदेश देती है कि हिन्दी ब्लागरी का भविष्य उज्वल है. हिन्दी ब्लागरों के द्वारा ब्लाग से कमाई संबंधी पोस्टों पर अधिकाधिक चटका लगाना यह संकेत देता है कि अधिकांश ब्लागरों के मन में हिन्दी ब्लागरी से कमाई करने की आशा जीवंत है जो आज नहीं तो कल साकार अवश्य होगी. अभी भी गूगल   एड सेंस व अन्य विज्ञापनों एवं नेट तकनीक में हिन्दी समर्थित कार्य करते हुए कई लोग बिना हो हल्ला किए भी अच्छा कमाई कर रहे हैं किन्तु बहुसंख्यक हिन्दी ब्लागरों के पहुच से अभी दिल्ली बहुत दूर है. हम  गूगल   एड सेंस या अन्य विज्ञापन के द्वारा हिन्दी ब्लागिंग में कमाई के प्रति उतने आशान्वित नहीं हैं किन्तु ब्लागिंग के द्वारा कमाई के अन्य पहलुओं पर हमें ज्यादा भरोसा है. इसके संबंध में हमने पहले भी पोस्ट लिखा था. अभी पिछले दिनों हमारे इस सोंच को पुन: बल मिला. हिन्दी ब्लाग में प्रोत्साहन के लिए दिये जाने वाले पुरस्कारों का यदि आर्थिक आकलन किया जाए तो यह भी एक प्रकार से ब्लागिंग से लाभ माना जाएगा . हिन्दी ब्लागरों को ल

दो शब्द चित्र

रामहृदय को 11वां रामचंद्र देशमुख सम्मान

छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति के अग्रपुरुष दाऊ रामचन्द्र देशमुख की स्मृति में स्थापित तथा लोक संस्कृति के प्रति प्रदीर्घ समर्पण एवं एकाग्र साधना के लिए प्रदत्त रामचंद्र देशमुख बहुमत सम्मान इस वर्ष राज्य के प्रतिष्ठित संस्कृतिकर्मी रामहृदय तिवारी को प्रदान किया जाएगा। दाऊ रामचन्द्र देशमुख की 11वीं पुण्यतिथि के अवसर पर 14 जनवरी को आयोजित एक गरिमामय समारोह में श्री तिवारी को 11 वें रामचन्द्र देशमुख बहुमत सम्मान से अलंकृत किया जाएगा। सम्मान के अंतर्गत श्री तिवारी को 11 हजार रुपए की सम्मान निधि, शाल, श्रीफल एवं प्रशस्ती पत्र से सम्मानित किया जाएगा। निर्णायक समिति के निर्णय की जानकारी देते हुए वरिष्ठ कवि जय प्रकाश मानस ने बताया कि यह निर्णय वरिष्ठ साहित्यकार देवेश दत्त मिश्र की अध्यक्षता में गणित निर्णायक समिति द्वारा लिया गया है। समिति में जनवदी शायर मुमताज, रंगकर्मी राजेश गनोदवाले, कवि बीएल पाल, कथाकार विनोद मिश्र, सामाजिक कायकर्ता सुमन कन्नौजे, पत्रकार सहदेव देशमुख एवं समालोचक केएस प्रकाश सदस्य थे। दुर्ग जिले के उरडहा गांव में 16 सितम्बर 1943 को जन्मे रामहृदय तिवारी लोककला के क्षेत्र मे