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सितंबर, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

छत्तीसगढ़ी काव्य में अमर कवि कोदूराम ‘दलित’

28 सितम्बर : 46 वीं पुण्य तिथि पर विशेष -विनोद साव (अमर किरण में 28 सितम्बर 1989 को प्रकाशित) साहित्यकार का सबसे अच्छा परिचय उसकी रचना से हो जाता है | साहित्यकार की कृतियाँ उसकी परछाई है | रचनाकार का व्यक्तित्व, चरित्र, स्वभाव और दृष्टिकोण उसकी रचनाओं में प्रतिबिम्बित होता है | छत्तीसगढ़ी संस्कृति और साहित्य के धनी दुर्ग नगर में एक स्मय में ऐसे ही रचनाकार छत्तीसगढ़ी काव्य में अमर कवि कोदूराम ‘दलित’ उदित हुये जिनका परिचय उन्हीं के शब्दों में प्रस्तुत है : “लइका पढ़ई के सुघर, करत हववँ मयँ काम कोदूराम ‘दलित’ हवय , मोर गँवइहा नाम शँउक मु हूँ –ला घलो, हवय कविता गढ़ई के करथवँ काम दुरुग –माँ मयँ लइका पढ़ई के “ दलित जी छरहरे, गोरे रंग के बड़े सुदर्शन व्यक्तित्व के थे | कुर्ता, पायजामा, गाँधी टोपी और हाथ में छतरी उनकी पहचान बन गई थी | हँसमुख और मिलनसार होने के कारण सभी उम्र और वर्ग के लोगों में हिलमिल जाया करते थे | कविता करना उनका प्राकृतिक गुण था | उन्हीं के शब्दों में – “कवि पैदा होकर आता है, होती कवियों की खान नहीं कविता करना आसान नहीं |“ रचना क्षमता प्रकृति प्रदत्त इस गुण क

सोशल मीडिया और हिंदी ब्लॉगिंग : वर्धा में सत्य के प्रयोग

उंघियाते ब्लॉगिंग के बीच इस माह के आरंभ में रमाकांत सिंह जी का फोन आया और उन्होंनें पूछा कि वर्धा चल रहे हैं क्या. मैंनें अनिश्चितता की बात की तब भी उन्होंनें टिकट बनवा लिया, कहा संभव नहीं होगा तो बाद में रद्द करावा लेगें. हमने इसे गंभीरता से नहीं लिया और अपने काम में रमे रहे. इस माह में ब्लॉग व वेब से जुड़े तीन तीन कार्यक्रमों की घोषणा हो चुकी थी और हम अपनी व्यस्तता के कारण किसी भी कार्यक्रम के लिए मन नहीं बना पाए थे. काठमाण्डु में परिकल्पना लोक भूषण सम्मान झोंकना था, भोपाल में अनिल सौमित्र जी के आमत्रण पर बेव मीडिया के वैचारिक दंगल में शामिल होना था और वर्धा के सेमीनार का लाभ उठाना था. इन तीनों में से किसी एक कार्यक्रम में पहुचने की जुगत लगाते रहे किन्तु ऐन वक्त पर न्यायालयीन आवश्यकताओं के कारण काठमाण्डु और भोपाल के कार्यक्रमों को छोड़ना पड़ा. चंडीगढ़ उच्च न्यायालय के लिए निकल जाना पड़ा वापसी का कोई तय नहीं था, मन अधीर होने लगा कि वर्धा भी नहीं जा पायेंगें किन्तु चंडीगढ़ का काम जल्दी ही निपट गया और हम 19 को दुर्ग आ गए. हमने तय किया कि 20 को श्राद्ध पक्ष के आरंभ दिन तर्पण करके वर्धा

सामयिकीः

मुद्दा तेलंगाना का                                                                                                     - विनोद साव आंध्र प्रदेश के क्षेत्र तेलंगाना को एक स्वतंत्र राज्य का दर्जा दिए जाने का प्रस्ताव केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने रख दिया है। आने वाले चार महीनों के भीतर इसे पारित करवाने का समय दिया गया है। वर्तमान आंध्र प्रदेश देश के राज्यों के बीच क्षेत्रफल की दृष्टि से चौथे और जनसंख्या की दृष्टि से पांचवें स्थान पर है। जाहिर है कि यह एक बड़ा राज्य है। इसके पहले वर्ष 2000 में तीन बड़े राज्यों से निकालकर छत्तीसगढ़, झारखंड और उत्तराखंड का गठन किया गया है। उल्लेखनीय कि इन नये राज्यों के गठन के समय कोई विशेष विरोध नहीं हुआ है। इनमें भी छत्तीसगढ़ ने तो बिना एक भी गोली खाये नये राज्य का दर्जा पा लिया था। अब आंध्र प्रदेश में नये राज्य के गठन की बारी है लेकिन आंध्र में तेलंगाना को अलग राज्य बनाने के विरोध में कई प्रदर्शन हो रहे हैं, गोलियां चल रही हैं और सांसदों नेताओं के इस्तीफे दिये जाने का क्रम जारी है। आंध्र जहॉ कांग्रेस की सरकार है वहां केन्द्र की कांग्रेस सरकार की

हमारी अर्थ व्यवस्था में चीनी घुसपैठ

आज हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 278.6 अरब डालर है, जो छह से सात माह के आयात के लिये पर्याप्त है। जबकि 1991 में यह 60 करोड डालर तक गिर गया था, ठीक है किन्तु कुछ नकरात्मक सोचों पर भी एक नजर डालनी होगी। पहला मुद्रा के मोर्चे पर तूफान आने के संकेत, दूसरा सिकुड़ता औद्योगिक उत्पादन, कम होता निवेश, तीसरा मुद्रा स्फीति की लगातार ऊंचीं दर। इन सबका असर मध्यम वर्ग पर विशेष रूप से पड़ रहा है। इस विषम परिस्थिति में सिकुड़ते औद्योगिक उत्पादन का एक प्रमुख कारण भारतीय बाजार में चीनी वस्तुओं की बहुतायात भी है, वह माल जो सस्ते में मिलता है, यही है हमारे बाजारों के द्वारा हमारी अर्थव्यवस्था पर चीनी घुसपैठ। मुझे एक पंक्ति याद आ रही है - ’’ बात निकली है तो दूर तलक जायेगी ....................’’ जी हॉं कुछ पुरानी बातें याद आयेंगी कुछ नये संदर्भो में...। साफ्टवेयर, हार्डवेयर और इलेक्ट्रानिक्स के क्षेत्र में चीन शुरूआती दौरे से ही भारत का प्रतिस्पर्धी रहा है। स्वस्थ प्रतिस्पर्धा प्रगति के लिये आवश्यक भी है किन्तु चिन्ता तब शुरू हुई जब चीन ने हमारे बाजारों में अपने उत्पाद खपाना शुरू किया। आपकों याद दिला