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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

ठीक पकड़े हैं, शौंचालय बनाना सस्ते का सौदा है

आप बिलकुल ठीक पकड़े हैं आप शौचालय बनाने की सोच रहे हैं या शौचालय में एसी लगाने की सोच रहे हैं जिसके चलते शौचालय महंगा बनेगा। शौचालय महंगा होता ही नहीं है। गांवों में तो शौचालय बाहर जाने की परंपरा है। गांवों में कहा जाता है - नदी नहाए पूरा पाए , तालाब नहाए आधा। कुआंं नहाए कुछ न पाए, घर नहाए ब्याधा।। कहने का सीधा मतलब है कि नदी नहाने से पूरा पुण्य मिलता है जबकि तालाब नहाने से आधा और कुंआ नहाने से कुछ भी पुण्य नहीं मिलता है । वहीं घर में नहाने वाले बीमार व्यक्ति होते हैं। नहाने के पूर्व शौच जाना और फिर शुद्ध होना गांंव की परंपरा है। इस परंपरा में सुबह की सैर नदी की धारा में कटि स्नान शामिल है। यानी पूरी तरह वैज्ञानिक सम्पूर्ण स्नान। अगर ऊपर के दोहे को ध्यान से देखें तो उसके साथ गांव के शांत जीवन और पर्याप्त समय की बात भी छुपी हुई है जिसके पास जितना समय होता है उस हिसाब से वह नहाने और शौच के लिए नदी या तालाब का विकल्प चुनता है। लेकिन अब पहले के से गांव नहीं रहे । किसानों की जोत छोटी हो गई है उन्हें अपनी जीविकोपार्जन के लिए खेती के अलावा भी अन्य काम करने पड़ते हैं इसलिए अब ग

बाबा नागार्जुन याद आये कई दिनों के बाद

1952 में अकाल और उसके बाद नागार्जुन नें 'कई दिनों के बाद' लिखा। हमने भी कई कई दिनों के अंतराल में इसे पढ़ा, नाट्यशालाओं में रेंकियाते कलाकारों से बार-बार सुना। गरीबी-भुखमरी और पता नहीं क्या-क्या ..मरी से परिपूर्ण इस देश में इस सहज-सरल कविता का मर्म हम समझने का यत्न करते रहे। वातानुकूलित कमरों में बैठकर सर्वहारा की बात करने वाले इसे कालजयी कविता बताते रहे और हम इसे पढ़ते रहे। इसे पढ़ते-सुनते उपरी तौर पर हृदय में सिहरन सी दौड़ती और अभिव्यक्ति की दबंगई को वा ह, वा ह कहते 'पोटा, पोट-पोट' करने लगत ा । दरअसल, सही मायनों में हमने इसे अंदर तक महसूस किया ही नहीं था, जरूरत भी नहीं थी? भौतिकवादी युग में 1952 की कविता की प्रासंगिगता 2015 में कुछ रह कहॉं जाती है। चूल्हे गायब हो गए, गोदी नें अमीरों की गैस सबसिडी छोड़वाकर झुग्गी-झोपड़ी में लगवा दिया। गैस नें सांझ ढले खपरैल की घरों के उपर उठते धुंए की मनोहारी छटा को लील लिया। महिलाओं की चूडि़यों की खनक के साथ हर्षित होने वाली चक्कियॉं घरों से 'नंदा' गए, उनकी उदासी देखने के लिए हमारी आंखें तरस गयी। सीजते संयुक्त परिवार की

सुनीता वर्मा के चित्रों की तिलस्मी और सम्मोहक दुनियां

-     विनोद साव अपनी सिमटी हुई दुनियां में यह पहली बार था जब किसी चित्रकार के घर जाना हुआ था. चित्रकारों कलाकारों से दोस्ती तो रही पर घर से बाहर ही रही. कला से सम्बंधित सारी बातें या तो प्रदर्शनी में होती रहीं या फिर कला दीर्घा में , पर किसी कला के घर में नहीं. यह चित्रकार डॉ.सुनीता वर्मा का घर था. उनकी कला का घर. कभी साहित्यकार मित्रों के साथ कार्यक्रम के बाद उन्हें रात में छोडने घर आया था. पर जब उनकी कला पर चर्चा करने के लिए दिन में घर खोजा तो पा नहीं सका फिर रात में आया तो वही घर मिल गया. जिस तरह कभी दिन में गए किसी स्थान को हम रात में नहीं खोज सकते उसके विपरीत कुछ हो गया था कि रात में गए घर को दिन में नहीं तलाश पाया. शायद यह भी कला का कोई उपक्रम हो जिसमें लाईट एंड शेड का प्रभाव पड़ता हो. दरवाजे पर खड़ी सुनीता जी को मैंने कला के इस संभावित प्रभाव के बारे में बताया तब वे केवल इतना बोल पायीं कि ‘क्या बात है !’ यह कहते हुए उन्होंने कला के घर में मुझे ले लिया था जहाँ चित्रकार सुनीता रहती हैं दिन-दिन और रात रात भर. न केवल अपने जीवन में रंग भरते हुए बल्कि रंगों में जीवन भरते हुए भ

राष्ट्रीय जनजातीय नाट्य अभिव्यक्ति उत्सव : आदि परब – 2

छत्तीसगढ़, आदि कलाओं से संपन्न राज्य है, यहां सदियों से जनजातीय समुदाय के लोग निवास करते आ रहे हैं। बस्तर, सरगुजा एवं कवर्धा क्षेत्र सहित यहॉं की संपूर्ण मिट्टी में आदिम संस्कृति एवं कलाओं के पुष्प सर्वत्र बिखरे हुए हैं। जनजातीय अध्येताओं का मानना है कि दक्षिण भारत के जनजातीय समूहों से सांस्कृतिक आदान प्रदान के फलस्वरूप एवं कला एवं परम्पराओं में विविधता के बावजूद, छत्तीसगढ़ की जनजातियों की अपनी एक अलग पहचान कालांतर से विद्यमान है। भौगोलिक रूप से देश के हृदय स्थल में स्थित होने के कारण यहॉं के इन्हीं जनजातियों के जनजातीय कला एवं संस्कृति का एक अलग महत्व है। इसीलिए जनजातीय आदि कलाओं के अध्ययन के उद्देश्यो से, देश के नक्शे में छत्तीसगढ़ को प्रमुखता दी जाती है। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के द्वारा पारंपरिक नाट्य विधा के शिक्षण-प्रशिक्षण के साथ ही विगत वर्षों से इन जनजातीय आदि कलाओं और नृत्यों पर अपना ध्यान केन्द्रित किया जा रहा है। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए आदि कलाओं से संपन्न छत्तीसगढ़ में संस्कृति विभाग छत्ती

विनोद साव की कृति ‘मेनलैंड का आदमी’ का विमोचन

छत्तीसगढ़ प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मलेन, रायपुर द्वारा विगत १८ अक्टूबर को ‘मायाराम सुरजन स्मृति लोकायन’ में प्रादेशिक सम्मलेन का आयोजन किया गया जिसमें ‘वर्तमान समय और साहित्यकार का दायित्व’ विषय पर विचार गोष्ठी रखी गयी. इस अवसर पर चर्चित लेखक विनोद साव के साहित्य भंडार, इलाहाबाद से प्रकाशित यात्रा-वृत्तांत ‘मेनलैंड का आदमी’ का विमोचन प्रसिद्द व्यंग्यकार प्रभाकर चौबे व सम्मलेन के अध्यक्ष ललित सुरजन ने किया. कार्यक्रम का संचालन महामंत्री रवि श्रीवास्तव ने किया. विमोचित कृति पर मुख्य वक्तव्य देते हुए प्रसिद्द आलोचक डॉ. गोरेलाल चंदेल ने कहा कि ‘ विनोद साव के यात्रा संस्मरण की भाषा यात्रा की नीरसता, उबाऊपन और बेजान विवरण को सरस और जीवंत बना देती है और पाठक को भी पूरी आत्मीयता से जोड़ देती है. विनोद के विचार कहीं भी वैचारिक जड़ता के शिकार नहीं होते वरन वे स्थानीयता के हिस्से बन जाते हैं. भाषा में ऐसा प्रवाह है कि पाठक भी उसमें डुबकी लगाते हुए बहने लगते हैं’  इस अवसर पर प्रदेश भर से उपस्थित साहित्यकारों के बीच विनोद शंकर शुक्ल, तेजेंदर, जीवन यदु, तुहिन देव, उर्मिला शुक्ल, विद्या गुप्त , संतो

मजदूर आन्दोलनों के शहर में

-     विनोद साव भिलाई के इस फीडिंग सेंटर में आना जाना अक्सर होता रहा है. भिलाई इस्पात संयंत्र लोहे का कारखाना है और यह शहर इसे कच्चे लोहे की आपूर्ति करता रहा है. इसका असली नाम है झरनदल्ली – यहाँ की पहाड़ियों से लोहा झरता रहा है, बैल की पीठ जैसी आकार वाली यहाँ की पहाड़ियों से इसलिए यह खदान क्षेत्र झरन दल्ली कहलाया. अब इसे राजहरा कहा जाता है पर इस शहर का रेलवे स्टेशन इसे इसके मूल नाम की तरह राझरा (झरन जैसा) लिखता है. भारतीय रेलवे की यह विशेषता है कि वह किसी भी क्षेत्र की स्थानीयता को महत्व देता है और उनके वास्तविक नाम से ही रेलवे स्टेशनों का नामकरण करता है. इसलिए भी किसी स्थान के सही नाम की प्रमाणिकता के लिए रेलवे स्टेशन में लगी तख्ती को भी देखा जाता है. छत्तीसगढ़ के जन-मानस की तरह यहाँ के रेल्वे स्टेशन बड़े साफ-सुथरे और सुंदर होते हैं. यहाँ गांव-कस्बों में बने स्टेशनों में कोई बदबू नहीं होती. आदमी कहीं भी फ़ैल-पसर के बैठ सकता है लेट सकता है और अपने टिफ़िन खा सकता है. वरना दूसरे हिंदी भाषी राज्यों के स्टेशन तो बाप रे बाप. अगर हमारे स्टेशन और अस्पताल अच्छे हों तो वहां भी लोगों में सामुद

छत्‍तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस पर राज्‍य अलंकरण

छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर प्रदेश सरकार द्वारा आज यहां बूढ़ातालाब (विवेकानंद सरोवर) के सामने इंडोर स्टेडियम में आयोजित अलंकरण समारोह में छत्तीसगढ़ के महान विभूतियों को राज्यपाल श्री बलरामजी दास टण्डन, केन्द्रीय वित्त और सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्री अरूण जेटली, मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और उनके मंत्रीमण्डल के सदस्यों ने सम्मानित किया। समारोह में सार्वजनिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सर्वश्रेष्ठ योगदान के लिए प्रदेश के विशिष्ट व्यक्तियों और संस्थाओं को राज्य अलंकरणों और पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। कृषि क्षेत्र में डॉ. खूबचंद बघेल सम्मान - श्री गजानन्द पटेल महासमुन्द और श्री राम प्रकाश केशरवानी, जांजगीर-चांपा को संयुक्त रूप से दिया गया। महिला उत्थान के लिए मिनी माता सम्मान - कुमारी उर्मिला सोनवानी गरियाबंद, संकल्प सांस्कृतिक समिति रायपुर को संयुक्त रूप से, खेल के क्षेत्र में सराहनीय और उत्कृष्ट योगदान के लिए खेल एवं युवा कल्याण विभाग की ओर से गुण्डाधूर सम्मान - श्री बीनू व्ही, भिलाई, श्री फिरोज अहमद खान, भिलाई नगर को संयुक्त रूप से दिया गया। तीरंदाजी के क

हरिभूमि चौपाल, रंग छत्‍तीसगढ़ के और संपादकीय हिन्‍दी

कहते है कि लेखन में कोई बड़ा छोटा नहीं होता। रचनाकार की परिपक्वता को रचना से पहचान मिलती है। उसकी आयु या दर्जनों प्रकाशित पुस्तके गौड़ हो जाती है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए मैं आज का चौपाल पढ़ने लगा। शीर्षक 'अतिथि संपादक की कलम ले' के नीचे सुदर्शन व्यक्तित्व के ओजस्वी व्यक्ति का चित्र था, नाम था मोहन अग्रहरि। इनका नाम अपरिचित नहीं था, साहित्य के क्षेत्र में प्रदेश में इनका अच्छा खासा नाम है। यद्यपि मुझे इनकी रचनाओं को पढ़ने का, या कहें गंभीरता से पढ़ने का, अवसर नहीं मिला था। चौपाल जैसी पत्रिका, के संपादन का अवसर जिन्हें मिल रहा है, निश्चित तौर पर वे छत्तीसगढ़ के वरिष्ठतम साहित्यकार है और उन्‍हें छत्‍तीसगढ़ के कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति का विशेष ज्ञान है। इस लिहाज से अग्रहरि जी के संपादकीय को गंभीरता से पढ़ना जरुरी हो गया। अग्रहरी जी ने हिंदी में बढ़िया संपादकीय लिखा है। चौपाल में छत्तीसगढ़ी मे संपादकीय लिखने की परंपरा रही है। शीर्षक शब्द 'अतिथि संपादक की कलम ले' से भी भान होता है कि आगे छतीसगढ़ी में बातें कही जाएँगी। किंतु इसमें हिंदी में भी संपादकीय लिखा ज

गूगल डॉक्स में आनलाईन बोल कर टाईप करने की सुविधा

रविशंकर श्रीवास्‍तव जी नें अपने ब्‍लॉग में जब गूगल डॉक्स में बोल कर हिंदी लिखने की उम्दा सुविधा उपलब्ध नाम से पोस्‍ट पब्लिश किया था तब से मित्रों के द्वारा लगातार इसके प्रयोग विधि के संबंध में मुझसे जानकारी मागी जा रही थी। किन्‍तु समयाभाव के कारण मित्रों के लिए इसे क्रमिक रूप से प्रस्‍तुत नहीं कर पा रहा था। लिजिये प्रस्‍तुत है, लैपटाप में बोलकर टाईप करने का तरीका - गूगल डाक्‍स में लाग ईन होवें. नया डाकूमेंट तैयार करने के लिए + को क्लिक करें. डिवाईस को क्लिक करें, एक पाप अप खुलेगा जिसमें से वाणी लेखन को क्लिक करें. ऐसा करने पर माईक का आईकान उस पेज पर आ जायेगा. इस आईकान को क्लिक करें, और बोलते जायें जो टाईप करना है - फिर डाकूमेंट आनलाईन सेव कर लें. संजीव तिवारी

छत्‍तीसगढ़ी की अभिव्यक्ति क्षमता : सोनाखान के आगी

छत्‍तीसगढ़ी के जनप्रिय कवि लक्ष्मण मस्तुरिया की कालजयी कृति 'सोनाखान के आगी' के संबंध में आप सब नें सुना होगा। इस खण्‍ड काव्‍य की पंक्तियों को आपने जब जब याद किया है आपमें अद्भुत जोश और उत्‍साह का संचार अवश्‍य हुआ होगा। पाठकों की सहोलियत एवं छत्‍तीसगढ़ी साहित्‍य के दस्‍तावेजीकरण के उद्देश्‍य से हम इस खण्‍ड काव्‍य को गुरतुर गोठ में यहॉं संग्रहित कर रहे हैं, जहां से आप संपूर्ण खण्‍ड काव्‍य पढ़ सकते हैं। यहॉं हम 'सोनाखान के आगी' पर छत्‍तीसगढ़ के दो महान साहित्‍यकारों का विचार प्रस्‍तुत कर रहे हैं  - छत्‍तीसगढ़ी की अभिव्यक्ति क्षमता : सोनाखान के आगी श्री लक्ष्मण मस्तुरिया प्रबल हस्ताक्षर के रूप में छत्‍तीसगढ़ी के आकाश में रेखांकित हैं। इनकी वाणी में इनकी रचनाओं को सुन पाना एक अनूठा आनंद का अनुभव करना है। प्रथम बार उनके खण्ड काव्य 'सोनाखान के आगी' को आज सुनने का अवसर मिला। छत्‍तीसगढ़ी की कोमलकान्त पदावली में वीररस के परिपूर्ण कथा काव्य को प्रस्तुत करते समय श्री मस्तुरिया स्वयं भाव-विभोर तो होते ही हैं, अपने श्रोता समाज को भी उस ओजस्वनी धारा में बहा ले जाने

द्रोपदी जेसवानी की ‘अंतःप्रेरणा’

अभी हाल ही में द्रोपदी जेसवानी की एक कविता संग्रह ‘अंत: प्रेरणा’ आई है। संग्रह की भूमिका डॉ. बलराम नें लिखी है, जिसमें द्रोपदी जेसवानी की संवेदशील प्रवृत्ति के संबंध में बताते हुए वे लिखते हैं कि उनकी रचनाओं में वेदना और संवेदना के छायावादी चित्र झलकते हैं। डॉ. बलराम लिखते हैं कि रचनाओं में सत्य की झलक है और कुछ में चुनौतियाँ भी हैं। भूमिका में डॉ. बलराम नें चंद शब्दों में ही पूर्ण दक्षता के साथ कवियित्री की संवेदना एवं उनकी कविताओं से हमारा परिचय करा दिया है। कवियित्री नें इस संग्रह को अपने आराध्य भगवान शिव को अर्पित किया है। साथ ही अपने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बड़े पिताजी व पारिवारिक सदस्यों को और शुभचिंतकों को समर्पित किया है। ऐसे समय में जब परिवार नाम की ईकाई के अस्तित्व पर संकट हैं, प्रेम का छद्मावरण लड़कियों के मुह में स्कार्फ की भांति सड़कों में आम है। किसी रचना संग्रह को अपने परिवार जनों को समर्पित करना एक रचनाकार के संवेदनशीलता को प्रदर्शित करता है। 'फिर भी कुछ रह गया' में इस संग्रह के प्रति दो शब्द लिखते हुए कवियित्री अपने अंतरतम अनुभूति का उल्लेख करत

सामयिक प्रश्‍न: कोजन का होही

धर्मेंद्र निर्मल छत्तीसगढ़ी भाषा के साहित्य मे एक जाना पहचाना युवा नाम है। धर्मेंद्र निर्मल आजकल व्यंग, कहानी, कविता और छत्तीसगढ़ी के अन्यान्य विधाओं पर लगातार लेखन कार्य कर रहे है। उन्होंनें लेखनी की शुरुआत छत्तीसगढ़ी सीडी एल्बमों मे गाना लेखन के साथ आरंभ किया था। बाद में उन्‍होंनें नुक्कड़ नाटक एवं टेली फिल्मों में मे भी कार्य किया और स्क्रिप्ट रायटिंग में भी हाथ आजमाया। संभवत: रचनात्मकता के इन राहों नें उन्हें साहित्य एवं संस्कृति के क्षेत्र का सहज ज्ञान उपलब्ध कराया। छत्तीसगढ़ी साहित्य में कुछ गिने चुने युवा सार्थक व गंभीर लेखन कर रहे हैं उसमें से धर्मेंद्र निर्मल अहम हैं। धर्मेंद्र निर्मल सिर्फ छत्तीसगढ़ी में ही नहीं, हिन्दी के सभी विधाओं में निरंतर लेखन कर रहे हैं। उनकी लेखनी में हिन्दी साहित्य संस्कार का दर्शन होता है। जिससे यह प्रतीत होता है कि वे स्वयं बेहतर पाठक है और हिन्दी के साहित्य का लगातार अध्ययन करते रहते हैं। उन्हें साहित्य की नई विधाओं, आलोचना के बिन्दु और नवाचार का ज्ञान है। वे हिन्दी के नवाचारों का प्रयोग छत्तीसगढ़ी लेखन में करते नजर आते हैं। मैं उनकी व्यंग लेख

हिन्दी मेरी भाषा

मेरे मन की भाषा हिन्दी मेरे बोल की भाषा हिन्दी। सबसे सहज, सबसे सरल सबसे मीठी, हमारी हिन्दी।। झरने के कल—कल सी हिन्दी कोयल के मीठे कूक सी हिन्दी। मिट्टी की सौंधी महक सी हिन्दी हवा के शीतल बयार सी हिन्दी।। सूर—रहीम के दोहे में हिन्दी कबीर—मीरा के साखों में हिन्दी। निराला, प्रसाद और पंत की हिन्दी गीत, गज़ल और कविता की हिन्दी।। मॉं की लोरी—थपकी में हिन्दी बाबा की झिड़की में हिन्दी। नानी की कहानियों में हिन्दी दादा के हर सीख में हिन्दी।। राष्ट्र गौरव की भाषा हिन्दी हम सब की अभिलाषा हिन्दी। मैथिली, उर्दू, अवधी और ब्रज सबको अपने में मिलाती हिन्दी।। भारत के माथे की बिन्दी भारत की पहचान है हिन्दी। दुनिया की सभी भाषा अच्छी पर सबसे निराली हमारी हिन्दी।। डॉ. हंसा शुक्ला प्राचार्य, स्वामी स्वरूपानंद महाविद्यालय, हुडको भिलाई.

भूमि अधिग्रहण : असंतोष जारी है

भूमि अधिग्रहण कानून पर संसद से सड़क तक हो रहे राष्‍ट्रव्‍यापी हो-हल्‍ले पर पिछले दिनों विराम लग गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में स्‍पष्‍ट कर दिया कि सरकार इस मामले में चौथा ऑर्डिनैंस नहीं लाएगी। विद्यमान भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधनों के साथ वर्तमान सरकार द्वारा प्रस्‍तुत भूमि अधिग्रहण बिल लोकसभा में पारित होने के बाद राज्‍यसभा में पारित होने की राह जोह रहा है। इस बिल को प्रभावी बनाने के वैकल्पिक तरीकों के रूप में सरकार लगातार तीन बार ऑर्डिनैंस ला चुकी थी, इस तीसरे आर्डिनेंस की अंतिम तिथि 31 अगस्‍त थी। सरकार द्वारा चौथी बार आर्डिनेंस नहीं लाने के फैसले से विद्यमान अधिग्रहण कानून अपने पूर्ण प्रभाव के साथ देश में पुन: लागू हो गया है। हालॉंकि अरूण जेटली नें सरकार के इस कदम को ही वैकल्पिक रास्‍ता कहा जो राजनीतिक विवाद के लिए अख्तियार किया गया है। उन्‍होंनें यह भी कहा कि इससे हमें कम राजनीतिक कीमत चुकानी होगी और राज्‍य सरकारों को भू-अधिग्रहण के मामलों में अधिक स्‍वतंत्रता मिल जायेगी। पिछले सप्‍ताह हुये इस उठापठक का फायदा यह भी हुआ कि भूमि अधिग्रहण से जुड़े अ

लिफ्ट का गिफ्ट

हमारे देश में नगर रक्षक प्रहरियों का जलवा सदियों से बरकरार रहा है। नगर में शासन व्यवस्था एवं अनुशासन कायम रखने का प्रभार इन्हीं के हाथों रहा है, जिसमें रत्न जड़ित सोने का दण्ड हुआ करता था। मुगलों का जमाना आते आते दण्ड से रत्न ऐसे गायब हुए जैसे रेलवे के टायलेट से आईना और दण्ड का सोना पीतल में बदल गया। अंग्रेजों नें कुछ भारतीय और कुछ अंग्रेजी मुलम्मा चढ़ाते हुए इसे छड़ी बनानें में कोई कसर नहीं छोड़ी। इतना ही नहीं अंग्रेजों नें शासन और अनुशासन के बीच भी भारत पाकिस्तान जैसे बटवारा कर दिया और पुलिस सर्विसेस व सिविल सर्विसेस को स्थापित कर दिया। अधिकार बंट गए कर्तव्य संयुक्त रहा और यही असंतुष्टि का कारण रहा। अधिकारों के इस बंटवारे में इन दोनों शाहों के बीच असंतुष्टि का बीज बचा रहा जो राजनीति की आद्रता में यदा कदा पनपता रहा, मेछराता रहा। सुराज के बाद योग्य सरकारों नें इन दोनों के बीच उल्होते पीका को प्रभावपूर्ण रूप से नष्ट करने का, समय समय पर यत्न भी किया, पर इनके बीच का महीन दरार समय-समय पर बार-बार दरकते रहा। हमारे प्रदेश में अभी हाल ही में समाचार पत्रों से, पढ़ने-सुनने में आया कि इन

तथाकथित सुभद्रा कुमारी चौहानों और महादेवियों के बीच मीना जांगड़े

छत्तीसगढ़ की एक 10वीँ पढी अनुसूचित जाति की ग्रामीण लड़की की कविताओं के दो कविता संग्रह, पिछले दिनों पद्मश्री डॉ सुरेन्द्र दुबे जी से प्राप्त हुआ। संग्रह के चिकने आवरणों को हाथों में महसूस करते हुए मुझे सुखद एहसास हुआ। ऐसे समय मेँ जब कविता अपनी नित नई ऊंचाइयोँ को छू रही है, संचार क्रांति के विभिन्न सोतों से अभिव्यक्ति चारोँ ओर से रिस—रिस कर मुखर हो रही है। उस समय में छत्तीसगढ़ के गैर साहित्यिक माहौल मेँ पली बढ़ी, एक छोटे से सुविधाविहीन ग्राम की लड़की मीना जांगड़े कविता भी लिख रही हैँ। .. और प्रदेश के मुख्यमंत्री इसे राजाश्रय देते हुए सरकारी खर्च में छपवा कर वितरित भी करवा रहे हैं। ग्लोबल ग्राम से अनजान इस लड़की नें कविता के रूप में जो कुछ भी लिखा है वह प्रदेश की आगे बढ़ती नारियों की आवाज है। मीना की कविताओं के अनगढ़ शब्दोँ मेँ अपूर्व आदिम संगीत का प्रवाह है। किंतु कविता की कसौटी मेँ उसकी कविताएँ कहीँ भी नहीँ ठहर पाती। ऐसा प्रतीत होता है जैसे वह बहुत कुछ लिखना चाहती है। उसके मस्तिस्क मेँ विचारोँ का अथाह सागर तरंगे ले रहा है पर वह उसे उसके उसी सौंदर्य के साथ प्रस्तुत नहीँ कर पा रही है। श

तुलसी जयंती समारोह : हिन्‍दी साहित्‍य समिति का आयोजन

23 अगस्त को मानस भवन दुर्ग मेँ,हिंदी साहित्य समिति दुर्ग के द्वारा तुलसी जयंती समारोह का आयोजन किया गया। समारोह के पहले सत्र मेँ गोस्वामी तुलसीदास के व्यक्तित्व एवँ कृतित्व पर बोलते हुए मुख्य वक्ता वरिष्ठ साहित्यकार एवं श्रीमद् भागवत आचार्य स्वामी कृष्णा रंजन ने कहा कि तुलसी नेँ तत्कालीन परिस्थितियोँ मेँ जनता मेँ विद्रोह की ताकत पैदा करने के उद्देश्य से जनभाषा मेँ रामचरितमानस का सृजन किया। उंहोने विभिन्न भाषाओं के राम कथा एवँ रामचरितमानस पर समता मूलक व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि तुलसी ने समाज और साहित्य के लिए तब और अब दोनोँ ही काल और परिस्थितियोँ मेँ सार्थक भूमिका निभाई। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे राजभाषा आयोग के पूर्व अध्यक्ष पं. दानेश्वर शर्मा ने कहा कि तुलसी जनकवि थे। उनकी रचनाएँ जन मन के लिए थी, तुलसी ने समाज के मंगल के लिए रामचरितमानस एवँ अन्य अमर रचनाओं का सृजन किया। तुलसी ने आदर्श समाज की परिकल्पना की, जिसे अपनी रचनाओं के माध्यम से प्रकट किया। उन्होंने बताया कि रामचरितमानस के प्रत्येक शब्द सिद्ध सम्पुट मंत्र है, जिसका लोकहित मेँ चमत्कारिक रुप से प्रयोग किया जा