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फ़रवरी, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

जीमेल में ईमेल कैसे भेजें

ई-मेल का उपयोग करना वर्तमान समय में कोई बड़ी बात नहीं है किन्‍तु जो इसके लिये नये हैं उनके लिए जीमेल खाते से ईमेल भेजने की क्रमिक जानकारी हम यहां अपने पाठकों के लिए प्रस्‍तुत कर रहे हैं। इंटरनेट उपयोग करने वालों के लिए यद्धपि इस पोस्‍ट की कोई उपयोगिता नहीं है किन्‍तु मेरे कुछ मित्रों का अनुरोध था इसलिये इसे प्रस्‍तुत किया जा रहा है - आपके Gmail खाते से ईमेल संदेश कैसे भेजें 1. एक्‍सप्‍लोरर , क्रोम , सफारी या फायर फाक्‍स ब्राउज़र के एड़ेस बार में www.gmail.com टाइप करें और एंटर की प्रेस करें या माउस क्लिक करें। 2. अपना पासवर्ड आईडी डालें। 3. अपने मित्र को ई-मेल भेजने के लिए नीचे दिए गए चित्रानुसार ' कम्‍पोज ' बटन को क्लिक करना होगा। 4. यहां सर्वप्रथम जिसे ई-मेल भेजना है उसका पूरा पता लिखना होगा , सब्‍जेक्‍ट खाने में संदेश का विषय लिखना होगा व उसके नीचे दिए गए संदेश बक्‍से में संदेश लिखना होगा , या पहले से किसी फाईल में लिखे संदेश को यहां पेस्‍ट करना होगा- 5. आप अपने संदेश के शब्‍दों को को माउस से सलेक्‍ट कर , रंगबिरंगा एवं बोर्ड , इटालिक आदि रूपों में टैक्‍स्‍ट फारमेटिंग बार

ब्‍लॉग ट्रिक : ब्‍लाग से नवबार (Navigation Bar) को हटाना

How To Remove Blogger Navigation Bar in Draft Template Designer ब्लागर डाट काम में जो ब्‍लॉगर साथी, ब्‍लॉगर के द्वारा उपलब्‍ध कराए गए टैम्‍पलेट का उपयोग कर रहे हैं, उनमें से कई ब्‍लॉगर संगी ब्‍लॉग के उपर में ब्‍लागर के नवबार को हटाने के संबंध में अक्‍सर प्रश्‍न पूछते रहते हैं। ब्‍लागर के नवबार को हटाने से ब्‍लॉग का लुक कुछ वेबसाईट जैसा लगता है एवं उपर हेडर के लिए कुछ अतिरिक्‍त स्‍थान मिल जाता है। हम इस पोस्‍ट में आपको न्‍यू ब्‍लॉगर टैम्‍पलेट डिजाइनर के माध्‍यम से ब्‍लागर के नवबार को हटाने का जुगाड़ बता रहे हैं - ब्‍लॉगर में लागइन होवें - डैशबोर्ड ( Dashboard) - डिजाइन (Design) - टेम्‍पलेट डिजाइनर (Template Designer) - उन्‍नत (Advanced) - CSS जोड़ें ( Add CSS) यहां नीचे दिये गये कोड को कापी कर, पेस्‍ट कर देवें - #navbar-iframe {display: none !important;} अब उपर दायें कोने पर ब्‍लॉग पर लागू करें (Apply to Blog)  को क्लिक करें, देखें आपके ब्‍लॉग से ब्‍लागर नवबार हट गया है - मेरे जुगाड़ू ब्‍लॉग तकनीक यहां देखें, कोड कापी नहीं हो रहा है ? .. इस पोस्‍ट को मेरे वर्डप्रेस ब्‍लॉग

ब्‍लाग ट्रिक Attribution कापीराईट विजेट को हटाना

How to Remove Attribution Widget / Copyright widget line at the bottom on Blogger      यदि आप अपने ब्‍लॉग में ब्‍लॉगर के   Template Designer से टैम्‍पलेट चुन कर लगाया है तो आपके ब्‍लॉग के एकदम नीचे Attribution कापीराईट विजेट नजर आता है ऐसा - इसमें आप अपना नाम डाल सकते हैं किन्‍तु इसे आप हटाना चाहेंगें तो यह विजेट हटता नहीं है क्‍योंकि इसे एडिट करने पर यहां रिमूव का विकल्‍प नहीं होता - तो लीजिए हम इसे हटाने का जुगाड़ क्रमिक रूप से बतलाते हैं - अपने ब्‍लॉगर आईडी के साथ लागईन होवें > डैशबोर्ड > डिज़ाइन > एडिट एचटीएमएल यहॉं एक्‍सपांड विजेट टैम्‍पलेट के सामने दिये गये छोटे बाक्‍स को क्लिक करें - अब  नीचे जो एचटीएमएल कोड नजर आ रहा है उसमें  "attribution" शब्‍द को फाइन्‍ड विकल्‍प से खोजें. यहां Attribution widget code कुछ ऐसा दिखेगा - यहां "true" के स्‍थान पर  "false" लिखें, अब कोड बाक्‍स के  नीचे दिये गए टैम्‍पलेट सेव बटन को क्लिक कर सेव करें.  पुन: वापस  > पेज इलेमेंट में जाए,  अब Attribution कापीराईट विजेट को एडिट करके देखें - अब य

मुझे माफ कर मेरे हम सफर ....

दीपक, तुमने मेरे लोगों के विरूद्ध हो रहे निरंतर अत्याचार के विरूद्ध लिखने के लिए बोला और मैं अपनी समस्याओं और मजबूरियों का पिटारा खोल बैठा .. तो क्या करू मेरे भाई मेरे देश का प्रधान मंत्री जब इस कदर निरीह और लाचार होकर राष्ट्रीय प्रसारणों में बोलता है तो मैं तो एक साधारण सा कलमकार हूं, मुझे तो समस्‍याओं से मुह मोड़ने का अधिकार है। हॉं जिस दिन मैं अपने आपको इन सब प्रमेयों से दूर इंसान समझने लगूंगा उस दिन इस मसले पर अवश्य लिखूंगा क्योंकि कलमकारी में भी अब राजनीति हावी है इसलिए इसके अर्थ पर संवेदना की आस मत कर। संजीव तिवारी दीपक तुमने आज केवल छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री को पत्र नहीं लिखा है, इसके मजमूनों में तुमने हमस सब को लपेटा है जो किसी ना किसी रूप में इस सिस्टम के मोहरें हैं ... पर क्या करें मेरे भाई, हमारे सामने हमारी बेटियॉं लुट रही हैं और हमारे मुह पर ‘पैरा बोजाया’ हुआ है। हम मजे से मुह में दबे पैरे को कोल्हू के बैल की तरह ‘पगुराए’ जा रहे हैं क्योंकि हममें सिर उठाकर ‘हुबेलने’ की हिम्मत नहीं है, क्योंकि हमारे पेट में दिनों से भूख ने सरकारी जमीन समझ कर एनक्रोचमेंट कर झोपड़ी बना

भाषा पर आक्रमण

छत्‍तीसगढि़या सबले बढि़या क्षेत्रीय भाषा छत्‍तीसगढ़ी पर हो रहे बेढ़ंगे प्रयोग से मेरा मन बार बार उद्वेलित हो जाता है, लोग दलीलें देते हैं कि क्‍या हुआ कम से कम भाषा का प्रयोग बढ़ रहा है धीरे धीरे लोगों की भाषा सुधर जाएगी किन्‍तु क्‍यूं मन मानता ही नहीं, हिन्‍दी में अंग्रेजी शब्‍दों नें अतिक्रमण कर लिया है किन्‍तु उन शब्‍दों के प्रयोग से भाषा यद्धपि खिचड़ी हुई है पर उसके अभिव्‍यक्ति पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ा है। किन्‍तु छत्‍तीसगढ़ी के शब्‍दों को बिना जाने समझे कहीं का कहीं घुसेड़ने से प्रथमत: पठनीयता प्रभावित होती है तदनंतर उसका अर्थ भी विचित्र हो जाता है। वाणिज्यिक आवश्‍यकताओं नें धनपतियों व बहुराष्‍ट्रीय कम्‍पनियों को क्षेत्रीय भाषा के प्रति आकर्षित किया है वहीं गैर छत्‍तीसगढ़ी भाषा-भाषी क्षेत्रीय भाषा के प्रयोग से प्रदेश के प्रति अपना थोथा प्रेम प्रदर्शित करने की कोशिस कर रहे हैं। मेरा आरंभ से मानना रहा है कि यदि आपको छत्‍तीसगढ़ी नहीं आती है तो इसे सीखने का प्रयास करें किन्‍तु बिना छत्‍तीसगढ़ी सीखे छत्‍तीसगढ़ी शब्‍दों का गलत प्रयोग ना करें। पिछले दिनों प्रदेश के प्रसिद्ध कथाकार

राजघाट से गाजा तक कारवां-7

राजघाट से गाजा तक के कारवां में साथ रहे   दैनिक छत्‍तीसगढ़  समाचार पत्र के संपादक श्री सुनील कुमार जी के इस संस्‍मरण के संपादित अंश  बीबीसी हिन्‍दी  में क्रमश: प्रकाशित किए गए हैं. हम अपने पाठकों के लिए सुनील कुमार जी के इस पूर्ण संस्‍मरण को, छत्‍तीसगढ़ से साभार क्रमश: प्रकाशित करेंगें. प्रस्‍तुत है सातवीं और अंतिम कड़ी ... ( पिछली किस्त से आगे ) दिल्ली से गाजा तक के सफर में जिस गाजा की हम कल्पना करते पहुंचे थे , वह कुछ मायनों में उससे बेहतर था और कुछ में बदतर। एक तो हमलों के निशाने पर बिरादरी , दूसरी तरफ आसपास के कुछ मुस्लिम पड़ोसी देशों की भी हमदर्दी उसके साथ नहीं है। संयुक्त राष्ट्र जितनी राहत करना चाहता है , वह भी इजराइल की समुद्री घेरेबंदी के चलते मुमकिन नहीं है। लेकिन उम्मीद से बेहतर इस मायने में था कि कई नए मकान और नई इमारतें बनते दिख रही थीं और बच्चे स्कूल-कॉलेज जाते हुए भी। गाजा में हम एक ऐसे मुहल्ले में गए जहां एक ही कुनबे के 28-29 लोग हवाई हमले में मारे गए थे। पूरा इलाका अब मैदान सा हो गया है और वहीं एक परिवार कच्ची दीवारें खड़ी करके प्लास्टिक की तालपत्री के सहारे जी रहा है

राजघाट से गाजा तक कारवां-6

राजघाट से गाजा तक के कारवां में साथ रहे   दैनिक छत्‍तीसगढ़  समाचार पत्र के संपादक श्री सुनील कुमार जी के इस संस्‍मरण के संपादित अंश  बीबीसी हिन्‍दी  में क्रमश: प्रकाशित किए गए हैं. हम अपने पाठकों के लिए सुनील कुमार जी के इस पूर्ण संस्‍मरण को, छत्‍तीसगढ़ से साभार क्रमश: प्रकाशित करेंगें. प्रस्‍तुत है छठवीं कड़ी ... ( पिछली किस्त से आगे) हम जिस नजरिए से गाजा पहुंचे थे , उसके मुताबिक इजराइल आए दिन गाजा पर छोटे-मोटे हमले करते ही रहता है। पहले वह बड़े हमले भी कर चुका है और एक पिछली लड़ाई की इबारत इमारतों के मलबे की शक्ल में वहां बिखरी पड़ी थी। ऐसे अनगिनत मकान दिखते हैं जिसकी दीवारें गोलियों की बौछारों से छिदी पड़ी हैं। ऐसे अनगिनत परिवार हैं जहां के लोग शहीद हुए हैं। कहने को संयुक्त राष्ट्र संघ यहां मदद करता है लेकिन इजराइली घेराबंदी के चलते वहां सामान कुछ सुरंगों से तस्करी से पहुंचता है। इजराइल और फिलीस्तीन के बीच के पूरे तनाव का खुलासा यहां पर मुमकिन नहीं है लेकिन उसे लोग आगे-पीछे खबरों में पढ़कर जान और समझ सकते हैं। कारवां की दास्तां में उसका बड़ा लंबा ब्यौरा ठीक नहीं। जिस फिलीस्तीन की ज

राजघाट से गाजा तक कारवां - 5

राजघाट से गाजा तक के कारवां में साथ रहे   दैनिक छत्‍तीसगढ़  समाचार पत्र के संपादक श्री सुनील कुमार जी के इस संस्‍मरण के संपादित अंश  बीबीसी हिन्‍दी  में क्रमश: प्रकाशित किए गए हैं. हम अपने पाठकों के लिए सुनील कुमार जी के इस पूर्ण संस्‍मरण को, छत्‍तीसगढ़ से साभार क्रमश: प्रकाशित करेंगें. प्रस्‍तुत है पांचवी कड़ी ... ( पिछली किस्त से आगे) गाजा से कुल एक देश , इजिप्ट , की दूरी पर ठहरे हुए हम सीरिया के दो शहरों में वक्त गुजारते रहे और फिलीस्तीनी शरणार्थियों की बस्तियों में जाते रहे। हिन्दुस्तान में आज यह लिखते हुए टीवी पर सामने एक रिपोर्ट है कि किस तरह दिल्ली में शरणार्थी कैम्पों में एक-एक कमरों में वे कश्मीरी पंडित परिवार रह रहे हैं जिन्हें अलगाववादी-आतंकी कश्मीरियों ने वहां से भगा दिया था। यह मिसाल मैंने कारवां के कई लोगों के सामने रखी , लेकिन किसी के पास इस बात का आसान जवाब नहीं था कि भारत के भीतर ऐसा करवां कश्मीर से बेदखल , बेघर हुए लोगों के लिए क्यों नहीं निकलना चाहिए ? लेकिन अभी चर्चा गाजा की। सीरिया में दमिश्क में डेरा कुछ लंबा रहा और वहीं के एक दूसरे शहर लताकिया में भी। जब बाकी लो

राजघाट से गाजा तक कारवां-4

राजघाट से गाजा तक के कारवां में साथ रहे   दैनिक छत्‍तीसगढ़  समाचार पत्र के संपादक श्री सुनील कुमार जी के इस संस्‍मरण के संपादित अंश  बीबीसी हिन्‍दी  में क्रमश: प्रकाशित किए गए हैं. हम अपने पाठकों के लिए सुनील कुमार जी के इस पूर्ण संस्‍मरण को, छत्‍तीसगढ़ से साभार क्रमश: प्रकाशित करेंगें. प्रस्‍तुत है चौथी कड़ी ... ( पिछली किस्त से आगे) फिलीस्तीन के लिए मानवीय सहायता और दोस्ताना हमदर्दी लेकर निकले इस कारवां के पांच हफ्ते के लंबे सफर पर कई गैरराजनीतिक बातें भी छाई रहीं। '' हम क्या चाहते... आजादी... ''   का दमदार नारा बसों में उस वक्त '' हम क्या चाहते... डब्ल्यूसी... ''   में तब्दील हो जाता था जब बस कई घंटे थमने का नाम नहीं लेती थी। डब्ल्यूसी यानी वेस्टर्न कमोड। मूत्रालय के लिए इस पूरी मुस्लिम दुनिया में इस काम के लिए बनी जगह की ही प्रथा है और हिन्दुस्तान की तरह नहीं कि मर्द किसी भी जगह खड़े हो जाएं। फिर बसों में महिलाएं भी तो थीं। नतीजा यह था कि ड्राइवर या स्थानीय आयोजक जब घंटों बस न ठहराते , तो ये नारे लगने लगते। मजे की बात है कि जिसे ये तमाम देश वेस्टर्न

राजघाट से गाजा तक कारवां - 3

राजघाट से गाजा तक के कारवां में साथ रहे   दैनिक छत्‍तीसगढ़  समाचार पत्र के संपादक श्री सुनील कुमार जी के इस संस्‍मरण के संपादित अंश  बीबीसी हिन्‍दी  में क्रमश: प्रकाशित किए गए हैं. हम अपने पाठकों के लिए सुनील कुमार जी के इस पूर्ण संस्‍मरण को, छत्‍तीसगढ़ से साभार क्रमश: प्रकाशित करेंगें. प्रस्‍तुत है तीसरी कड़ी ... ( पिछली किस्त से आगे) ईरान की बात एशिया से गाजा के सफर के महज एक मुल्क तक नहीं रह सकती , सच तो यह है कि ईरान पार हो जाने के बाद भी कारवां का खासा बोझ ईरान तरह-तरह से उठाते रहा। भारत सरकार ने जब चिकित्सा उपकरण ले जाने की इजाजत नहीं दी , तो ईरान ने करोड़ों के सामान दिए , और वहां के आधा दर्जन सांसदों सहित दर्जनों लोग कारवां में इजिप्ट के पहले तक गए। उनकी आशंका के मुताबिक इजिप्ट ने ईरानियों को वीजा देने से मना कर दिया और ईरानी साथी फिलीस्तीन नहीं जा पाए। मैं देशों के खाते-बही की असलियत पर नहीं जा रहा लेकिन कारवां की पालकी को तीन कंधे तो ईरान के ही लगे थे। मैं तो इस काफिले में अखबारनवीस की हैसियत से शामिल था , लेकिन फिलीस्तीन की हिमायत में , इजराइल के खिलाफ अपनी पक्की सोच के चलते