विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
छत्तीसगढ़ प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मलेन, रायपुर द्वारा विगत १८ अक्टूबर को ‘मायाराम सुरजन स्मृति लोकायन’ में प्रादेशिक सम्मलेन का आयोजन किया गया जिसमें ‘वर्तमान समय और साहित्यकार का दायित्व’ विषय पर विचार गोष्ठी रखी गयी. इस अवसर पर चर्चित लेखक विनोद साव के साहित्य भंडार, इलाहाबाद से प्रकाशित यात्रा-वृत्तांत ‘मेनलैंड का आदमी’ का विमोचन प्रसिद्द व्यंग्यकार प्रभाकर चौबे व सम्मलेन के अध्यक्ष ललित सुरजन ने किया. कार्यक्रम का संचालन महामंत्री रवि श्रीवास्तव ने किया. विमोचित कृति पर मुख्य वक्तव्य देते हुए प्रसिद्द आलोचक डॉ. गोरेलाल चंदेल ने कहा कि ‘ विनोद साव के यात्रा संस्मरण की भाषा यात्रा की नीरसता, उबाऊपन और बेजान विवरण को सरस और जीवंत बना देती है और पाठक को भी पूरी आत्मीयता से जोड़ देती है. विनोद के विचार कहीं भी वैचारिक जड़ता के शिकार नहीं होते वरन वे स्थानीयता के हिस्से बन जाते हैं. भाषा में ऐसा प्रवाह है कि पाठक भी उसमें डुबकी लगाते हुए बहने लगते हैं’ इस अवसर पर प्रदेश भर से उपस्थित साहित्यकारों के बीच विनोद शंकर शुक्ल, तेजेंदर, जीवन यदु, तुहिन देव, उर्मिला शुक्ल, विद्या गुप्त , संतो