आरंभ Aarambha सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

अक्तूबर, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

स्मरण:

मन्ना-डे नहीं रहे सिने संगीत में शास्त्रीय राग की एक लौ बुझी -विनोदसाव भारतीय सिने संगीत के बहुचर्चित गायकों में से एक मन्ना डे नहीं रहे। आज सबेरे 24 अक्टूबर को उनका बंगलोर में अवसान हुआ। उनका नाम प्रबोध चन्द्र डे था लेकिन वे मन्नाडे के नाम से जाने गए। मन्ना डे के अवसान के साथ ही रफी, मुकेश, किशोर की समृद्ध गायन परंपरा का अंत हुआ। बंगाल की धरती में पले बढ़े जिन तीन गायकों ने हिंदी व बांग्ला फिल्मों में बड़ी ख्याति अर्जित की उनमें तलत महमूद, हेमंत कुमार और मन्ना डे थे। तलत महमूद बांग्ला फिल्मों में तपन कुमार के नाम से गाते थे और लोकप्रिय थे। हिंदी साहित्य के कथाकार कुमार अंबुज ने मन्नाडे पर एक कहानी लिखी है जिसका षीर्शक है ’एक दिनमन्ना-डे’। मन्ना डे का स्वर और उनका गायन अपनी एक विशिष्ठ भंगिमा लिये हुआ था। उनकी आवाज में भी तलत महमूद की तरह का रेशमी अहसास था।वे शास्त्रीय गीतों के बड़े जानकार और गायक थे। कहा जा सकता है कि सुगमसंगीतों से भरे फिल्मी जगतमें ये मन्नाडे ही थे जिन्होंने अपने हजारों सुगमगीतों के बीच बड़ी संख्या में शास्‍त्रीय गीत भी गाये। उनके गाये गीतों में

यात्रा वृत्तांतः

- विनोद साव दुर्ग-भिलाई रहवासियों के लिए कार ड्राइव के लिए सियादेवी एक आदर्श दूरी है। आना जाना मिलाकर डेढ़ सौ किलोमीटर। छह सात घंटे का एक अच्छा पिकनिक प्रोग्राम। सियादेवी का रास्ता बालोद मार्ग पर झलमला से कटता है। दुर्ग से चौव्वन किलोमीटर झलमला और वहॉ से पन्द्रह किलोमीटर सियादेवी। यह बालोद से बीस और रायपुर से धमतरी होकर सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। नये जिलों के निर्माण के बाद अब यह दुर्ग जिले से निकलकर बालोद जिले के क्षेत्र में आ गया है। वैसे भी बालोद क्षेत्र अपनी कृषि भूमि, जंगल, कुछ पहाड़ियॉ, तांदुला व सूखा नदी और लगभग आधे दर्जन बॉंध व कई नहरों से समृद्ध भूमि है। यहॉ मैदानी और वन्य जीवन का सुन्दर सम्मिश्रण है। सवर्ण और आदिवासी जीवन का अच्छा समन्वय है। यहॉ समृद्ध किसान भी हैं और भरे पूरे आदिवासी भी। यह क्षेत्र अपने किसान आंदोलनों के लिए भी जाना जाता है और आदिवासी चेतना के लिए भी। बालोद स्कूल से पढ़कर निकले कई मेधावी छात्र इंजीनियरिंग एवं प्रशासन में बड़ी संख्या में अपनी पहचान बना चुके हैं। एक समय में बालोद नगर पालिका को पुराने दुर्ग जिले की ग्यारह नगर पालिकाओं में सब

सिर्फ एक गांव में गाई जाती है छत्‍तीसगढ़ी में महामाई की आरती ??

छत्तीसगढ़ के प्राय: हर गांव में देवी शक्ति के प्रतीक के रूप में महामाई के लिए एक स्‍थल निश्चित होता है. जहां प्रत्येक नवरात में ज्योति जलाई जाती है एवं जेंवारा बोया जाता है. सभी गांवों में नवरात्रि के समय संध्या आरती होती है. ज्यादातर गांवों में यह आरती हिन्दी की प्रचलित देवी आरती होती है या कहीं कहीं स्थानीय देवी के लिए बनाई गई आरती गाई जाती है. मेरी जानकारी के अनुसार एक गांव को छोड़ कर कहीं अन्‍य मैदानी छत्‍तीसगढ़ के गांव में छत्‍तीसगढ़ी भाषा में महामाई की आरती नहीं गाई जाती. जिस गांव में छत्‍तीसगढ़ी में महामाई की आरती गाई जाती है वह गांव है बेमेतरा जिला के बेरला तहसील के शिवनाथ के किनारे बसा गांव खम्‍हरिया जो खारून और शिवनाथ संगम स्‍थल सोमनाथ के पास स्थित है. इसके दस्‍तावेजी साक्ष्‍य एवं स्‍थापना के लिए यद्यपि मैं योग्‍य नहीं हूं किन्‍तु वयोवृद्ध निवासियों से चर्चा से यह सिद्ध होता है कि यह परम्‍परा बहुत पुरानी है. वाचिक रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी गाए जा रहे इस महामाई की आरती का जो ज्ञात प्रवाह है उसके अनुसार लगभग 500 वर्ष से यह इसी तरह से गाई जा रही है. यह आरती कब से गाई जा रही

वर्धा में आभासी मित्रों से साक्षात्कार

महात्मा गॉंधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा में विगत दिनों आयोजित हिन्दी ब्लॉग संबंधी कार्यशाला से संबंधित अनुभव के पोस्ट प्रतिभागियों के ब्लॉगों में प्रकाशित हो रहे हैं। सभी की अपनी अपनी दृष्टि और अभिव्‍यक्ति का अपना अपना अलग अंदाज होता है, धुरंधर लिख्खाड़ों में डॉ.अरविन्द मिश्र एवं अनूप शुक्ल नें सेमीनार को समग्र रूप से प्रस्तुत कर दिया है अन्य पोस्टों में भी लगभग सभी पहलुओं को प्रस्तुत किया जा चुका है, उन्हीं वाकयों को बार बार लिखने का कोई औचित्य नहीं है, इस कार्यक्रम में जिन ब्‍लॉगर साथियों से हमारी मुलाकात हुई उनके संबंध में कुछ कलम घसीटी मेरे नोट बुक में पोस्‍ट करने से बचे थे जिसे प्रस्‍तुत कर रहा हूँ। सबसे पहले मैं आप लोगों को बताता चलूं कि, मेरे इस कार्यशाला में जाने के पीछे तीन उद्देश्य थे। पहला, मैं महात्मा गॉंधी अंतरर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय को देखना एवं वहॉं के साहित्‍य सृजन के लिए उर्वर वातावरण को महसूस करना चाहता था। दूसरा, इस कार्यशाला में उपस्थित होकर, आभासी मित्रों से मिलना चाहता था क्योंकि विश्वविद्यालय के पिछले ब्लॉगर सम्मेलनों में मैं चाहकर