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मई, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

’लोक साहित्य म लोक प्रतिरोध के स्वर’ बर रचना आमंत्रित हे

साकेत साहित्य परिषद् सुरगी ह पीछू पंदरह बरस ले सरलग अपन सालाना कार्यक्रम म कोनों न कोनों महत्वपूर्ण विषय ल ले के विचार गोष्ठी के आयोजन करत आवत हे। निर्धारित विषय ऊपर केन्द्रित स्मारिका के प्रकाशन घला करे जाथे। विषय विशेषज्ञ के रूप म आमंत्रित विद्वान मन गोष्ठी म विचार मंथन करथें। इही सिलसिला म 23 फरवरी 2014 में गंडई पंडरिया म छत्तीसगढ़ी हाना ल ले के विचार गोष्ठी के आयोजन करे गे रिहिस। गोष्ठी म डॉ.विनय पाठक, डॉ.गोरेलाल चंदेल, डॉ.जीवन यदु, डॉ.पीसी लाल यादव, डॉ.दादूलाल जोशी जइसे विद्वान मन के अनमोल विचार सुने बर मिलिस। गोष्ठी अउ ये मौका म प्रकाशित स्मारिका के सब झन प्रशंसा करिन। आगामी गोष्ठी 22 फरवरी 2015 म प्रस्तावित हे (तिथि म बदलाव संभव हे)। परिचर्चा के विषय होही - ’लोक साहित्य म लोक प्रतिरोध के स्वर’। छत्तीसगढ़ ह लोकसाहित्य के मामला म समृद्ध हे। विभिन्न प्रकार के लोकगीत, लोककथा, लोकगाथा, लोक परंपरा म प्रचलित प्रतीक चिह्न अउ हाना; जम्मो ह लोकसाहित्य म समाहित हे। आप सबो झन जानथव कि साहित्य ह अभिव्यक्ति के माध्यम आय। हिरदे के प्रेम-विषाद्, हर्ष-उल्लास, सुख-दुख, के अभिव्यक्ति ल तो हम साहित्य

आयोजन : गंडई पंडरिया में साकेत साहित्य परिषद् सुरगी का पंद्रहवाँ सम्मान समारोह एवं वैचारिक संगोष्ठी सम्पन्न

हाना न केवल छत्तीसगढी भाषा की प्राण है अपितु यह इस भाषा का स्वभाव और श्रृँगार भी है :  कुबेर 23 फरवरी 2014 को गंडई पंडरिया में साकेत साहित्य परिषद् सुरगी का पंद्रहवाँ सम्मान समारोह एवं वैचारिक संगोष्ठी सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रगतिशील विचारधारा के सुप्रसिद्ध समालोचक-साहित्यकार डॉ. गोरेलाल चंदेल (खैरागढ़) ने की। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध भाषाविद्, साहित्यकार व संपादक डॉ. विनय कुमार पाठक (बिलासपुर) एवं विशिष्ट अतिथि डॉ. जीवन यदु, डॉ. दादूलाल जोशी, डॉ. पीसीलाल यादव, डॉ माघीलाल यादव, आ. सरोज द्विवेदी, श्री हीरालाल अग्रवाल तथा डॉ. सन्तराम देशमुख थे। 'छत्तीसगढ़ी जनजीवन पर हाना का प्रभाव '  विषय पर केन्द्रित संगोष्ठी के प्रारंभ में आधार वक्तव्य देते हुए परिषद् के संरक्षक कथाकार कुबेर ने कहा कि छत्तीसगढ़ी भाषा में मुहावरों, कहावतों और लोकोक्तियों को  ' हाना '  कहा जाता है। हाना न केवल छत्तीसगढी भाषा की प्राण है अपितु यह इस भाषा का स्वभाव और श्रृँगार भी है। आम बोलचाल में छत्तीसगढ़ियों का कोई भी वाक्य हाना के बिना पूर्ण नहीं होता। कभी-कभी तो पूरी बात

एक ठो अउर राजधानी नामा: बौद्धिकता का पैमाना

हमारे पिछले फेसबुक स्टेट्स ‘ पवित्र उंगलिंयॉं ‘ में  कमेंटियाते हुए प्रो.अली सैयद नें हमारी पर्यवेक्षणीयता की सराहना की थी. हम भी सोंचें कि ऐसा कैसे हुआ, व्यावसायिक कार्य हेतु दिल्ली, ट्रेन से आना जाना तो लगा रहता है पर ऐसी पर्यवेक्षणीयता हर बार नहीं होती. बात दरअसल यह थी कि मोबाइल चोरी चला गया था, ना कउनो फेसबुक, ना ब्लॉग पोस्ट, ना मेल सेल, ना एसएमएस, ना गोठ बात. तो कान आंख खुले थे जब किटिर पिटिर करने को मोबाईल ना हो तो, खाली मगज चलबे करी. त हुआ का कि, हमारे सामने के सीट म एक नउजवान साहेब बइठे रहिन. टीटी टिकस पूछे त, बताईन हम रेलवे के साहब हूं. हम देख रहे थे, बिल्कुल साहेब जइसे दिख भी रहे थे. हमने सोंचा भले साहब की रूचि हम पर ना हो फिर भी समें काटे खातिर उनसे बात शुरू की जाए. बाते म पता चली कि साहेब भारतीय रेलवे अभियांत्रिकी सेवा के अधिकारी हैं, झांसी में पदस्थ हैं, नाम है अहमद, लखनउ के हैं.  अहमद साहेब के रौब दाब देख के हमहू बताए दिए के बंगलोर में हमारे भी मित्र है, रेलवे अभियांत्रिकी सेवा के साहब हैं. अहमद साहब हमारा मन रखने के लिए पूछे के, ‘का नाम है, आपके मित्र का.

अशोक सिंघई एवं विद्यादेवी साहू को पतिराम साव सम्मान

विगत ग्यारह वर्षों से दुर्ग में प्रतिष्ठित ‘समाजरत्न पतिराम साव सम्मान’ साहित्य, शिक्षा और समाजसेवा के क्षेत्र में कार्य करने वाले विशिष्ट जनों को दिया जाता है। इस वर्ष यह अलंकरण साहित्य के लिए भिलाई के प्रसिद्ध कवि एवं समीक्षक अशोक सिंघई को और समाजसेवा के लिए रायपुर की सामाजिक कार्यकर्ता विद्यादेवी साहू को दिया गया। अतिथियों ने शाल, श्रीफल और अभिनंदन पत्र भेंटकर इन विशिष्ट जनों का सम्मान किया। इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि रविशंकर विश्वfद्यालय, रायपुर के कुलपति डॉ.शिवकुमार पाण्डेय ने कहा कि ‘पतिराम साव की समाजसेवा कोई जातिगत समाज सेवा नहीं थी, उन्होंने अपने समय में समाज के विभिन्न घटकों को जोड़ने और हमेशा उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने का कार्य किया था। समाजसेवा, साहित्य और शिक्षा के क्षेत्रों में वे जहां भी सक्रिय रहे समाज के सभी लोगों को एक साथ लेकर चले। उनका यह प्रयास हमारे आज के समय की भी एक बड़ी जरुरत है।’ समारोह की अध्यक्षता करते हुए अशोका इंजीनियfरंग कालेज, राजनांदगांव के चेयरमैन सचिन fसंह बघेल ने अपने आत्मीय वक्तव्य में कहा कि ‘यह मेरा सौभाग्य रहा कि पतिराम सावजी क