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अप्रैल, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

फिल्मों को भेड़ चाल से बचाएं : रामेश्वर वैष्‍णव

धारदार व्‍यंग्‍य कविताओं और सरस गीतों से कवि सम्‍मेलन के मंचों पर छत्‍तीसगढ़ी भाषा में अपनी दमदार उपस्थिति सतत रूप से दर्ज कराने वाले एवं चंदैनी गोंदा , सोनहा विहान , दौनापान , अरण्य गाथा , गोड़ के धुर्रा , छत्तीसगढ़ी मेघदूत , मयारू भौजी , लेड़गा नं. 1, झन भूलौ मां बाप ला जैसे लोकप्रिय छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍मों में गीतों के जरिये अपनी अलग पहचान बनाने वाले गीतकार , कवि रामेश्वर वैष्णव का मानना है कि छालीवुड में सुलझे निर्देशकों की कमी है। भेड़ चाल से बन रही फिल्मों में ज्यादातर फिल्मों में न तो गीत में स्थायी भाव होते हैं न धुन का ठिकाना। चुटकुलेबाजी और जोड़तोड़ से की जा रही रचनाओं का असर श्रोताओं पर स्थायी रूप से नहीं पड़ता। एक छत्तीसगढ़ी फिल्म ' मया ' क्या हिट हो गई। कई निर्माता निर्देशक फिल्म बनाने बिना किसी तैयारी के फिल्म निर्माण में जुटे हैं। जिनमें मसालेदार फिल्मों को छत्तीसगढ़ के दर्शकों में परोसने की तैयारी है। ऐसे लोग फिल्म निर्माता के रूप में उभरे हैं जिनका साहित्य , कला व संस्कृति से दूर-दूर तक का संबंध नहीं है। उन्हें व्यवसाय करना है संगीत भले ही न जाने पर रिटर्न चाहते ह

समीक्षाः बिलसपुरिहा बोली में पगी एक सुन्दर अभिव्यक्ति ‘गॉंव कहॉं सोरियावत हे’ - विनोद साव

संग्रह का नाम - गॉंव कहॉं सोरियावत हे कवि - बुध राम यादव प्रकाशक - छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति, बिलासपुर मूल्य - रु. 100/- समीक्षक - विनोद साव , मुक्तनगर, दुर्ग छत्तीसगढ  मो. 9407984014 बुधराम यादव बड़े प्रतिभा सम्पन्न कवि हैं। वे छत्तीसगढ़ी और हिन्‍दी के एक समर्थ कवि और गीतकार हैं, बल्कि कहें तो वे गीतकार की कोटि में अधिक खरे उतरते हैं। उन्हें कविता के अन्धड़ से बचने के लिए गीत की गुफाओं में पनाह लेनी चाहिए। यहॉं बैठकर अपनी षष्ठपूर्ति के पांच बरस निकल जाने के बाद अपनी रचना यात्रा पर एक विहंगम दृष्टि डालते हुए आगे की सृजन योजना पर उन्हें विचार करना चाहिए। बुधराम यादव न केवल अच्छे गीत लिख लेते हैं बल्कि अपने गीतों का मधुर गायन भी वे कर लेते हैं। कवि सम्मेलन के मंचों पर उन्हें गाते हुए लोगों ने सुना है। वे बहुत पहले अपने हिन्‍दी गीतों का भी गायन किया करते थे। हिन्‍दी और छत्तीसगढ़ी के गीतों का गायन करते हुए उनके स्वर में एक विरह वेदना होती है। उनमें क्षरित होते मानवीय सम्बंधों और पारम्परिक मूल्यों के लिए एक पछतावापूर्ण पीड़ा होती है। अपनी रचनाओं के जरिये अपने वर्तमान में उन मूल

कामरेड कमला प्रसाद : संगठन और लेखन के बीच खड़ा कलाकार - विनोद साव

कुशल संगठन कर्मी, प्रगतिशील लेखक संघ के मुखपत्र ‘वसुधा’ के संपादक, लेखक कामरेड कमला प्रसाद का विगत 25 मार्च 2011 को अवसान हो गया। दुर्ग भिलाई से उनकी अनेक स्मृतियॉं जुड़ी थी। उन्हें याद करते हुए विनोद साव जी का यह आलेख यहॉं प्रस्तुत है - संगठन और लेखन के बीच खड़ा कलाकार विनोद साव ऐसे कई लोग जीवन में आते हैं जिनसे हमारी कोई विशेष अंतरंगता नहीं होती, कोई निकट परिचय नहीं होता पर वे फिर भी अच्छे लगते हैं। कोई अपने व्यक्तित्व से अच्छा लगता है तो कोई अपनी कार्य प्रणाली से। कमला प्रसादजी मेरे लिए ऐसे ही लोगों में से थे। मैं कह भी नहीं सकता कि एक लेखक के रुप में वे कितना मुझे जानते थे। उनसे मेरा कोई व्यक्तिगत सम्बंध नहीं था। न कोई पत्र-व्यवहार था। न ही उनकी पत्रिका ‘वसुधा’ में मेरी कोई रचना छपी थी। रचना छापे जाने के बाबत उनसे कोई बातचीत भी कभी नहीं हुई थी। पर बीते दिनों में उनका एक पत्र प्राप्त हुआ था जिसमें उन्होंने बंगाल पर लिखी गई मेरी रचना ‘शस्य श्यामला धरती’ को स्वीकृत करते हुए लिखा था ‘प्रिय विनोद, तुम्हारी रचना हम वसुधा के नये अंक के लिए ले रहे हैं, इसे अन्यत्र मत भेजना।’ मुझे बड़ी खुश

रंगकर्मी संतोष जैन से देशबन्धु के कला प्रतिनिधि की खास बातचीत

छत्तीसगढ़ी फिल्मों के निर्माता व वरिष्ठ रंगकर्मी संतोष जैन का मानना है छत्तीसगढ़ी फिल्मों को प्रोत्साहित करने राज्य सरकार सब्सिडी दे। तथा महाराष्ट्र की तर्ज पर छत्तीसगढ़ में भी स्थानीय भाषा की फिल्मों को अनिवार्य रूप से प्रदर्शित करने छबिगृह संचालकों को निर्देशित किया जाये। जिस तरह महाराष्ट्र में मराठी फिल्मों को नहीं दिखाने पर टॉकीज के लायसेंस रद्द करने की कार्रवाई की जाती है। छत्तीसगढ़ में भी छत्तीसगढ़ी फिल्मों को बढ़ावा देने अंचल के छबिगृहों में यह व्यवस्था लागू की जाये।   श्री जैन ने ' देशबन्धु ' के कला प्रतिनिधि से बातचीत में ये बातें कही। उन्होंने ये भी सुझाव दिया कि छालीवुड में बनने वाली फिल्मों का प्रदर्शन दिल्ली दूरदर्शन से किया जाये। क्योंकि छत्तीसगढ़ में सात-आठ जिले ही ऐसे हैं जहां छत्तीसगढ़ी फिल्मों को प्रदर्शित किया जाता है। पूरे भारत में छत्तीसगढ़ी में बनने वाली फिल्मों का प्रचार प्रसार हो इसके लिए दिल्ली दूरदर्शन से यहां की फिल्में प्रसारित हो ऐसा प्रयास किया जाये। इस मुद्दे को छत्तीसगढ़ सिने एवं टीवी एसोसिएशन द्वारा प्रमुखता से उठाया जायेगा। - छालीवुड में ढर्रे

टेंगनाही माता को चढ़ाते हैं मछली : कचना धुरवा की परम्‍परा

आदिकाल से देवी-देवताओं में कई प्रकार के च़ढ़ावे व बलि देने की प्रथा चली आ रही है, बलि में भैंसें, बकरे और मुर्गीयों की बलि के संबंध में सुना होगा। छत्‍तीसगढ़ के छुरा क्षेत्र में देवी टेंगनाही माता का मंदिर है जो क्षेत्र में प्रसिद्ध है एवं आस्‍था के अनुसार इसे जागृत मंदिर माना जाता है। इस मंदिर में पारंपरिक बलि के अतिरिक्‍त देवी को मछली भेंट करने की परंपरा है। इस देवीस्थल पर प्रतिवर्ष चैत्र पूर्णिमा पर जातरा मेला का आयोजन किया जाता है एवं नवरात्रि में मनोकामना ज्योति जलाई जाती है। जहां मन्नत पूरी होने वाले फरियादी दूर-दराज से पहुँचते हैं और माता को प्रतीकात्‍मक टेंगना मछली चढ़ाते हैं एवं बकरों की बलि देते है। माना जाता है कि इस क्षेत्र में जब राजा कचना धुरवा का राज्य स्थापित हुआ। तब राजा ने विजय पाने के लिए टेंगनाही माता से मन्नत माँगी। मंदिर के पुजारी पर सवार माता नें तीन सींग की बली देने का वचन राजा से लिया। राजा आशीर्वाद लेकर विजय पथ पर निकल पड़े। कचना धुरवा को आशातीत विजय हासिल हुई, विरोधी परास्‍त हुए। अब राजा ने तीन सींग वाला बकरा खोजा पर तीन सींग वाला बकरा नहीं मिला। माता को दिये

एबलॉन छत्‍तीसगढ़ी सिने अवार्ड : अनुज हीरो नंबर वन

सर्वश्रेष्ठ फिल्म का अवार्ड ‘ टूरा रिक्शा वाला ’ को म्यूजिक , डांस और गीतों की रंगारंग प्रस्तुतियों के बीच 2010 में बनीं छत्तीसगढ़ी फिल्मों के बेस्ट परफार्मर सोमवार शाम सम्मानित हुए। बेस्ट एक्टर का अवार्ड ‘ महूं दीवाना , तहूं दीवानी ’ के हीरो अनुज शर्मा ने हासिल किया और 2010 की बेस्ट फिल्म का खिताब ‘ टूरा रिक्शा वाला ’ के नाम रहा। एक बार फिर मनमोहन ठाकुर सर्वश्रेष्ठ खलनायक के रूप में पुरस्कृत हुए , जबकि बेस्ट एक्टे Ñ स का अवार्ड शिखा चितांबरे को मिला , जिसने ‘ टूरा रिक्शा वाला ’ में अभिनय किया है। इसी फिल्म का निर्देशन करने वाले सतीश जैन बेस्ट डायरेक्टर के अवार्ड से नवाजे गए। लंबे अंतराल के बाद छत्तीसगढ़ में ऐसा कार्यक्रम हुआ , जिसे एबेलॉन इवेंट्स ने आयोजित किया। जिंदल इस्पात के जीएम प्रदीप टंडन , ‘ हरिभूमि ’ समाचार पत्र समूह के प्रबंध संपादक डा. हिमांशु द्विवेदी , एनसीपी के कार्यकारी अध्यक्ष सतीश जग्गी , बीरगांव नगर पालिकाध्यक्ष ओमप्रकाश देवांगन , सुनील कालड़ा , विवेक सारडा , अरविंद अवस्थी , एबेलान के डायरेक्टर अजय दुबे आदि अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलित कर संगीत और सम्मान के इस कार्यक