आरंभ Aarambha सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

नवंबर, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

अब तुलसी क़ा होइहै, नर क़े मनसबदार

-छत्तीसगढ़ शासन द्वारा 12 से 14 दिसम्बर को पुरखौती मुक्तांगन में प्रस्तावित 'रायपुर साहित्य महोत्सव' पर शेष- राज्य बन जाने के बाद छत्तीसगढ़ का क्रेज हिन्दी पट्टी में भी बढ़ा है. इस बात को साबित करने के लिए एक वाकया काफी है. हुआ यूं कि एक बार, देश के सर्वोच्च आलोचक डॉ.नामवर सिंह राजकीय मंच से कहते हैं कि मैं ही आपका माधव राव सप्रे हूं. रियाया तालियॉं बजाती है, क्रांतिकारी हाथ मलते हैं, मनसबदारों के जी में जी आता है, कुल मिला कर बात यह कि, कार्यक्रम सफल होता है. आपने कभी सोंचा कि यह परकाया प्रवेश का चमत्कार कब होता है, तब, जब एक मुहफट आलोचक राजकीय अतिथि बनकर परम तृप्त होता है. संतों! समय ऐसे कई उच्च साहित्यकारों के परकाया प्रवेश का समय आ रहा है. हॉं भाई, रायपुर साहित्य महोत्सव होने जा रहा है. इस पर राज्य में सुगबुगाहट है, खुसुरपुसूर हो रही है और साहित्य के कुछ संत छाती पीट रहे हैं.  हमने भी रचनाकारों के प्रति राजकीय आस्था अनास्था के क्रम में कल ही कुम्भनदास को कोट किया था. लिख डालने के बाद याद आया कि, कुम्भनदास के समय में तुलसीदास नाम से भी एक कवि हुए थे. इधर अकबर के बुलाव

संतन को कहाँ सीकरी सों काम ?

-छत्तीसगढ़ शासन द्वारा 12 से 14 दिसम्बर को पुरखौती मुक्तांगन में प्रस्तावित 'रायपुर साहित्य महोत्सव' पर शेष- अब न कुम्भनदास रहे न अकबर बादशाह न फतेहपुर सीकरी। अब के कुम्भनदासों को हर पल अगोरा रहता है कि कब सीकरी से बुलावा आए और वे दौड़ पड़े। बिना अपने पनही के टूटने या घिसने की परवाह किए। इसमें शर्त बस इत्ती सी है कि, सीकरी तक आने जाने के लिए पुष्पक और असमान्य सम्मानजनक मानदेय। फ़ोकट में तो कोई भिस्ती भी न जाय। अब रही बात अब के रियाया और दरबारियों की, तो वे भी तभी इन कुम्भंदासों के आह में ताली बजाने आयेंगे जब कोई चतुर सेनापति बौद्धिक रणनीति अपनाएगा। मौजूदा हालत में कुम्भंदासों की टीम और रियाया दोनों, सीकरी के आयोजन के प्रति उत्सुक हैं। सीकरी के चाहरदीवारी में रहने वाले बौद्धिक जो रियाया और दरबारी की परिभाषा से अपने आप को, परे समझते हैं उनके लिये ये समय मंथन का है। सरकारी है तो क्या ये असरकारी होगा? असरकारी होता तो क्या प्रभावकारी होगा? इन प्रश्नों की गठरी बांधने के बजाय, इस सरकारी साहित्यिक आयोजन को हम फैंटेसी मान लें। भक्तजनों! साहित्य की दुनिया में आयोजनों का बड़ा क्रेज रहा

सरगुजिहा बोली और संस्कृति के पर्याय : डॉ.सुधीर पाठक

छत्तीसगढ़ के दो उपेक्षित क्षेत्रो में एक बस्तर की संस्कृति पर, अंग्रेजी अध्येताओं व हीरालाल शुक्ल से लेकर राजीव रंजन प्रसाद जैसे लेखकोँ नें प्रकाश डाला है किंतु छत्तीसगढ़ का सरगुजा क्षेत्र हमेशा से उपेक्षित रहा है. सरगुजा क्षेत्र की संस्कृति के संबंध मे अंग्रेज अध्येताओं नें भी विश्वसनीय जानकारी सामने नही लाई है. अंग्रेज अध्येताओं के अध्यन जमीनी सत्यता से कोसों दूर हैं.  सरगुजा क्षेत्र की लोक कला एवं लोक गीतों पर विभिन्न शोध  कार्य हुए हैं. भाषाविज्ञान की दृष्टि से सरगुजिहा बोली पर शोधात्मक कार्य लगभग 40 वर्ष पहले डॉ.कांति कुमार जैन नें किया था. उसके बाद डॉ. साधना जैन नें उस शोध की कड़ी को विस्तार दिया. इसके उपरांत लम्बे समय तक सरगुजिहा बोली पर अकादमिक शोध कार्य नहीं हुए. लम्बे अंतराल के बाद डॉ. सुधीर पाठक नें इस पर कार्य किया. उनके शोध का विषय था, सरगुजिया बोली व छत्तीसगढी भाषा के व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन. इस शोध नें डॉ.कांति कुमार जैन एवं डॉ.साधना जैन के भाषावैज्ञानिक शोध में नये अध्याय जोड़े जो छत्तीसगढ़ी भाषा के विकास में एक मील का पत्थर बना. हालांकि यह शोध ग्रंथ विश्वविद्यालय

एक मोबाईल नम्बर से चल रहे व्हाट्स एप्प को किसी दूसरे मोबाईल फोन से कैसे चलावें

मित्रों हममे से अधिकतम लोग दो मोबाईल नम्बर का प्रयोग करते हैं. एक का प्रयोग हम बातें करने के लिए करते हैं जो बहुत दिनों से हमारे पास है एवं जिसका नम्बर हमारे परिचितों को ज्ञात है.. और दूसरे का प्रयोग मोबाइल में इंटरनेट चलाने के लिए रखते हैं, इसे हम टेरिफ रेट के अनुसार समय समय पर बदलते रहते हैं. हमसे जुड़े लोगों को हमारा जो नम्बर पता है वे उसी में व्हाट्स एप्प की खोज पहले करते हैं इसलिए व्यवहारिक रूप में उसी नम्बर पर व्हाट्स एप्प चलाना चाहिए. यदि हम इन दोनों नम्बरों को दो सिम वाले मोबाइल फोन में उपयोग करते हैं तो उन दोनों में से किसी भी एक नम्बर पर व्हाट्स एप्प चला सकते हैं. उस नम्बर पर भी जिसमें इंटरनेट सुविधा ना हो. दो सिम वाले मोबाईल सेटों में ऐसा करने से मोबाईल की बैटरी बहुत जल्दी खत्म हो जाती है. बैटरी की समस्या का निदान पावर बैंक है किन्तु उसे ढोना अच्छा नहीं लगता. इससे अच्छा दो सिम वाले मोबाईल सेट में भी सिंगल सिम उपयोग करें, यानी दो फोन सेट प्रयोग करें.  अब यदि आपके सार्वजनिक नम्बर में इंटरनेट की सुविधा ना हो और व्हाट्स एप्प भी आप उसी नम्बर पर चलाना चाहते हैं

ब्‍लॉगर्स के लिए आवश्‍यक सूचना : साहित्यिक पत्रिका हंस की पुरानी वेबसाईट लिंक तत्‍काल बदल लें

आज सुबह अरूण कुमार निगम जी का फोन आया कि, आपके छत्‍तीसगढ़ ब्‍लॉगर्स चौपाल में कुछ गड़बड है. तो मैं इस बात को बहुत ही सामान्‍य लेते हुए कहा कि देख लेता हूं. किन्‍तु अरूण भईया नें कहा कि समस्‍या गंभीर किस्‍म की है, कोशिस करें कि जल्‍दी उसका हल करें.. तो मैं चकराया, कारण पूछा तो उन्‍होंनें बताया कि, मेरे ब्‍लॉग एग्रीगेटर छत्‍तीसगढ़ ब्‍लॉगर्स चौपाल ब्‍लॉग में  हिंदी की सबसे प्रतिष्ठित  'हंस' पत्रिका का जो लिंक लगा है उसे क्लिक करने पर पोर्न साईट खुल रहा है. बात सचमुच गंभीर थी, हमारे कई पाठक जिन्‍हें आनलाईन साहित्यिक पत्रिका पढ़ना होता है वे मेरे इस ब्‍लॉग से इन लिंकों के सहारे वे, उन आनलाईन पत्रिकाओं में पहुचते थे. किन्‍तु हमारे सहित हजारों लोगों नें हंस पत्रिका की यही लिंक अपने ब्‍लॉग या वेबसाईटों में लगा रखी है इस कारण विश्‍वास नहीं हो रहा था. जब उस लिंक को क्लिक किया तो सचमुच में थाई भाषा की कोई पोर्न वेबसाईट इस लिंक से खुल रही थी. लिंक बिना रिडायरेक्‍ट हुए उसी डोमेन नाम से खुल रहा था. यह स्‍पष्‍ट है कि 'हंस' के इस पुराने वेब साईट के डोमेन की अवधि समाप्‍त

Android मोबाईल में हिन्दी टायपिंग

हमने कुछ वर्ष पहले विन्डोज एक्पी में हिन्दी टूलकिट के प्रयोग के संबंध में एक पोस्ट इस ब्लॉग में डाली है जिसके प्रतिदिन के क्लिक से यह ज्ञात होता है कि अब भी लोग कम्प्यूटर व मोबाईल जैसे साधनों में हिन्दी का प्रयोग नहीं कर पाते। इसे देखते हुए हमने Android मोबाईल में हिन्दी टायपिंग कैसे की जा सकती है इस पर जानकारी देना चाहते हैं। मित्रों इस विषय के संबंध में इंटरनेट में ढ़ेरों पोस्ट और ट्यूटोरियल्स हैं। इसके बावजूद अभी तक हमारे बहुत से मित्र इसका प्रयोग नहीं कर पा रहे हैं। लीजिए प्रस्तुत है क्रमिक चित्रमय जानकारी — अपने मोबाईल से गूगल प्ले स्टोर में जायें. बायनाकुलर सर्च टच कर Google Hindi Input लिखें. सर्च से प्राप्त Google हिंदी इनपुट में आयें. इंस्टाल करें. प्रक्रिया पूर्ण होने पर गूगल एप्स से बाहर आ जायें. मोबाइल के सेटिंग में जायें - भाषा और इनपुट खोलें, “कीबोर्ड और इनपुट विधियां” अनुभाग के अंतर्गत, Google हिन्दी इनपुट को चेक कर लें. आपका हिन्दी की बोर्ड इंस्टाल हो गया. इसके सहारे आप अंग्रेजी की को पुश कर देवनागरी हिन्दी शब्द टाईप कर सकते हैं या फिर हिन्दी के अक्षरों

आंचलिक उपन्यास और डॉ.नामवर को न जानने का संतोष

फणिश्वर नाथ रेणु द्वारा 1954 में लिखे गए उपन्यास ' मैला आँचल ' को आंचलिक उपन्यास माना गया है। अन्य आंचलिक उपन्यासों में नागार्जुन रचित मिथिला अंचल पर 'रतिनाथ की चाची', बरगद के पेड़ पर 'बाबा बटेश्वर नाथ', मछुवारो के कस्बे पर 'वरुण के बेटे' और तमका कोइली गाँव पर आधारित 'दुखमोचन' को माना जाता हैं। रेणु के अन्य आंचलिक उपन्यासों में 'परती परिकथा' संयुक्त परिवार की कहानी, 'जुलुस' विभाजन के शरणार्थी लोगों की कथा और 'कितने चौराहे' अन्धविश्वास और नारी की स्थिति पर आधारित उपन्यास हैं। अन्य रचनाकारों में रांगेय राघव का 'काका' मथुरा के पुजारियों के सम्बन्ध में, उदय शंकर भट्ट द्वारा लिखित मुंबई महानगर के कस्बे वरसोवा का चित्रण करता उपन्यास 'सागर लहरें और मनुष्य' आदि हैं। आंचलिक उपन्यास इन्हें क्यों कहा गया और आंचलिक उपन्यास की कसौटी क्या है यह जानने के लिए खुदाई शुरू करने पर पता चलाता है कि, रेणु ने स्वयं 'मैला आँचल' की भूमिका में लिखा “यह है मैला आंचल, एक आंचलिक उपन्यास। कथांचल है पूर्णिया। पूर्णिय

थूंक हलक में अटक गई है ..

सरकारें, अपराध करने या अपराध को प्रश्रय देने के लिए हमारे द्वारा ही चुनी जाती हैं। लोकतंत्र के सिक्का उछाल पर मोदी का पट कभी कभार आता हैं। छत्तीसगढ़ में हुए नसबंदी कांड में अब तक 10 महिलाओं की मौत हो चुकी है। जतायें या ना बतायें किन्तु यह सत्य है कि रमन सरकार चित है। राजीतिक ड्रामेबाजी चल रही है और बेतुके बयान समाचारों में चर्चित हो रहे हैं। सोशल नेटवर्किंग साईटों में भी इस अपराध पर सरकार की जमकर धुनाई हो रही है। अब तक जो भाजपा के कार्यों के समर्थन में मंगलाचरण पढ़ रहे थे वे भी कीलक पढ़ रहे हैं। जनता के पास आह! करने के सिवा कुछ भी नहीं है। सरकार या सरकार के नुमाइंदों का तो मुह सूख गया है, थूंक हलक में अटक गई है 'आह!' कहना भी अब मुश्किल है। ऐसे समय में फेसबुक में सक्रिय देवेन्द्र दुबे कहते हैं 'मुझ जैसे मोदी समर्थक को आज ये देखकर दुःख हो रहा है कि- छ.ग. में बीजेपी ठीक आज उसी भूमिका में है जिस प्रकार कांग्रेस यूपीए 2 में थी... जमीनी हकीकत से कोसों दूर.... जनता से जुड़ाव ख़तम.... चापलूसों और अटपटे बयानबाजों की अधिकता... गली गली अवैध शराब की बिक्री... 10 क्विंटल चावल की खरीदी..

रविन्द्र गिन्नौरे : सहज सरल व्यक्तित्व

पिछले दिनो मेरी मुलाकात छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार रविन्द्र गिन्नौरे जी से हुई, मैं उनसे कभी मिला नहीं था। रविंद्र गिन्नोरे जी के नाम से मेरा आरंभिक परिचय दैनिक भास्कर के परिशिष्ट सबरंग के साहित्य संपादक के रूप में था। बाद में उनका नामोल्लेख साहित्यिक और पत्रकारिता मंचों में ससम्मान होते पढ़ते सुनते रहा हूॅं। मेरी सर्वोत्तम जानकारी के अनुसार रविंद्र गिन्नौरी जी छत्तीसगढ़ के एसे वरिष्ठ पत्रकार हैं जिंहोने छत्तीसगढ़ के बहुत सारे समाचार पत्रों मे बतौर संपादक कार्य किया है। छत्तीसगढ़ के सन्दर्भ लेखन में उनका बड़ा योगदान है और उनकी किताबें छत्तीसगढ़ को असल रूप में प्रतिबिंबित करती हैं। लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्र में उनकी ग्लेमराइज्ड छवि मेरे जेहन में बसी थी। भाटापारा में जब सहज और बेहद सरल रविन्द्र गन्नौरे जी से मुलाकात हुई तो एकबारगी मुझे विश्वास नहीं हुआ। जब उन्होंने आत्मीयता से मुझे स्नेह दिया और अपने घर चलने का निमंत्रण दिया तो समय की कमी के बावजूद मैं उनके साथ उनके साथ हो लिया। उनके साथ बात करते हुए उनके संबंध में जो कुछ मैं जान सका वह उनके व्यक्तित्व का एक छोटा सा पहलू है, फिर भी

रपट: जमुना प्रसाद कसार स्मृति व्याख्यान एवं पुस्तक विमोचन

दुर्ग के वरिष्ठ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं यशश्वी साहित्यकार जमुना प्रसाद कसार एक चिंतक और मानस मर्मज्ञ विचारक थे। उन्होंनें अपने साहित्य में अपने आस पास के परिवेश को लिखा। राम काव्य के उन पहलुओं और पात्रों के संबंध में लिखा, जिसके संबंध में हमें पता तो था, किन्तु जिस तरह से उन्होंनें उनकी नई व्याख्या की उससे उन चरित्रों की गहराईयों से हमारा साक्षात्कार हुआ। किसी रचनाकार के संपूर्ण रचना प्रक्रिया का मूल्यांयकन करना है तो यह देखा जाना चाहिए कि उसने क्याा कहा है। किन्तु एक चिंतक और विचारक की रचनाओं का मूल्यांकन करना है तो यह देखा जाना चाहिए कि, उसने उसे कैसे कहा है। कैसे कहा है इसे जानने के लिए आपको उसे गहराई से पढ़ना होता है। कसार जी की रचनाओं को आप जितनी बार पढ़ते हैं उसमें से नित नये अर्थ का सृजन होता है। कसार जी की पुण्य तिथि 30 अक्टूाबर को दुर्ग में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। प्रस्तुत है उसकी रिपोर्टिंग -  दुर्ग जिला हिंदी साहित्य समिति के द्वारा आयोजित वरिष्ठ साहित्यकार एवम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जमुना प्रसाद कसार जी की पुण्य तिथि पर स्मृति व्याख्यान एवं प