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मार्च, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

लाइनेक्‍स के प्रति आग्रह

पिछले दिनों भिलाई के स्‍वामी श्री स्‍वरूपानंन्द सरस्‍वती महाविद्यालय में लाईनेक्स इंडिपेन्डेंट वर्क स्टेशन विषय पर एक कार्यशाला आयोजित किया गया था जिसमें विषय विशेषज्ञों के द्वारा लाइनेक्सं के अनुप्रयोग संबंधी वक्तव्य दिये गए. प्राचार्य डॉ.(श्रीमती) हंसा शुक्ला ने बताया कि कार्यशाला के आयोजन का मुख्य उद्धेश्य महाविद्यालय के छात्र-छात्राओं को साफ्टवेयर की एक ऐसी तकनीक से अवगत कराना था जिसमें कि वे पूर्णतः स्वतंत्र वातावरण में कार्य कर सकें। कार्यशाला में उपस्थित मुख्य वक्ता क्षितिज सिंघई (निदेशक, इन्फोसाल्यूशन) ने लाईनेक्स तकनीक की बारीकियों तथा लाईनेक्स में काम करने की तरीकों और उपयोग में आने वाली भाषाओं के संबंध में छात्र-छात्राओं को जानकारी दी। उन्‍होंनें छात्र-छात्राओं को लाईनेक्स में कार्य करना भी सिखाया व लाईनेक्स से संबंधित सर्टिफिकेशन कोर्स के महत्व को भी बताया। रेड हैड के सचिन नायक जो कि विषय विशेषज्ञ के रूप में कार्यशाला में उपस्थित थे। उन्होंने लाईनेक्स और विन्डोज के अंतर को छात्र-छात्राओं को समझाया व बतलाया कि कम्‍प्‍यूटर के क्षेत्र में एकाधिकार को समाप्त करने में ला

एन्‍ड्रायड में हिन्‍दी टायपिंग - गूगल इनपुट हिन्‍दी से

खासकर फेसबुक व ट्विटर पर लोग रोमन में हिन्‍दी संदेश लिखते हैं जिसे पढ़ने के लिए दिमाग को काफी मशक्‍कत करनी होती है। इसके समाधान के लिए गूगल बाबा नें एक एप्‍स विकसित किया है जो ऐसे साथियों के लिए बड़े काम की है। गूगल के हिन्दी इनपुट एप्स ( Google app with Hindi Input ) से आपका मोबाईल या टैब हिंदी शब्द टाइप करने के लिए सक्षम बनता है। इस एप्‍स से आपके मोबाईल की बोर्ड से अंग्रेजी अक्षरों में टाईप करने से देवनागरी लिपि प्रस्‍तुत होती है, यह लिप्यांतरण समर्थक है। इसमें आप जैसे ही अंग्रेजी अक्षरों को टाईप करते जाते हैं शब्‍द देवनागरी में बदलते जाते है। यह हिन्‍दी देवनागरी के साथ ही तेलुगु, मलयालम, तमिल, बंगला, उर्दू और मराठी लिप्यंतरण उपकरण प्रदान करता है। जब आप हिन्‍दी में लिखना चाहें तो स्‍पेस बार के बाजू में दिये लैग्‍वेज की को क्लिक करें, अब रोमन टाईप करने से हिन्‍दी टाईप होने लगेगा। जब आप अंग्रेजी में टाईप करना चाहें हों तो स्‍पेस बार में लिखे अंग्रेजी को दबा दे अंग्रेजी टायपिंग चालू हो जावेगा।    यह एप्‍स 2.2 Android या उच्च संस्करण वाले किसी भी Android डिवाइस पर एक डिफ़ॉल्ट

छत्‍तीसगढ़ उच्‍च न्‍यायालय का वेबसाईट अब हिन्‍दी मय

छत्‍तीसगढ़ उच्‍च न्‍यायालय के मुख्‍य न्‍यायाधिपति माननीय श्री न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह जी के पदभार ग्रहण करते ही छत्‍तीसगढ़ के न्‍यायालयीन कार्यो में तेजी से कसावट आई है एवं मुख्‍य न्‍यायाधिपति माननीय श्री न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह जी नें व्‍यापक जन हित में आवश्‍यक न्‍यायिक एवं प्रशासनिक फेरबदल किये हैं। इसी कड़ी में उन्‍होंनें सर्वप्रथम छत्‍तीसगढ़ उच्‍च न्‍यायालय के न्‍याय निर्णयों को आनलाईन करने का महत्‍वपूर्ण कार्य करवाया है। इस वेबसाईट में उन्‍होंनें आरएसएस फीड के द्वारा महत्‍वपूर्ण निर्णय / ए.एफ.आर. एवं प्रशासनिक सूचनायें प्रस्‍तुत करवा कर इसे त्‍वरित व सर्वसुलभ कर दिया है। हिन्‍दी भाषा प्रेमियों के लिए अति प्रशन्‍नता की बात है कि अब उच्‍च न्‍यायालय के वेबसाईट में हिन्‍दी भाषा का भी विकल्‍प जुड़ गया है। वर्षों से उच्‍च न्‍यायालय के इस वेबसाईट का उपयोग मात्र वाद सूची देखने के लिए ही हो पा रहा था किन्‍तु अब यह देश के अन्‍य न्‍यायालयों के बेवसाईटों जैसी उपयोगी हो गई है। आप भी देखें ... उच्‍च न्‍यायालय ‍छत्‍तीसगढ,बिलासपुर

छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य : गरीबा

साथियों, भंडारपुर निवासी श्री नूतन प्रसाद शर्मा द्वारा लिखित व प्रकाशित छत्‍तीसगढ़ी महाकाव्‍य “ गरीबा” का प्रथम पांत “चरोटा पांत” गुरतुर गोठ के सुधी पाठकों के लिए प्रस्‍तुत कर रहा हूं। इसके बाद अन्य पांतों को यहॉं क्रमश: प्रस्‍तुत करूंगा। यह महाकाव्य दस पांतों में विभक्त हैं। जो “चरोटा पांत” से लेकर “राहेर पांत” तक है। यह महाकाव्य कुल 463 पृष्ट का है। आरंभ से लेकर अंत तक “गरीबा महाकाव्य” की लेखन शैली काव्यात्मक है मगर “गरीबा महाकाव्य” के पठन के साथ दृश्य नजर के समक्ष उपस्थित हो जाता है। ऐसा अनुभव होता है कि “गरीबा महाकाव्य“ काव्यात्मक के साथ कथानात्मक भी है। ऐसा लगता है कि लेखक ने एक काव्य की रचना करने के साथ यह भी ध्यान रखा कि कहानी समान चले अर्थात गरीबा महाकाव्य को पढ़ने के साथ - साथ उसकी कहानी भी समक्ष आने लगती है। “गरीबा महाकाव्य” दस पांतों में विभक्त है पर हर पांत कहानी को जोड़ती हुई चली जाती है। "गरीबा महाकाव्य" की इस खासियत को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता कि छत्तीसगढ़ी के लुप्त होते शब्दों को भी बचाने का पूरा - पूरा प्रयास किया गया है। अर्थात “गरीबा महाकाव्य” में छत

काली थी लैला, काला था कमलीवाला -ज्ञानसिंहठाकुर

5 मार्च जनकवि कोदूराम दलित जयंती पर विशेष ..... (नई दुनिया 4 मार्च1968 में प्रकाशित लेख, नई दुनिया से साभार) जिसका कमलीवाला था वह स्वयं भी अपने कमलीवाले की तरह ही काला था तन से, मन से नहीं.....| काव्य-साधना के श्याम रंग थे छत्तीसगढ़ी के वयोवृद्धकवि कोदूराम जी “दलित” | उनके ‘काले की महिमा’ ने तो छत्तीसगढ़ के कोने-कोने में धूम मचा दी थी | ...गोरे गालों पर काला तिल खूब दमकता....उनका यह कटाक्ष जाने कितनी लावण्यमयियों के मुखड़े पर लाज की लाली बिखेर देता था..... नव-जवान झूम उठते थे.....एक समां बँध जाता था उनकी इस कविता से | आज बरबस ही उनकी स्मृति आती है तो स्मृत हो आते हैं उनके पीड़ा भरे वे शब्द, एक स्वप्न की तरह उनका वह झुर्रीदार चेहरा उभर उठता है स्मृति के आकाश पर.....| वे हाथ में थैली लिए बुझे-बुझे से चले आ रहे थे | मेहता निवास (दुर्ग) के निकट ही वे मुझे मिल गये | मैंने कुशल-क्षेम पूछी तो बरबस ही उनकी आँखें द्रवित हो आई....कहने लगे ज्ञान सिंह बहुत कमजोर हो गया हूँ | चंद्रजी व वोरा जी ने मिलकर सिविल सर्जन को दिखाया है...अब अच्छा हो जाऊंगा....| अस्पताल में दवा नहीं है | डॉक्टर लिख देते ह