यात्रा वृत्तांत : थाईलैंड यात्रा और फेसबुक फ्रेंड्स के हवाई हमले सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

यात्रा वृत्तांत : थाईलैंड यात्रा और फेसबुक फ्रेंड्स के हवाई हमले

- विनोद साव 

‘दोस्तों.. हम कल १६ तारीख से थाईलैंड की यात्रा पर जा रहे हैं. बैंकाक और पटाया घूमते हुए वापस कोलकाता होकर रायपुर एअरपोर्ट पर २२ मार्च को उतरेंगे. आपको जानकर खुशी होगी कि मैं सपत्नीक जा रहा हूं.’ जाते समय फेसबुक पर दी गई मेरी इस जानकारी ने हडकंप मचा दी. सहसा लोगों को यह विश्वास नहीं हुआ कि मैं वाकई इस तरह से जा रहा हूं. कहीं कोई ‘मैच’ नहीं है. फेसबुक फ्रेंड्स ने अपनी आशंका रूपी ‘कमेंट्स’ की बौछारें लगा दी. कुंअर ठाकुर नरेंद्र प्रताप सिंह राठौर ने कहा कि ‘भाई साब.. पटाया गोवा से दस गुना ज्यादा रंगीन है ऐसे में आप भाभी जी ???' पत्रकार मनोज अग्रवाल ने कहा कि 'अच्छा किया साव जी आपने पहले बता दिया.. नहीं तो लोग गलत समझते.' रायपुर के प्रदीप कुमार शर्मा ने हमें 'हनीमून पर जाने की बधाई दे डाली.' व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय ने अग्रज की सदाशयता से कहा कि 'ये आप अच्छा काम कर रहे हैं आपकी यात्रा मंगलमय हो'. ब्राम्हणों ने 'शुभम् भवतु यात्रायाम' का आशीर्वाद दे दिया.

कोलकाता से जब हमने बैंकाक के लिए उड़ान भरी तब कथाकार कैलाश बनवासी, व्यंग्यकार गुलबीर सिंह भाटिया और रंगकर्मी राजेश श्रीवास्तव ने भी शुभकामनाएँ भेजीं. हाँ महिला मित्रों ने यथेष्ट दूरी बनाये रखी सिवाय मीता दास, वंदना केंगरानी और कुमकुम भाभी (श्रीमती उदयप्रकाश) के जिन्होंने हर पोस्ट को ‘लाइक’ कर अपने साहस का परिचय दिया. होली ठिठोली करते हुए उड़ान भरने से पहले एयरपोर्ट के स्मोकिंग जोन में सिगरेट पीते हुए मेरा चित्र देखकर व्यंग्यकार प्रभाकर चौबे जैसे बड़े-बुजुर्गों ने सिगरेट नहीं पीने की नसीहत दी. इंदौर के विद्वान साथी प्रदीप शर्मा ने स्मोकिंग जोन के अंदर ये काम कर हवा को प्रदूषित होने से बचा लेने की सराहना की. तो अंबिकापुर आकाशवाणी के उदघोषक शोभनाथ साहू ने समझाया कि 'कुछ बातें छुपकर छुपाकर करनी होती है, आपने देश क्या छोड़ा, एकदम उन्मुक्त हो गए । इस चेहरे से लौट आएं ।' व्यंग्यकार कैलाश मंडलेकर ने इस चेहरे की तारीफ की कि 'बहुत सुंदर फ़ोटो है. सिगरेट के बिना भी आप बढ़िया दिखते हैं विनोद जी.. यार इस उम्र में इतने स्मार्ट बने रहने का क्या नुस्खा है ?' कथाकार रमाकांत श्रीवास्तव ने ये जुमला फेंका 'पीलो यार.. पीलो .. बंगाली लोग तो सिगरेट खाते हैं.' नवीन कुमार तिवारी ‘अमर्यादित‘ ने 'हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया' का गीत गुनगुनाया'.
फेसबुक में समुद्र में पैराग्लाइडिंग करते हुए पिक्स के साथ जब यह टिप्पणी गई कि 'मुझसे पहले पत्नी ने उड़ान भर ली. मैं ज़मीन पर रह गया और वो आसमान में उड़न छू हो गई.' सतीशकुमार चौहान ने कहा कि ' जमीन से जुडे लोग जमीन पर ही रह जाते हैं.' हास्य-व्यंग्य के कवि परमेश्वर वैष्णव सबसे ज्यादा उत्तेजित रहे ' अभी तक आपने भाभी जी की ताकत हौसले किचन में देखे थे. अब बाहर ले आये तब पता चला आपको. ऐसे ही हर गृहणी का दर्द है.' कविताई सुर में नरेंद्र राठौर बोल उठे 'मतलब .. लुट गई जीवन भर की कमाई.. आप रह गए ज़मीन पर और भाभी हुई हवा हवाई.'

अल्काज़ार-शो के बाद उसके नर्तक कलाकार अपने उत्तेजक लिबास में हाल के बाहर आकर दर्शकों से मिलते हैं. हाथ मिलाने, गले मिलने और फोटो खिंचाने के अलग अलग रेट हैं. ये जानकर भिलाई की कथाकार मीता दास पूछती हैं कि 'कितना रोकड़ा लुटा आये?' रायपुर के पत्रकार गोकुल सोनी को संदेह है 'हाथ मिलाये, गले मिले बस !'

बैंकाक में संग्रहालय से बुद्ध के कुछ चित्र फेसबुक पर पोस्ट करता हूं जिन्हें सबसे ज्यादा 'लाइक' करते हैं भिलाई इस्पात संयंत्र के पूर्व कार्यपालक निदेशक गणतंत्र ओझा साहब. समुद्र तट पर पट्टाया की देशी बीयर 'चांग' पीते देखकर भिलाई के पूर्व जनसम्पर्क आधिकारी अरूण भट्ट भुवनेश्वर से उत्साह बढ़ाते हैं कहते हैं 'एन्जॉय लाइफ.' थाई सुंदरियों के चित्र देखकर यायावर सतीश जायसवाल लगातार अपनी 'लाइक' भेज कर उत्साह बनाये रखे हैं. बैंकाक में 'क्रूज' में सवार होते समय एक सुन्दरी से गर्मजोशी से स्वागत होता देख शब्दों के जादूगर कनक तिवारी से रहा नहीं गया और पूछ बैठे कि 'थाई ने क्या क्या ख़्वाब दिखाए ?'
बैंकाक में हमारे होटल 'इकोटेल' के पीछे आंध्रा रेस्टारेंट था. इसके मालिक हैं नौपदा विजया गोपाला. वे दुर्ग भिलाई अपने रिश्तेदारों के बीच आते जाते रहते हैं. वे अब मेरे फेसबुक फ्रेंड हो गए हैं. फेसबुक में सबसे ज्यादा तहलका मचाया है 'स्काई ट्रेन' के पिक्स ने. आसमान में उडती ‘स्काई ट्रेन’. इसमें ५० मिनट यात्रा की. यह ट्रेन ऊपर चलती है और शहर नीचे होता है. अंत में यह बैंकाक एयरपोर्ट के भीतर घुसकर सवारियों को उतारती है.
दोस्तों.. थाईलैंड की यात्रा पूरी कर एक सप्ताह बाद घर पहुंचा तो घर बच्चों से भरा था जिन्हें देखकर हम भाव-विभोर हुए. दिल्ली से के.के.अरोरा ने ‘वेलकम टू इंडिया’ कहा और कोरबा के सुरेश सोनी की हमारे आगमन पर तुकबंदियां देखिये :
आकर नाती पोती पाए !
क्या क्या लाए नही बताए !
स्काई ट्रेन में सफर कर आए !
चांग बीयर भी पीकर आए !
परदेश से आकर अपनों को पाए !
हम सबकी जानकारी बढ़ाए !


20 सितंबर 1955 को दुर्ग में जनमे विनोद साव समाजशास्त्र विषय में एम.ए.हैं। वे भिलाई इस्पात संयंत्र में निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व विभाग में सहायक प्रबंधक हैं। fहंदी व्यंग्य के सुस्थापित लेखक विनोद साव अब उपन्यास, कहानियां और यात्रा वृतांत लिखकर भी चर्चा में हैं। उनकी रचनाएं हंस, पहल, अक्षरपर्व, वसुधा, ज्ञानोदय, वागर्थ और समकालीन भारतीय साहित्य में छपी हैं। उनके दो उपन्यास, तीन व्यंग्य संग्रह और संस्मरणों व कहानियों के संग्रह सहित अब तक कुल बारह किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्हें वागीश्वरी और अट्टहास सम्मान सहित कई पुरस्कार मिल चुके हैं। छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल के लिए भी चित्र-कथाएं उन्होंने लिखी हैं। वे उपन्यास के लिए डाॅ. नामवरfसंह और व्यंग्य के लिए श्रीलाल शुक्ल से भी सम्मानित हुए हैं। उनका पता है: मुक्तनगर, दुर्ग छत्तीसगढ़ 491001 मो.9301148626 ई-मेलः vinod.sao1955@gmail.com

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भट्ट ब्राह्मण कैसे

यह आलेख प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट जी नें इस ब्‍लॉग में प्रकाशित आलेख ' चारण भाटों की परम्परा और छत्तीसगढ़ के बसदेवा ' की टिप्‍पणी के रूप में लिखा है। इस आलेख में वे विभिन्‍न भ्रांतियों को सप्रमाण एवं तथ्‍यात्‍मक रूप से दूर किया है। सुधी पाठकों के लिए प्रस्‍तुत है टिप्‍पणी के रूप में प्रमोद जी का यह आलेख - लोगों ने फिल्म बाजीराव मस्तानी और जी टीवी का प्रसिद्ध धारावाहिक झांसी की रानी जरूर देखा होगा जो भट्ट ब्राह्मण राजवंश की कहानियों पर आधारित है। फिल्म में बाजीराव पेशवा गर्व से डायलाग मारता है कि मैं जन्म से ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय हूं। उसी तरह झांसी की रानी में मणिकर्णिका ( रानी के बचपन का नाम) को काशी में गंगा घाट पर पंड़ितों से शास्त्रार्थ करते दिखाया गया है। देखने पर ऐसा नहीं लगता कि यह कैसा राजवंश है जो क्षत्रियों की तरह राज करता है तलवार चलता है और खुद को ब्राह्मण भी कहता है। अचानक यह बात भी मन में उठती होगी कि क्या राजा होना ही गौरव के लिए काफी नहीं था, जो यह राजवंश याचक ब्राह्मणों से सम्मान भी छीनना चाहता है। पर ऊपर की आशंकाएं निराधार हैं वास्तव में यह राजव

क्या सफेद फूलो वाले कंटकारी (भटकटैया) के नीचे गडा खजाना होता है?

8 . हमारे विश्वास, आस्थाए और परम्पराए: कितने वैज्ञानिक, कितने अन्ध-विश्वास? - पंकज अवधिया प्रस्तावना यहाँ पढे इस सप्ताह का विषय क्या सफेद फूलो वाले कंटकारी (भटकटैया) के नीचे गडा खजाना होता है? बैगनी फूलो वाले कंटकारी या भटकटैया को हम सभी अपने घरो के आस-पास या बेकार जमीन मे उगते देखते है पर सफेद फूलो वाले भटकटैया को हम सबने कभी ही देखा हो। मै अपने छात्र जीवन से इस दुर्लभ वनस्पति के विषय मे तरह-तरह की बात सुनता आ रहा हूँ। बाद मे वनस्पतियो पर शोध आरम्भ करने पर मैने पहले इसके अस्तित्व की पुष्टि के लिये पारम्परिक चिकित्सको से चर्चा की। यह पता चला कि ऐसी वनस्पति है पर बहुत मुश्किल से मिलती है। तंत्र क्रियाओ से सम्बन्धित साहित्यो मे भी इसके विषय मे पढा। सभी जगह इसे बहुत महत्व का बताया गया है। सबसे रोचक बात यह लगी कि बहुत से लोग इसके नीचे खजाना गडे होने की बात पर यकीन करते है। आमतौर पर भटकटैया को खरपतवार का दर्जा दिया जाता है पर प्राचीन ग्रंथो मे इसके सभी भागो मे औषधीय गुणो का विस्तार से वर्णन मिलता है। आधुनिक विज्ञ

दे दे बुलउवा राधे को : छत्तीसगढ में फाग 1

दे दे बुलउवा राधे को : छत्‍तीसगढ में फाग संजीव तिवारी छत्तीसगढ में लोकगीतों की समृद्ध परंपरा लोक मानस के कंठ कठ में तरंगित है । यहां के लोकगीतों में फाग का विशेष महत्व है । भोजली, गौरा व जस गीत जैसे त्यौहारों पर गाये जाने लोक गीतों का अपना अपना महत्व है । समयानुसार यहां की वार्षिक दिनचर्या की झलक इन लोकगीतों में मुखरित होती है जिससे यहां की सामाजिक जीवन को परखा व समझा जा सकता है । वाचिक परंपरा के रूप में सदियों से यहां के किसान-मजदूर फागुन में फाग गीतों को गाते आ रहे हैं जिसमें प्यार है, चुहलबाजी है, शिक्षा है और समसामयिक जीवन का प्रतिबिम्ब भी । उत्साह और उमंग का प्रतीक नगाडा फाग का मुख्य वाद्य है इसके साथ मांदर, टिमकी व मंजीरे का ताल फाग को मादक बनाता है । ऋतुराज बसंत के आते ही छत्‍तीसगढ के गली गली में नगाडे की थाप के साथ राधा कृष्ण के प्रेम प्रसंग भरे गीत जन-जन के मुह से बरबस फूटने लगते हैं । बसंत पंचमी को गांव के बईगा द्वारा होलवार में कुकरी के अंडें को पूज कर कुंआरी बंबूल की लकडी में झंडा बांधकर गडाने से शुरू फाग गीत प्रथम पूज्य गणेश के आवाहन से साथ स्फुटित होता है - गनपति को म