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जनवरी, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

नया भू अधिग्रहण अधिनियम : सरकार एवं न्यायालय को तत्काल संज्ञान लेना चाहिए

नया भू अधिग्रहण अधिनियम (भूमि अर्जन, पुनर्वास और पुनव्य र्वस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम, 2013   Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Act, 2013 ) के प्रभावी हो जाने के बावजूद छ.ग.शासन के द्वारा पुराने अधिनियम (भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894) के तहत् की जा रही भू अधिग्रहण कार्यवाही उद्योगपतियों एवं नौकरशाहों के गठजोड़ का नायाब नमूना है. भारत गणराज्य के चौंसठवें वर्ष में संसद के द्वारा नया भू अधिग्रहण अधिनियम अधिनियमित कर दिया गया है जिसका प्रकाशन भारत का राजपत्र (असाधारण) में दिनांक 27 सितम्बकर 2013 को किया गया है. नया भू अधिग्रहण अधिनियम के प्रवृत्त होने की तिथि के संबंध में इस नये अधिनियम की धारा 1 (3) में कहा गया है कि ‘यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा, जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे’ इसी तरह पुराने अधिनियम के व्यपगत होने के संबंध में इस नये अधिनियम की धारा 24 में स्पष्टत किया गया है कि जहॉं पुराने भूमि अधिग्रहण अधिनियम के द्वारा जारी कार्यवाही में यदि धारा 11 के अधीन कोई अधिनिर

माइक्रो कविता और दसवाँ रस

क्या आपका दिन काटे नहीं कटता? तो समय बिताने के लिये फल्ली खाने या अंत्याक्षरी खेलने की जरूरत नहीं है। मेरी सलाह मानिये और कवि बन जाइये। टाइम पास का इससे बढ़िया तरीका और कुछ नहीं हो सकता। फिर भी समय बच जाय तो फिकर मत कीजिये। बाकी समय एक अदद् श्रोता ढ़ूँढ़ने में कट जायेगा। क्या कहा आपने? कविता लिखना नहीं आता। कोई बात नहीं, तरीका मैं बताता हूँ आपको। तरीका नहीं, गुरू-मंत्र समझिये इसे आप। आजकल कवि बनने के लिये वियोगी या योगी होने का कोई बंधन नहीं है और न ही पत्नी या प्रेमिका से दुत्कारे जाने की आवश्यकता ही। बस नीचे बताये जा रहे गुरू-मंत्रों पर अमल कीजिये और एक महान् कवि बनने की दिशा में अपने दोनों भारी-भरकम पाँव हल्के मन से, प्रफुल्ल चित्त होकर बढ़ाते चले चलिये। अखबारों में अपनी कविता, मय छाया चित्र देख-देख कर महान् कवियों के स्वप्न लोक में विचरण कीजिये। महामंत्र क्रमांक एक - इस महामंत्र का नाम है, ’हर्रा लगे न फिटकिरी, रंग चढ़े सुनहरी’। इसके अनुसार अखबार का ताजा अंक हाथ लगते ही आप सारे लेखों और संपादकीय पर एक सरसरी निगाह डालिये। प्रासंगिक, सामयिक और ज्वलंत समस्याओं पर छपे लेखों क

यात्रा: सिहावा की गोद में

- विनोद साव सड़क की दोनों ओर शाल के हरे भरे पेड़ थे। यह दिसंबर की आखिरी दोपहरी थी पर नये साल के उल्लास में थी। सड़क के किनारे खड़े पेड़ों को मानों प्रतीक्षा थी उन राहगीरों की जो नव वर्ष में प्रवेश उसके सामने बिछी सड़क से करें। सड़क बिल्कुल सूनी थी इसलिए साठ किलोमीटर की दूरी साठ मिनट में ही पूरी हो गई थी। जंगल की सूनी और चमकदार सड़क पर ड्रायविंग प्लेरजर का यह सुनहरा मौका था जिसे हाथ से जाने नहीं देना था ‘‘... याहू... चाहे कोई मुझे जंगली कहे...’’ कार के भीतर शम्मीकपूर थे और हमारे भीतर रायल स्टेग। धमतरी से नगरी की यह दूरी तय हो गई थी। बस स्टेंड पर नरेन्‍द्र प्रजापति ने पहचान लिया था जिसने सिहावा-नगरी घुमा देने को आश्वस्त किया था। अभी कुछ दिनों पहले ही उसने एक पाठक के रुप में मोबाइल किया था कि ‘सर ! मैंने आपका यात्रा-वृतांत ‘केसरीवाड़ा’ पढ़ा ... कलम का जादू है सर आपके पास ... आपके साथ साथ मैं भी घूमता रहा।’’ पाठक नरेन्र् अब हमारे मार्ग दर्शक हो गए थे। सिहावा नगरी में वे आगे आगे थे और हम उनके पीछे पीछे। ‘नगरी में आप रहते कहां हैं?’ ‘लाइन पारा में।’ उसने विनोदी स्वर में कहा था। वह नगरी का सच्चा

मास्टर चोखे लाल भिड़ाऊ चांद पर Master Chokhelal

चांद देश की संसद की आपात बैठक चल रही थी। प्रधान मंत्री ही नहीं, सबके माथे पर बल पड़ा हुआ था। वे गहरी चिंता में जान पड़ते थे, मानो राष्ट्रीय शोक का समय हो। हो भी क्यों नहीं। पृथ्वी नामक ग्रह के इकलौते सुपर पावर देश की सरकार की ओर से आज एक सुझाव-पत्र आया है। सुझाव-पत्र क्या, खुल्लमखुल्ला चेतावनी है, फरमान है। पत्र में स्पष्ट कहा गया है कि यदि चांद सरकार ने अपने देश में साक्षरता का स्तर नहीं बढ़ाया तो उन्हें दी जा रही सारी आर्थिक और सैन्य सहायता बंद कर दी जायेगी। इतना ही नहीं युनाइटेड नेशन्स द्वारा आर्थिक नाकेबंदी की भी घोषणा की जा सकती है। चांद देश की सरकार का चिंतित होना स्वाभाविक था। उनका मानना था कि उनके देश में साक्षरता की दर शत-प्रतिशत है। उन्हें अपनी साक्षरता पर बड़ा घमंड था। इसी के दम पर वह सुपर पावर की बराबरी करना चाहता था। सुपर पावर को यह टुच्चापन कब भाने वाला था। भुगतो अब। उन्होंने जो कह दिया कि सालों, तुम सब निरक्षर हो, तो हो। कह दिया सो कह दिया। तुम सब निरक्षर ही हो। सुपर पावर की बादशाहत को चुनौती देने वाला निरक्षर और मूर्ख नहीं होगा तो और क्या होगा भला। बिना आइना देखे

बिस्मार्क

ओटो एडुअर्ड लिओपोल्ड बिस्मार्क (बिस्मार्क का जन्म शून हौसेन में 1 अप्रैल, 1815 तथा निधन 30 जुलाई, 1898 को हुआ था), जर्मन साम्राज्य का प्रथम चांसलर तथा तत्कालीन यूरोप का प्रभावी राजनेता था। वह ’ओटो फॉन बिस्मार्क’ के नाम से अधिक प्रसिद्ध है। उसने अनेक जर्मनभाषी राज्यों का एकीकरण करके शक्तिशाली जर्मन साम्राज्य स्थापित किया। वह (1862 ई. में)द्वितीय जर्मन साम्राज्य का प्रथम चांसलर बना। वह ’रीअलपालिटिक’ की नीति के लिये प्रसिद्ध है जिसके कारण उसे ’लौह चांसलर’ के उपनाम से जाना जाता है। वह लगभग 25 वर्षों तक जर्मनी का सर्वेसर्वा रहा। बिस्मार्क एक महान राष्ट्रनिर्माता था, जिसने अपने राष्ट्र की जरूरतों को समझा और उन्हें पूरा करने की भरपूर कोशिश की। जर्मन राष्ट्र उसके प्रति हमेशा कृतज्ञ रहेगा। बिस्मार्क का जन्म शून हौसेन में 1 अप्रैल, 1815 को हुआ। गांटिंजेन तथा बर्लिन में कानून का अध्ययन किया। बाद में कुछ समय के लिए नागरिक तथा सैनिक सेवा में नियुक्त हुआ। 1847 ई. में वह प्रशा की विधान सभा का सदस्य बना। 1848-49 की क्रांति के समय उसने राजा के ’दिव्य अधिकार’ का जोरों से समर्थन किया। सन् 1851

सोमवार, 7 अक्तूबर 2013 भारत की राजनीति

भारत की राजनीति, राजनीतिक वातावरण और राजनीतिज्ञों के शुद्धिकरण की दिशा में अभी-अभी दो महत्वपूर्ण बातें हुई है। पहला - भारत निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों को अस्वीकृत करने का मतदाताओं को अधिकार देने की दिशा में पहल। दूसरा - दागी मंत्रियों, सांसदों और विधायकों की सदस्यता समाप्त करने से संबंधित भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी आदेश को विफल करने के लिए सरकार द्वारा लाये गये अध्यादेश के विरूद्ध जन आक्रोश का राहुल गांधी द्वारा समर्थन करना और उसे फाड़कर नाली में बहाने की बात कहना। इससे बौखलाकर केन्द्र सरकार द्वारा इस अध्यादेश को वापस ले लिया गया है। दागी मंत्रियों, सांसदों और विधायकों की सदस्यता समाप्त करने से संबंधित भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आदेश जारी होने के बाद अनेक मंत्रियों और राजनेताओं और राजनीतिक दल के प्रवक्ताओं ने अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएं दी है। किसी ने कहा कि हम जनप्रतिनिधि हैं, पुलिस का कोई भी सिपाही हमें कैसे गिरफ्तार कर सकता है? इस तरह का वक्तव्य देने वालों से पूछा जाय, क्या ये अपने लिए विशेष पुलिस बल चाहते हैं, जिसे ये अपने इशारों पर नचा सकें?