विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
लोकसभा नें भूमि अर्जन, पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन विधेयक 2012 पास कर दिया. यह एक स्वागतेय शुरूआत है, 119 वर्ष पुराने कानून का आमूलचूल परिवर्तन आवश्यक था. केन्द्र सरकार नें ड्राफ्ट बिल को प्रस्तुत करते हुए बहुविध प्रचारित किया कि इसमें किसानों के हितों का पूर्ण संरक्षण किया गया है, किन्तु पास हुए बिल में कुछ कमी रह गई है. इस पर विस्तृत चर्चा बिल के राजपत्र में प्रकाशन के बाद ही की जा सकती है. छत्तीसगढ़ में मौजूदा कानून के तहत निचले न्यायालयों में लंबित अर्जन प्रकरणों में बतौर अधिवक्ता मेरे पास लगभग दो सौ एकड़ रकबे के प्रकरण है, यह पूरे प्रदेश में रकबे के अनुपात में सर्वाधिक है. इसलिये मुझे इस बिल में इसके निर्माण के सुगबुगाहट के समय से ही रूचि रही है. इस रूचि के अनुसार तात्कालिक रूप से नये बिल में पास की गई जो बातें उभर कर आ रही है एवं बिल के ड्राफ्ट रूप में जो बदलाव किए गए हैं उन पर कुछ चर्चा करते हैं. यह स्पष्ट है कि भूमि संविधान के समवर्ती सूची में होने के कारण राज्य सरकार का विषय है, राज्य सरकारों को भूमि के संबंध में कानून बनाने की स्वतंत्रता है किन्तु भूमि अधिग्रहण के मामलो