विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
महफूज रेस्तरॉं से निकलते हुए हमने वहां के मैनैजमैंट से पूछा कि इतने अच्छे और मशहूर रेस्तरॉं का नाम किसी साहित्यकार के नाम से कैसे कर दिया गया क्योंकि हमारे देश में तो साहित्यकारों के नाम से सार्वजनिक व सरकारी इमारतें होती है जिसकी पूछ परख साल में दो बार जयंती और पुण्यतिथि पर होती है. इसी बहाने सरकारी विभाग या चंद संजीदा लोग उस इमारत के बहाने उस साहित्यकार को याद कर लेते हैं. कट्टरपंथी स्लामिक राजनैतिक पार्टी मुस्लिम ब्रदरहुड के दमदार विपक्ष के बावजूद अरब में लिखने पढने वाले के नाम से रेस्तरॉं का खुलना अरब के साहित्य के प्रति लगाव की एक अलग छवि प्रस्तुत कर रहा था. प्रबंधन से जानकारी प्राप्त हुई कि यह रेस्तरॉं भारत के ओबेरॉय ग्रुप की है तो और भी खुशी हुई चलो हमारे देश में नोबेल पुरस्कार विजेता रविन्द्र नाथ के नाम पर कोई होटल या रेस्तरॉं हो कि ना हो यहां मिश्र में नोबेल विजेता के नाम पर ओबेरॉय ग्रुप नें कुछ उल्लेखनीय किया तो. साथ चल रहे मित्र नें बतलाया कि काहिरा के मुख्य सडक तलाल हर्ब स्ट्रीट में उसने एक स्थान सूचक पट्टी देखा था जिसमें मैमार अलशाय अल हिन्दी अर्थात हिन्दी टी हाउस लिखा था.