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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

मुक्तिबोध ओ मुक्तिबोध : मुक्तिबोध स्‍मारक परिसर के संबंध में संक्षिप्‍त जानकारी

मूर्धन्य कवि समीक्षक गजानन माधव मुक्तिबोध जी ने अपने जीवन काल की सर्वश्रेष्‍ठ रचनाएं छत्‍तीसगढ़ राज्‍य के राजनांदगांव जिले के दिग्विजय महाविद्यालय  में अपने सेवा काल (1958-1964) के दौरान लिखी उनके इस रचनाकाल और रचनाओं पर देश की शीर्ष अकादमिक व साहित्यिक बिरादरी में निरंतर चर्चा होती रही है। राज्‍य शासन नें उनकी यादों को  जीवंत बनाने के लिए यहां भव्‍य त्रिवेणी संग्रहालय का निर्माण करवाया है। जहां मुक्तिबोध जी रहा करते थे, उनकी साहित्य साधना का स्थान और घुमावदार सीढ़ी जिसका उल्लेख उन्होनें अपनी रचनाओं में की है इस भवन के उपरी मंजिल के उत्तरी खंड में है। इस खडं को पुन: मुक्तिबोध जी को, उनकी यादों के साथ समर्पित करना निश्चय ही उनके प्रति कृतज्ञता एवं श्रृद्धा का प्रतीक है। मुक्तिबोध जी को समर्पित कक्ष को देखकर ऐसा प्रतीत होता है, जैसे वह आज भी अपनी रचनाओं के सृजन में लीन हों। मुक्तिबोध जी का सिगरटे बाक्स, उनकी पोशाक, चश्मा और उनकी वह दो कलमें (पेन) जिससे उन्होंने अपनी अनेक रचनाएं लिखी थी, को वहां देखकर यह आभास होता है जैसे वह कहीं हमारे आसपास मौजदू हों।




यह स्मारक सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक दर्शकों, साहित्य प्रेमियों के लिए खुला रहता है । शासकीय अवकाश रविवार के दिन भी यहां जाया जा सकता है। यह स्मारक सोम वार को बदं रहता है।

मुक्तिबोध ओ मुक्तिबोध, 
तुम गजानन, तुम माधव, 
स्‍वीकारो श्रद्धा सुमन 
मैं अल्‍प मति, मैं अबोध 
तुम मुक्तिबोध ..
... संजीव तिवारी


फोटो सिंहावलोकन वाले राहुल सिंह भईया से साभार 

टिप्पणियाँ

  1. मुक्तिबोध जी विनम्र श्रद्धांजलि और नमन

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  2. साहित्‍य के त्रिदेव के चरण म सत सत नमन

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  3. सुन्दर जानकारी और श्रद्धा सुमन।

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  4. छत्‍तीसगढ़ का साहित्‍य तीर्थ है यह स्‍थल. दर्शन का पुण्‍य लाभ मिला है, सो गौरवान्वित हूं.

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  5. अच्‍छी जानकारी, राजनांदगांव आने पर साहित्‍य के इस तीर्थ के दर्शन जरूर करना चाहेंगे।

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  6. अच्‍छी जानकारी... सत सत नमन

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  7. आपकी लेखनी और सिंह साहब के चित्रों की जुगलबंदी की जाई पोस्ट कमाल बस कमाल है ! सार्थक पोस्ट !

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  8. प्रणाम,
    राजनांदगांव और त्रिवेणी परिसर से मुझे बेहद लगाव है और वाकई वहां जाने पर जो सुकून मिलता है वह कहीं और नहीं, यही वह महत्वपूर्ण स्थान है जहाँ साहित्य के त्रिदेवों का मिलन हुआ और साहित्य ने नए आयामों को प्राप्त किया| यह धरा आदरणीय बख्शी जी, मुक्तिबोध जी एवं मिश्र की आज भी ऋणी है और आज भी राजनांदगांव की माटी में साहित्य एवं कला की मोहक सुगंध को महसूस किया जा सकता है एवं...
    आपने इस पोस्ट के माध्यम से मेरे प्रिय नगर एवं वहां की यादों को तरोताजा कर दिया, सच आज इस ब्लॉग में आकर बेहद प्रसन्नता हुई आपको शत शत प्रणाम एवं इस बेहद प्रभावी पोस्ट के लिए अनंत आभार |
    गौरव.

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आपकी टिप्पणियों का स्वागत है. (टिप्पणियों के प्रकाशित होने में कुछ समय लग सकता है.) -संजीव तिवारी, दुर्ग (छ.ग.)

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