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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

जाने चले जाते हैं कहाँ..... पार्श्व गायक मुकेश की पुण्य तिथि पर.....

महान पार्श्व गायक मुकेश जी की 35 वीं पुण्य तिथि. लगता ही नहीं कि उन्हें खोये इतने बरस बीत चुके हैं. उनका अंतिम गीत ‘चंचल,शीतल, निर्मल, कोमल, संगीत की देवी स्वर सजनी’ क्या 35 साल पुराना हो चुका है ? सोचो तो बड़ा आश्चर्य होता है. न हाथ छू सके, न दामन ही थाम पाये बड़े करीब से कोई उठ कर चला गया... व्यक्ति जाता है, व्यक्तित्व नहीं जाता. गायक जाता है, गायन नहीं जाता. कलाकार जाता है, कला नहीं जाती. इसीलिये ऐसी हस्तियों के चले जाने के बावजूद उनकी मौजदगी का एहसास हमें होता रहता है.

जग में रह जायेंगे प्यारे तेरे बोल.........जी चाहे जब हमको आवाज दो, हम हैं वहीं –हम थे जहाँ.......... मुकेश जी का जन्म दिल्ली में माथुर परिवार में 22 जुलाई 1923 को हुआ था. उनके पिता श्री जोरावर चंद्र माथुर अभियंता थे. दसवीं तक शिक्षा पाने के बाद पी.डब्लु.डी.दिल्ली में असिस्टेंट सर्वेयर की नौकरी करने वाले मुकेश अपने शालेय दिनों में अपने सहपाठियों के बीच सहगल के गीत सुना कर उन्हें अपने स्वरों से सराबोर किया करते थे किंतु विधाता ने तो उन्हें लाखों करोड़ों के दिलों में बसने के लिये अवतरित किया था. जी हाँ ‘अवतरित’ क्योंकि ऐसी शख्सियत अवतार ही होती हैं. सो विधाता ने वैसी ही परिस्थितियाँ निर्मित कर मुकेशजी को दिल्ली से मुम्बई पहुँचा दिया. 

तत्कालीन अभिनेता मोतीलाल ने मुकेश को अपनी बहन के विवाह समारोह में गीत गाते सुना और उनकी प्रतिभा को तुरंत ही पहचान लिया. मात्र 17 वर्ष की उम्र में मुकेश मोतीलाल के साथ मुम्बई आ गये. मोतीलालजी ने पण्डित जगन्नाथ प्रसाद के पास उनके संगीत सीखने की व्यवस्था भी कर दी. मुकेश के मन में अभिनेता बनने की इच्छा बलवती हो गई थी. उनकी यह इच्छा पूरी भी हुई. 1941 में नलिनी जयवंत के साथ बतौर नायक फिल्म निर्दोष में उन्होंने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुवात की. इस फिल्म में उनके गीत भी रिकार्ड हुये. दुर्भाग्यवश फिल्म फ्लॉप रही. इसके बाद मुकेश ने दु:ख-सुख और आदाब अर्ज फिल्म में भी अभिनय किया. ये फिल्में भी चल नहीं पाई. 

मोतीलाल जी ने मुकेश को संगीतकार अनिल बिस्वास से मिलवाया. अनिल बिस्वास ने उन्हें महबूब खान की फिल्म के लिये ‘साँझ भई बंजारे’ गीत गाने के लिये दिया मगर मुकेश इस गाने को बिस्वास दा के अनुरुप नहीं गा पाये. अनिल बिस्वास ने मजहर खान की फिल्म पहली नज़र के लिये ‘दिल जलता है तो जलने दे, आँसू न बहा फरियाद न कर’ मुकेश जी की आवाज में रिकार्ड कराया. यह गीत मुकेश के लिये मील का पत्थर साबित हुआ. इस गीत की सफलता ने स्वर्णिम भविष्य के सारे द्वार खोल दिये. 1947 में फिल्म अनोखा प्यार के गीत जीवन सपना टूट गया बेहद हिट हुआ. 

‘दिल जलता है तो जलने दे – इस गीत को सहगल साहब सुनकर चकित रह गये थे कि उन्होंने यह गीत कब गाया है. जब उन्हें पता चला कि इसे मुकेश ने गया है तो उन्होंने आशीर्वाद दिया कि मुकेश ही मेरा उत्तराधिकारी होगा. इसी दौरान नौशाद साहब के संगीत निर्देशन में मेला और अंदाज फिल्म में मुकेश जी के गीतों ने देश में धूम मचा दी. फिल्म इंडस्ट्री के दो महान सितारों राज कपूर और मुकेश का पावन संगम रंजीत स्टुडियो में जयंत देसाई की फिल्म बंसरी के सेट पर हुआ. मुकेश वहाँ प्यानो बजाते हुये गा रहे थे. इस मुलाकात ने क्या रंग दिखाया, इसे लिखने की जरूरत ही नहीं है. 

1949 में रिलीज राज साहब की सुपर-हिट बरसात की सफलता में फिल्म के गीतों का अहम रोल था. छोड़ गये बालम हाय अकेला छोड़ गये गीत में मुकेश से सहगल शैली तज कर अपनी मौलिक आवाज में गीत गाया. वैसे मुकेश को मुकेश की आवाज में प्रस्तुत करने के दावे और भी संगीतकारों ने किये हैं. इसी दौर की फिल्मों में आग, आवारा के गीतों ने धूम मचा दी. आवारा की कामयाबी के बाद एक बार मुकेश ने फिर से अभिनय में किस्मत आजमाने की कोशिश की .माशूका और अनुराग में फिर से वे नायक बने मगर एक बार फिर ये फिल्में फ्लॉप रहीं. अब मुकेश ने अभिनय से तौबा कर ली और पूरा ध्यान गायिकी पर केंद्रित कर दिया.

1951 में मुकेश ने फिल्म मल्हार में संगीत भी दिया. बड़े अरमान से रखा है बलम तेरी कसम, कहाँ हो तुम जरा आवाज दो गीत लोगों की जुबाँ पर चढ़ गये. आग , आवारा , बरसात के बाद मुकेश अंत तक राज कपूर की आवाज बने रहे. आह, अनाड़ी, दिल ही तो है , दुल्हा-दुल्हन, संगम ,नजराना, सुनहरे दिन ,बावरे नैन, श्री 420 ,परवरिश , तीसरी कसम , जिस देश में गंगा बहती है, दीवाना , एराउंड दी वर्ल्ड , आशिक, धरम-करम , मेरा नाम जोकर , सत्यम शिवम सुंदरम आदि फिल्मों में मुकेश की आवाज पर्दे पर राज कपूर की आवाज बनी रही. मुकेश को चार बार फिल्म फेयर अवार्ड मिला. ये गीत थे सब कुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी (अनाड़ी -1959) सबसे बड़ा नादान वही है (पहचान-1970) जै बोलो बेईमान की ( बेईमान-1972) और कभी-कभी मेरे दिल में खयाल आता है (कभी-कभी -1976) फिल्म रजनीगंधा के गीत कई बार यूँ ही देखा है के लिये वर्ष 1974 में मुकेश को सर्व श्रेष्ठ गायक का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला. जीवन के अंतिम दिनों में मुकेश ने रामायण को अपनी आवाज में रिकार्ड कराया. 

27 अगस्त 1976 को मात्र 53 वर्ष की आयु में मुकेश इस दुनिया को बिदा कर गये. उनके निधन पर राज कपूर ने कहा था - मेरी आवाज और आत्मा दोनों चली गई.

बड़े शौक से सुन रहा था जमाना हमीं सो गये दास्ताँ कहते- कहते.

टिप्पणियाँ

  1. स्व. मुकेश की पुण्य तिथि पर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए सराहनीय पोस्ट के लिए आपको बधाई .

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  2. स्व. मुकेश की पुण्य तिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि... सराहनीय पोस्ट के लिए आपका आभार...

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  3. हम भाग्यशाली हैं कि हमारे देश में मुकेश सरीखे गायक हुए

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  4. स्व. मुकेश की पुण्य तिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि ।

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