विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग द्वारा छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रचार—प्रसार हेतु एवं छत्तीसगढ़ी को राज काज की भाषा बनानें हेतु दो दिवसीय प्रांतीय सम्मेलन का आयोजन दिनांक 20 व 21 फरवरी 2015 को किया जायेगा। इस आयोजन में छत्तीसगढ़ी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने की मांग मुखरता से रखी जावेगी। आयोजन स्थल देवकी नंदन सभाकक्ष, लाल बहादुर स्कूल, सिटी कोतवाली चौक, बिलासपुर होगा। बिलासपुर में आयोजित इस प्रादेशिक सम्मेलन के स्वागताध्यक्ष नंद किशोर तिवारी, आर.सी.सिन्हा सचिव—संस्कृति एवं पर्यटन, राकेश चतुर्वेदी संचालक—संस्कृति एवं पुरातत्व, संयोजक पद्मश्री डॉ.सुरेन्द्र दुबे, अध्यक्ष डॉ.विनय कुमार पाठक, सह संयोजक डॉ.सुधीर शर्मा, सचिव मनोज भंडारी हैं। कार्यक्रम के संबंध में विवरण इस प्रकार हैं — 20 फरवरी 2015 सुबह 9 से 11 बजे तक पंजीयन एवं स्वल्पाहार सुबह 11 से 12 बजे तक छत्तीसगढ़ी और मराठी के बीच अंतर संबन्ध डॉ.मधुप पाण्डेय, कवि व्यंग्यकार नागपुर मूल कृति 'मॉं' की अनुवादित कृति 'दाई' का वाचन डॉ.विनय कुमार पाठक द्वारा पहला सत्र दोपहर 12.00 से 1.30 बजे तक गुना