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जुलाई, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

राजीव रंजन जी के उपन्यास का अंश - लौहंडीगुडा गोलीकांड पर आधारित

बस्‍तर हालात बत्‍तर, बदतर और  बदतर ! हॉं आप सही पढ़ रहे हैं, भारत के छोटे से राज्‍य छत्‍तीसगढ़ के संपूर्ण बस्‍तर क्षेत्र में अब बारूदों की गंध छाई है। विष्‍फोट और गोलियों की आवाजें आम है, घोटुल सूना है, धनकुल नि:शव्‍द है, करमा के मांदर की थापों में कुत्‍तों के रोने की आवाजें निकलती हैं। अनहोनी का नाद जैसे हर तरफ छाया है, ऐसा तो नहीं था यह .....। इतिहास के परतों को उधेड़ते हुए बस्‍तर के रूपहले परदे को मेरे सामने लाला जगदलपुरी, हीरालाल शुक्‍ल, निरंजन महावर, वेरियर एल्विन आदि नें तथ्‍यात्‍मक रूप से तो गुलशेर अहमद 'शानी' और मेहरून्निशा परवेज नें कथात्‍मक रूप में प्रस्‍तुत किया है। इसके अतिरिक्‍त बहुतों के हाट बस्‍तर पर बहुत कुछ लिखा जो कुछ याद है कुछ याद नहीं है। इंटरनेट के हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत में व्‍यथित बस्‍तर के दर्द को बांटते मेरे साथियों में राजीव रंजन जी का नाम अहम है। राजीव जी नें अपने ब्‍लॉग सफर राजीव रंजन प्रसाद में नक्‍सल मसले पर बेबाक लेखन किया है, राजीव जी   साहित्‍य शिल्‍पी   के संपादक हैं और बस्‍तरिहा हैं। सुदूर दिल्‍ली (वर्तमान में देहरादून) में भी बैठकर इनका दिल बस्

अपनी अपनी संतुष्टि - कहानी

उसने टेबल से उठते हुए एक बड़ी पैग हलक में उतारी, प्लेट में कुछ शेष बच गए काजू के तुकडों को मुट्ठी में उठाते हुए बार से बाहर निकल गया। लडखडाते कदमों से बाहर खडे बाईक के इग्नीशन में चाबी डालते हुए वह ठिठक गया। ‘चाबी अंदर भूल गये क्या सर ? ‘ बाहर खडे रौबदार मूंछों वाले गार्ड नें उससे पूछा। उसे पता था कि चाबी तो उसके हाथ में ही है, उसने गार्ड के प्रश्न का उत्तर दिये बगैर कमीज के उपरी जेब और पैंट के चारो जेबों को बारी बारी से टटोला, सब चीज अपने स्थान में था। उसने अपने सिर के पिछले भाग को खुजलाते हुए महसूस किया कि उसका दिमाग उसके खोपडी से गायब है। शायद वह टेबल में छूट गई है, उसने बाईक को पुन: साईड स्टैंड लगा कर खड़ी कर दिया और उससे उतर गया। ‘मैं देखता हूं सर !’ गार्ड बार के अंदर जाने को उद्धत हुआ। ’अरे .. क्या खाक देखोगे तुम........., चुप रहो! चाबी मेरे पास में ही है।‘ उसने चाबी व की रिंग को हिलाकर गार्ड को दिखलाते हुए कहा। ‘तो क्या भूल गए सर !’ गार्ड नें पुन: मुंह खोला, अब उसका दिमाग खराब हो गया और उसे याद आ गया कि खराब दिमाग तो उसके खोपडी में ही है। वह वापस लौटकर बाईक में बैठ गया और

'नक्सल हिंसा,लोकतंत्र और मीडिया' विषय पर राष्ट्रीय परिचर्चा

छत्‍तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के सिविल लाइन स्थित न्यू सर्किट हाउस में रविवार को "नक्सल हिंसा, लोकतंत्र और मीडिया" पर राष्ट्रीय परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मीडियाकर्मी, समाजसेवी, साहित्यकार, नक्सली वार्ताकारों ने हिस्सा लिया। परिचर्चा के विषय पर उन्होंने बेतकल्लुफी से अपने विचार रखें। नक्सल मामलों के विशेषज्ञ प्रकाश सिंह ने भी कहा कि प्रशासन की विफलता के कारण नक्सली समस्या पैदा हुई है। शांतिवार्ता के लिए नक्सलियों के साथ कभी भी कोई गंभीर पहल नहीं की गई। इस समय वार्ता नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि यह कैसा लोकतंत्र है जहां अपराधी और करोड़पति ही सांसद के रूप में चुने जा रहे हैं। भ्रष्टाचार एक सीमा तक ही बर्दाश्त किया जा सकता है। विकास का यह पैमाना दोषपूर्ण है। असमान विकास को कारण बतलाते हुए इंडियन ब्रोडकास्ट एसोसिएशन के महासचिव एनके सिंह ने कहा कि मीडिया के लिए मानक और कायदे बनाने की दिशा में काम हो रहा है। बड़े मुद्दों पर चर्चा करने की परंपरा समाप्त हो गई है। मध्यवर्ग डांस इंडिया डांस देखने में मस्त है। सार्थक मुद्दों पर चर्चा की परंपरा बंद हो गई है। हमारे देश में विक

स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानी लक्ष्मण प्रसाद दुबे

शिक्षकीय कर्तव्य को अपनी साधना मानने वाले लक्ष्मण प्रसाद दुबे जी का संपूर्ण जीवन एक शिक्षक के रूप में बीता, जिसके कारण उन्हें गुरूजी के रूप में जाना जाता रहा है। इन्होंनें अपने जीवन में कईयों को पढा कर उनके मन में देशभक्ति का जजबा को जागृत किया वहीं कई लोगों को शिक्षक बनने हेतु प्रेरित भी किया। नारी स्वतंत्रता एवं नारी शिक्षा के पक्षधर इस कर्मयोगी का जन्म छत्‍तीसगढ़ स्थित दुर्ग जिले के दाढी गांव में 9 जून 1909 को हुआ। वे गांव में प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद बेमेतरा से उच्‍चतर माध्यमिक व शिक्षक प्रशिक्षण प्राप्त कर शिक्षकीय कार्य में जुट गये । इनकी पहली नियमित पदस्थापना सन् 1929 में भिलाई के माध्यमिक स्कूल में हुई उस समय दुर्ग में स्वतंत्रता आंदोलन का ओज फैला हुआ था। भिलाई में शिक्षक के रूप में कार्य करते हुए इनका संपर्क जिले के वरिष्ठ सत्याग्रही नरसिंह प्रसाद अग्रवाल जी से हुआ। उस समय किशोर व युवजन के अग्रवाल जी आदर्श थे। उनके मार्गदर्शन व आदेश से लक्ष्मण प्रसाद दुबे जी भिलाई में अपने साथियों एवं छात्रों के साथ मिलकर मद्य निषेध आंदोलन व विदेशी वस्त्र आंदोलन को हवा देने लगे। उसी

नवागंतुक ब्‍लॉगर शिरीष डामरे का आलेख : मार ! महंगाई की किसपे ?

शिरीष डामरे जी, जी न्यूज छत्तीसगढ़ के बिलासपुर संवाददाता हैं। इलैक्ट्रानिक्स मीडिया से इनका संबंध लगभग पंद्रह सालों से रहा है। शिरीष जी नें विभिन्न टीवी चैनलों में स्थानीय रिपोर्टर के रूप में काम किया है। वाईल्ड लाईफ शूटिंग व फोटोग्राफी में रूचि के कारण इन्होंनें अचानकमार टाईगर रिजर्व से संबंधित कई चर्चित डाकूमेंट्री बनाई है। शिरीष भाई इलैक्ट्रानिक्स मीडिया से जुड़े हैं वे तथ्य, घटना, संवेदना व समाचारों को दिखाना बखूबी जानते हैं। हिन्दी ब्लॉग बनाने और लेखन करने के मेरे आग्रह पर वे स्पष्ट कहते हैं कि इलैक्ट्रानिक्स मीडिया में होने के कारण प्रिंट मीडिया के पत्रकारों की तरह वे नहीं लिख पाते। किन्तु मेरा मानना है कि आप जो कहना चाहते हैं वह यदि स्पष्ट हो रहा हो तो शव्द सामर्थ्य व वाक्य विन्यास के बिना भी आलेख पठनीय होता है। हमारे आग्रह पर शिरीष भाई नें दो ब्लॉग उठा पटक  और बिलासपुर टाईम्‍स बनाया है और लिखने का प्रयास किया है। हम महगाई पर उनका एक आलेख यहां प्रस्तुत कर रहे हैं। मार ! महंगाई की किसपे ? महंगाई को लेकर भारत के हर एक शहर व गाँव के कोने-कोने में विगत दिनों विपक्ष ने विरोध प्र

छत्तीसगढ़ी साहित्य व जातीय सहिष्णुता के पित्र पुरूष : पं. सुन्दर लाल शर्मा

महानदी के तट पर विशाल भीड़ दम साधे खड़ी थी, उन्नत माथे पर त्रिपुण्ड लगाए एक दर्जन पंडितो नें वेद व उपनिषदों के मंत्र व श्लोक की गांठ बांधे उस प्रखर युवा से प्रश्न पर प्रश्न कर रहे थे और वह अविकल भाव से संस्कृत धर्मग्रंथों से ही उनके प्रश्नों का उत्तर दे रहे थे। बौखलाए धर्मध्वजा धारी त्रिपुण्डी पंडितो नें ऋग्वेद के पुरूष सूक्त के चित परिचित मंत्र का सामूहिक स्वर में उल्ले‍ख किया - ब्राह्मणोsस्य् मुखमासीद्वाहू राजन्य: कृत: । उरू तदस्य यद्वैश्य: पद्मच्य : शूद्रो अजायत:।। धवल वस्त्र धारी युवा नें कहा महात्मन इसका हिन्दी अनुवाद भी कह दें ताकि भीड़ इसे समझ सके। उनमें से एक नें अर्थ बतलाया - विराट पुरूष के मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिय, जंघा से वैश्य तथा पैरों से शूद्र उत्पन्न हुए। युवक तनिक मुस्कुराया और कहा हे ब्राह्मण श्रेष्ठ, इस मंत्र का अर्थ आपने अपनी सुविधानुसार ऐसा कर लिया है, इसका अर्थ है उस विराट पुरूष अर्थात समाज के ब्राह्मण मुख सदृश हैं, क्षत्रिय उसकी भुजाए हैं, वैश्य जंघा है और शूद्र पैर, जिस प्रकार मनुष्य इन सभी अंगों में ही पूर्ण मनुष्य है उसी प्रकार समाज में इन वर्णों

बिस्‍वजीत बोरा की फिल्‍म : आदिवासी के दूत (Angel of the Aboriginals)

मुंबई के फिल्म निर्माता बिस्‍वजीत बोरा नें ब्रिटिश नृवंशविज्ञानी पद्म भूषण डॉ. वेरियर एल्विन पर एक वृत्तचित्र बनाया है। फिल्‍म में बतलाया गया है कि वेरियर एल्विन नें निस्वार्थ समर्पण के साथ इस देश के मूल निवासियों की सेवा की है. फिल्म की अवधि 45 मिनट है.इस फिल्‍म का प्रोमों छत्‍तीसगढ़ के अधोवस्‍त्र विहीन आदिवासी बालाओं के चित्रों के साथ  इस प्रमोशनल वेब साईट में उपलब्‍ध है। इस फिल्‍म के संबंध में अतिरिक्‍त जानकारी यदि आपके पास हो तो कृपया हमें भी बतलांए।

बिना शीर्षक : राजकुमार सोनी के प्रथम कृति का प्रकाशन

माय डियर राजकुमार! साहित्यकार शरद कोकाश जी, राजकुमार सोनी जी को जब ऐसा संबोधित करते हैं तब उन दोनों के बीच की आत्मीयता पढ़ने व सुनने वालों को भी सुकून देती है कि आज इस द्वंद भरे जीवन में व्यक्तियों के बीच संबंधों में मिठास जीवित है। हॉं मैं बिगुल  ब्‍लॉग वाले धारदार शव्‍द बाण के धनुर्धर बड़े भाई राजकुमार सोनी जी के संबंध में बता रहा हूं।   राजकुमार सोनी जी से मेरा परिचय मेरे पसंदीदा नाटककार और थियेटर के पात्र के रूप में था , बिना मिले ही जिस प्रकार पात्रों से हमारा संबंध हो जाता है उसी तरह से मैं राजकुमार सोंनी जी से परिचित रहा हूं। तब भिलाई में राजकुमार सोनी और उनके मित्रों नें सुब्रत बोस की पीढी़ को सशक्‍त करते हुए नाटकों को जीवंत रखा था। मुझे कोरस, मोर्चा, घेरा, गुरिल्ला, तिलचट्टे जैसे नाटकों के लेखक निर्देशक राजकुमार सोनी को विभिन्न पात्रों में रम जाते देखना अच्छा लगता था, इनकी व इनके मित्रों की जीवंत नाट्य प्रस्तुति का मैं कायल था। राजकुमार सोनी की नाटकें मंचित होती रही, वे अपना जीवंत अभिनय की छटा व लेखनी की धार को निरंतर पैनी करते रहे। दुर्ग-भिलाई में रहते हुए साहित्तिक गोष्ठिय

शताब्दी की चयनित कहानियों में डॉ. वर्मा की भी कहानी

साहित्य अकादमी नई दिल्ली द्वारा शताब्दी की कालजयी कहानियों का चयन किया गया है। चयनित कहानियां किताब घर प्रकाशन से ४ खण्डों में प्रकाशित हुई है। विगत सौ वर्षों से कथा लेखकों में छत्तीसगढ़ के गांव लिमतरा से निकले डॉ. परदेशीराम वर्मा के महत्व को साहित्य अकादमी ने आंका है। इस चयन में वाणी प्रकाशन से प्रकाशित प्रथम कथा संग्रह "दिन प्रतिदिन" की प्रतिनिधि कहानी को डॉ. परदेशीराम वर्मा की कालजयी कहानी का सम्मान मिला है। छत्तीसगढ़ में कथा-लेखन की समृद्ध परंपरा है। छत्तीसगढ़ में ही हिन्दी की पहली कहानी "टोकरी भर मिट्टी" यशस्वी कथाकार माधवराव सप्रे ने लिखी। छत्तीसगढ़ के गांव लिमतरा में जन्मे कथाकर डॉ. परदेशीराम वर्मा को मध्यप्रदेश शासन का सप्रे सम्मान मिला। उल्लेखनीय है कि डॉ. परदेशीराम वर्मा छत्तीसगढ़ और देश के विशिष्ट कथाकार हैं जिन्हें कृष्ण प्रताप कथा प्रतियोगिता में लगातार दो बार क्रमशः " लोहारबारी " एवं "पैंतरा" कहानियों के लेखन के लिए पुरस्कृत किया गया। अब तक २५० से अधिक कहानियां तथा अन्य विधाओं की रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। वे अंचल के विशिष्ट कथा

सुप्रसिद्ध साहित्यकार गजानन माधव मुक्तिबोध की पत्नी श्रीमती शांता मुक्तिबोध का निधन

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल में जनसंचार विभाग में रीडर एवं विभागाध्यक्ष संजय द्विवेदी जी नें अपने ब्‍लॉग चिंतन-शिविर में अभी कुछ समय पूर्व ही यह दुखद समाचार दिया है कि सुप्रसिद्ध साहित्यकार गजानन माधव मुक्तिबोध की पत्नी श्रीमती शांता मुक्तिबोध का गुरुवार की रात रायपुर में निधन हो गया. 88 वर्ष की शांता मुक्तिबोध लंबे समय से अस्वस्थ चल रही थीं. 1939 में गजानन माधव मुक्तिबोध के साथ प्रेम विवाह करने वाली शांता जी ने मुक्तिबोध जी के हर सुख-दुख में साथ निभाया. गजानन माधव मुक्तिबोध के निधन के बाद उन्होंने अपने बच्चों का लालन-पालन और बेहतर शिक्षा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी. शांता जी के बेटे दिवाकर मुक्तिबोध देश के वरिष्ठ पत्रकार हैं, वहीं गिरीश मुक्तिबोध भी पत्रकारिता से संबद्ध हैं. रमेश मुक्तिबोध और दिलीप मुक्तिबोध ने गजानन माधव मुक्तिबोध की अप्रकाशित कृतियों का संपादन किया है। गजानन माधव मुक्तिबोध जी की कविता के साथ  श्रीमती शांता मुक्तिबोध को हमारी श्रद्धांजली..... मृत्यु और कवि घनी रात, बादल रिमझिम हैं, दिशा मूक, निस्तब्ध वनंतर व्यापक अंधकार

छत्तीसगढ़ की संस्‍कृति से संबंधित महत्‍वपूर्ण लिंक

संस्‍कृति विभाग छत्‍तीसगढ़ की वेब साईट में पिछले कुछ महीनों से कुछ महत्‍वपूर्ण जानकारियॉं पुरातत्‍व एवं संस्‍कृति विभाग के उच्‍च अधिकारी व सिंहावलोकन ब्‍लॉग वाले आदरणीय बड़े भाई राहुल सिंह जी के निर्देशन में जोड़ा गया है. जोड़ी गई नवीन जानकारियों से संबंधित पेज के लिंक आपकी सुविधा के लिए यहां दिया जा रहा है- छत्तीसगढ़ में नदियाँ छत्तीसगढ़ में वन सम्पदा छत्तीसगढ़ में मिट्टी छत्तीसगढ़ में आदिवासी संस्कृति छत्तीसगढ़ में आदिवासी देवी-देवता छत्तीसगढ़ में आदिवासी संस्कृति के पर्व छत्तीसगढ़ में धार्मिक व दर्शनीय स्थल छत्तीसगढ़ में जल-प्रपात छत्तीसगढ़ में पर्व, तीज तिहार, मंडई-मेले छत्तीसगढ़ में लोक नृत्य छत्तीसगढ़ में लोक गीत छत्तीसगढ़ में लोक नाट्य छत्तीसगढ़ में लोक गाथा छत्तीसगढ़ की जातियाँ छत्तीसगढ़ के संस्कार छत्तीसगढ़ में पारंपरिक शिल्प छत्तीसगढ़ के वाद्य यंत्र छत्तीसगढ़ के पारंपरिक खेल छत्तीसगढ़ के पारंपरिक आभूषण (गहने) छत्तीसगढ़ के व्यंजन छत्तीसगढ़ के साहित्यकार छत्तीसगढ राज्य के उत्सव / महोत्सव छत्तीसगढ़ के पर्व छत्तीसगढ़ के मेले छत्तीसगढ़ की मुद्राएँ छत्तीसगढ़ के साहित्‍यकार

सृजनगाथा के चौथे आयोजन में ब्‍लॉगर संजीत त्रिपाठी सम्मानित : रिपोर्ट

वेब पत्रिका सृजन गाथा डॉट काम एवं प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान के द्वारा छत्‍तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के प्रेस क्‍लब में आयोजित एक गरिमामय व्याख्यान एवं सम्‍मान समारोह  में आज हिन्‍दी ब्‍लॉग लेखन में उल्‍लेखनीय योगदान के लिए प्रदेश के ब्‍लॉगर संजीत त्रिपाठी सहित साहित्‍यकार व पत्रकारों का सम्‍मान किया गया। सृजन गाथा डॉटकाम का यह चौथा आयोजन था। व्याख्यान में कविता क्या, कविता क्यों विषय पर प्रमुख व्याख्यान देते हुए इलाहाबाद से आए कवि, लेखक एवं समीक्षक प्रकाश मिश्र ने अपने उद्बोधन में कहा कि यश व धन कविता के शत्रु नहीं है पर कविता को मनुष्यता पर आधारित होना चाहिए कविता को कुरूपता से बचना चाहिए व उसे सहज भी होना चाहिए कविता की शुरूआत से आज तक कई परिवर्तन आए है। छंद लय रस से लेकर गद्यात्मक कविता का दौर भी आया है। उन्होने कहा कि गद्यात्मक कविता के माध्यम से भी भाव की अभिव्यक्ति की जा सकती है केवल निरा छंद कौशल ही कविता नहीं है। जिसमें संवेदना,संस्कृति एवं जीवन में संसार का भाव हो वही कविता है।   व्याख्यान कार्यक्रम के अध्यक्षीय उद्बोधन में गंगा प्रसाद बरसैया ने कहा कि कविता वेदों से

डाली डाली उड उड करके खाए फल अनमोल वृक्षों को किसने उपजाया देख उसे दृग खोल : पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी 'विप्र'

धन धन रे मोर किसान, धन धन रे मोर किसान! मैं तो तोला जानेव रे भईया, तैं अस भुंईया के भगवान ...... भैया लाल हेडाउ के सुमधुर स्‍वर में इस गीत को छत्‍तीसगढ़ी भाषा के प्रेमियों नें सुना होगा। इस गीत के गीतकार थे छत्‍तीसगढ़ी भाषा के सुप्रसिद्ध गीतकार द्वारिका प्रसाद तिवारी 'विप्र'। ऐसे लोकप्रिय गीत के गीतकार विप्र जी नें तदसमय में छत्‍तीसगढ़ी भाषा को अभिजात्‍य वर्ग के बीच बोलचाल की भाषा का दर्जा दिलाया। पं.द्वारिका प्रसाद तिवारी 'विप्र' जी का जन्‍म छत्‍तीसगढ़ के संस्‍कारधानी बिलासपुर के एक मध्‍यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार में 6 जुलाई सन् 1908 में हुआ. विप्र जी के पिता का नाम पं. नान्‍हूराम तिवारी और माता का नाम देवकी था। विप्र जी, दो भाई और दो बहनों में मंझले थे जिसके कारण वे मंझला महराज के नाम से भी जाने जाते थे। हाई स्‍कूल तक की शिक्षा इन्‍होंनें बिलासपुर में ही प्राप्‍त की फिर इम्‍पीरियल बैंक रायपुर एवं सहकारिता क्षेत्र में कार्य करते हुए सहकारी बैंक बिलासपुर में प्रबंधक नियुक्‍त हुए। सादा जीवन उच्‍च विचार से प्रेरित विप्र जी जन्‍मजात कवि थे, बात बात में गीत गढ़ते थे। ठेठ मिठा

ब्लॉगर संजीत त्रिपाठी को चौंथा सृजनगाथा सम्मान

संपूर्ण विश्‍व में हिन्‍दी ब्‍लॉगों की लोकप्रियता दिन ब दिन बढ़ती जा रही है. अन्‍य प्रदेशों की भांति छत्‍तीसगढ़ में भी हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग बहुत लोकप्रिय हो चुकी है. प्रदेश में सक्रिय ब्‍लॉग लेखकों एवं अब्‍लॉगर पाठकों की संख्‍या निरंतर बढ़ रही है। इस विधा को प्रोत्‍साहन देने के लिए छत्‍तीसगढ़ के प्रथम हिन्‍दी ब्‍लागर जयप्रकाश मानस द्वारा पिछले वर्षों से पुरस्‍कार व सम्‍मान प्रदान किया जा रहा है।  जयप्रकाश मानस जी द्वारा संपादित राज्य की पहली वेब पत्रिका तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित, साहित्य, संस्कृति, विचार और भाषा की मासिक पोर्टल सृजनगाथा डॉट कॉम (www.srijangatha.com) के चार वर्ष पूर्ण होने पर चौंथे सृजनगाथा व्याख्यानमाला का आयोजन 6 जुलाई, 2010 दिन मंगलवार को स्थानीय प्रेस क्लब, रायपुर में दोपहर 3 बजे किया गया है ।  इस अवसर पर चौंथे सृजनगाथा डॉट कॉम सम्मान से श्री सनत चतुर्वेदी (पत्रकारिता), श्री नरेन्द्र बंगाले (फोटो पत्रकारिता), श्री संतोष जैन (इलेक्ट्रानिक मीडिया), श्री संदीप अखिल (रेडियो पत्रकारिता), श्री अशोक शर्मा (वेब-विशेषज्ञ),  श्री संजीत त्रिपाठी  (हिन्दी ब्लॉगिंग), श्र

पंडवानी के नायक भीम और महाभारत के नायक अर्जुन

यह सर्वविदित तथ्य है कि छत्तीसगढ़ की लोकगाथा पंडवानी महाभारत कथाओं का लोक स्वरूप है। वैदिक महाभारत के नायक अर्जुन रहे हैं जबकि पंडवानी के नायक भीम हैं। पिछले पोस्ट में पंडवानी की तथाकथित शाखा और शैली के संबंध में हमने बतलाया था। जिसके निष्कर्ष स्वरूप आप यह न समझ बैंठें कि वेदमति शाखा के नायक अर्जुन और कापालिक शाखा के नायक भीम हैं। उपलब्ध जानकारियों के अनुसार छत्तीसगढ़ में प्रचलित दोनों शाखाओं के नायक भीम ही रहे हैं। इसे आप जनरंजन के रूप में भी स्वीकार सकते हैं। इसके मूल में क्या कारण रहे हैं इस संबंध में रामहृदय तिवारी जी नें अपने एक आलेख में लिखा है- ‘ महाभारत के इतने विविध चरित्रों में पंडवानी गायकों नें भीम को ही इतनी प्रमुखता और महत्ता क्यों दी इसके अपने सूक्ष्‍म मनोवैज्ञानिक कारण हो सकते हैं। यह एक रोचक तथ्य है कि पंडवानी गायन परंपरा में संलग्न लगभग सभी कलाकार द्विजेतर जातियों के हैं। सदियों से उपेक्षित, तिरस्कृत और दबे कुचले इन जातियों के लोग अपने दमित आक्रोश की अभिव्यक्ति और संतुष्टि भीम के चरित्र में पाते हैं। भीम की अतुल शौर्यगाथा गाकर ये कलाकार अपने भीतर छुपे प्र