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जुलाई, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

जब भाषा ही नहीं रहेगी तो क्या .?

विगत एक वर्ष से मैंने छत्तीसगढ़ी वेब मैगज़ीन गुरतुर गोठ डॉट कॉम ( www.gurturgoth.com ) को सर्च इंजन से डिसेबल कर दिया था।  इसके पीछे मूल कारण एक व्यक्ति था जो गुरतुरगोठ और अन्य छत्तीसगढ़ी ब्लॉगों के आलेखों को कापी कर अपने ब्लॉग में लगातार लगा रहा था, इससे गूगल बोट को समझ में नहीं आ रहा था कि, डेटा पहले कहाँ पब्लिश हुआ है। इसके अतिरिक्त कारण यह था कि मुझे दूसरे आयामों में काम करना था और छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य के इंटरनेट में हो रहे ब्लॉगिया-फेसबुकिया भण्डारण को सर्च में प्राथमिकता देना था। ताकि गूगल, नेट सर्च में छत्तीसगढ़ी भाषा के शब्दों के प्रति भी संवेदनशील (मशीनी) हो। यह मेरे आत्ममुग्ध मानस का भ्रम भी हो सकता है या मेरे अधकचरा तकनीकी ज्ञान का सत्य।  जो भी हो, मुझे 'खुसी' है कि इस बीच एंड्राइड युक्त युवा साथियों ने अपनी भाषा को वैश्विक बनाने में सराहनीय कार्य किया और दर्जनों छत्तीसगढ़ी ब्लॉग व फेसबुक, व्हॉट्स एप ग्रुप बनाये। क्रांति सेना के 'संगी' लोग भी भाषा और संस्कृति के लिए लगातार अलख जगा रहे हैं।   वरिष्ठ और आदरणीय अग्रजों में नंदकिशोर शुक्ला ने तो अपनी उम्र

यात्रा वृत्तांत : थाईलैंड यात्रा और फेसबुक फ्रेंड्स के हवाई हमले

- विनोद साव  ‘दोस्तों.. हम कल १६ तारीख से थाईलैंड की यात्रा पर जा रहे हैं. बैंकाक और पटाया घूमते हुए वापस कोलकाता होकर रायपुर एअरपोर्ट पर २२ मार्च को उतरेंगे. आपको जानकर खुशी होगी कि मैं सपत्नीक जा रहा हूं.’ जाते समय फेसबुक पर दी गई मेरी इस जानकारी ने हडकंप मचा दी. सहसा लोगों को यह विश्वास नहीं हुआ कि मैं वाकई इस तरह से जा रहा हूं. कहीं कोई ‘मैच’ नहीं है. फेसबुक फ्रेंड्स ने अपनी आशंका रूपी ‘कमेंट्स’ की बौछारें लगा दी. कुंअर ठाकुर नरेंद्र प्रताप सिंह राठौर ने कहा कि ‘भाई साब.. पटाया गोवा से दस गुना ज्यादा रंगीन है ऐसे में आप भाभी जी ???' पत्रकार मनोज अग्रवाल ने कहा कि 'अच्छा किया साव जी आपने पहले बता दिया.. नहीं तो लोग गलत समझते.' रायपुर के प्रदीप कुमार शर्मा ने हमें 'हनीमून पर जाने की बधाई दे डाली.' व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय ने अग्रज की सदाशयता से कहा कि 'ये आप अच्छा काम कर रहे हैं आपकी यात्रा मंगलमय हो'. ब्राम्हणों ने 'शुभम् भवतु यात्रायाम' का आशीर्वाद दे दिया. कोलकाता से जब हमने बैंकाक के लिए उड़ान भरी तब कथाकार कैलाश बनवासी, व्यंग्यकार गुलब

गढ़ कलेवा को बचा लो साहब

आज फिर रायपुर के छत्तीसगढ़ी कलेवा के ठीहा 'गढ़ कलेवा' जाने का अवसर मिला। बाहर बाइक और कार काफी संख्या में खड़े थे। वहां ग्राहकों के भीड़-भाड़ को देखकर दिल को सुकून मिला। बैठने के लिए बनाये गए परछी के अतिरिक्त बाहर खुले में बने पारंपरिक टेबलों में ग्राहक बैठे थे। खुले परिसर में चहल-पहल थी और काउंटर पर लोग स्वयं-सेवा करते हुए अपने पसंद का कलेवा खरीद रहे थे। कुछ दिगर-प्रांतीय सभ्रांत महिलाएं भी थी जो जाते समय छत्तीसगढ़ी डिस खरीद रही थीं, कुछ अपने बच्चों का गढ़ कलेवा के भित्ति आवरणों के साथ फोटो खींच रही थीं। परिसर में घुसते हुए मुझे लगने लगा कि 'गढ़ कलेवा' हिट हो गया। देखकर आत्मिक आनंद आया कि हमारे प्रदेश की खान-पान परम्परा के प्रति शहरी लोगों में रूचि और सम्मान दोनों जागृत हुआ है। हम (यानि अशोक तिवारी जी, शकुंतला तरार जी और मैं) छत्तीसगढ़ी के लब्ध प्रतिष्ठित संगीतकार खुमान साव जी के साथ थे। हमने आर्डर दिया, कलेवा परोसा गया, हमने खाया। कलेवा अपने पारंपरिक जायके के अनुसार स्वादिष्ट था। अंदर प्लास्टिक के डिस्पोजलों में पानी और कलेवा सर्व करते वेटरों को देख कर खुमान साव जी