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जुलाई, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

फ़रिया (Fariya)

डॉक्टर मिस्टर तिरपाठी जब विश्वविद्यालय में पढ़ाते थे तो उनके अनेक देशी विदेशी शोधार्थी छात्र—छात्रा उनसे मिलने, उनका मार्गदर्शन लेने उनके घर आते रहते थे. सुबह सुबह डॉक्टर मिस्टर तिरपाठी संस्कृत मंत्रों के जाप में और डॉक्टर मिसिज़ तिरपाठी रसोईघर में व्यस्त थे, इसी समय में विदेशी छात्राओं का दल डॉक्टर साहब के घर पहुचा. बैठक में कामवाली बाई फर्श पर पोछा लगा रही थी, और छात्रायें सोफे पर बैठे पोरफेसर साहेब के मंत्र सिराने का इंतजार कर रही थी. एक उत्सुक छात्रा नें कामवाली बाई से पूछा 'व्हाट इज दिस!!' काम वाली बाई को कुछ समझ में आया पर वह चुप रही. पोछा के कपड़े की ओर इशारा करके जब विदेशी छात्रा नें बार बार पूछा तो कामवाली बाई नें तार तार हो गए साहेब के कमीज से बने पोछे के कपड़े को दो उंगली में उपर उठा कर दिखाते हुए कहा — 'दिस इज फ़रिया!!' विदेशी छात्रायें कुछ समझती इसके पहले ही डॉक्टर मिसिज तिरपाठी आ गईं, हाय हैलो के बाद समझाया कि इंडिया में इसी तरह पुराने कपड़े को पानी में डुबो कर पर्श पोंछा जाता है. पोरफेसर साहेब के घर से निकल कर विदेशी छात्रायें देर तक 'फड़िया!'

किसानों की जमीन छीनकर उसी से व्यवसाय कर रही सरकार

पिछले दिनों नया रायपुर विकास प्राधिकरण के संचालक मंडल की हुई बैठक के बाद समाचार पत्रों में तथाकथित समाचार प्रकाशित हुए कि सरकार अब नया रायपुर में किसानों से ली जाने वाली भूमि का मुआवजा 75 लाख रूपया हैक्टेययर देगी। इस समाचार से किसानों के प्रति हमदर्दी रखने वाले लोगों को कुछ सुकून मिला।  आत्महत्या करने के लिए विवश किसानों के इस देश में जमीन का तीन गुना मुआवजे का बढ़ना, सचमुच में सुखद है। हमने मामले की पड़ताल करनी चाही तो पता चला कि नया रायपुर विकास प्राधिकरण के पक्ष में पिछले मार्च में कई कई पन्नों के भू अर्जन अधिसूचना विज्ञापन समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए। यह विज्ञापन नया रायपुर विकास प्राधिकरण के योजना क्षेत्र में भू अर्जन के अंतिम किश्त के रूप में प्रकाशित हुई थी। प्राधिकरण नें पहले तो आपसी समझौता से लगभग नब्बे प्रतिशत भूमि हथियाया, फिर कई चरणों में सम्पन्न कानूनी भू अर्जन के बाद लगभग दो तीन प्रतिशत बचत भूमि को अर्जित करने के लिए अधिसूचना प्रकाशित करवाई । इस प्रकार माने तो विकास योजना की लगभग पूरी भूमि कम दरों पर पूर्व में ही अधिग्रहित कर ली गई थी। कुछ बची भूमि जिसकी म

शकुन्तला शर्मा बैंकाक में सम्मानित

14 प्रतिष्ठित पुस्तकों की चर्चित लेखिका शकुन्तला शर्मा जी के संबंध में मुझे जानकारी 'कोसला' के विमोचन के समाचारों से हुई थी. तब से मैं उनसे और उनकी कृतियों से साक्षात्कार चाहता था. गुरतुर गोठ व आरंभ के इस मुहिम के लिए मुझे छत्तीसगढ़ के प्रत्येक उजले पक्षों पर नजर रखनी थी और उन्हें ​किसी भी रूप में इंटरनेट में लाने का प्रयास निरंतर रखना था. इसी कड़ी में उनसे एक कार्यक्रम में मुलाकात हुई.  उनके स्नेहमयी व्यक्तित्व और रचनाधर्मिता से रूबरू हुआ. प्रसिद्ध भाषाविद और साहित्यकार डॉ.विनय कुमार पाठक नें उनके संबंध में लिखा है ' .. शकुन्तला शर्मा संस्कृत, हिन्दी और छत्तीसगढ़ी भाषा तथा साहित्य में समानाधिकार रखने वाली विदुषी कवयित्री हैं .. ' यह बात उनकी कृतियों को पढ़ते हुए स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है. साहित्य के नवचार के प्रति सजग एवं इंटरनेट प्रयोक्ता शकुन्तला शर्मा जी नें मेरे आग्रह पर अपना ब्लॉग (शाकुन्तलम्) बनाया. साहित्यकारों के सोच के अनुसार इंटरनेट तकनीकि के असामान्य आभासी गढ़ों को ध्वस्त करते हुए वे हिन्दी ब्लॉगिंग पर अब भी सक्रिय हैं. उनकी कृतियों एवं ब्लॉग पर आ