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छत्‍तीसगढ़ की कला, साहित्‍य एवं संस्‍कृति पर संजीव तिवारी एवं अतिथि रचनाकारों के आलेख

लूट का बदला लूट: चंदैनी-गोंदा

  विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों

दाऊद खां कहते, हनुमान की तरह सीना चीर दिखा दूँ, मेरे रोम-रोम में बसते हैंं राम

नहीं रहें हिन्दु-मुस्लिम एकता के प्रतीक रामायणकर्ता दाऊद खां

-पं. वैभव बेमेतरिहा

सिर्फ जुबां नहीं अंतर्मन में सिर्फ एक ही नाम था, हनुमान की तरह जीवन में जिनके बसा राम था। वे कहते रामकथा करते निकले जान, मौत से पहले अंतिम वाक्य हो हे राम ..इस कलयुग में छत्तीसगढ़ में हनुमान की तरह ही ऐसा ही भक्त था दाऊद खां। जी हां हिन्दु-मुस्लिम एकता के प्रतीक रहें दाऊद खां अब हमारे बीच नहीं रहा। गृह नगर धमतरी स्थित आवास में ९४ साल की उम्र में शुक्रवार ९ सितंबर को उन्होंने अंतिम सांस ली। जानकरी के मुताबिक मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह दाऊद खां का नाम पद्मश्री सम्मान के लिए प्रस्तावित किया था। मुस्लिम धर्म से होने के बाद भी हिन्दु संस्कार से राम को अपनी जिंदगी में समाहित करने वाले दाऊद खां को हम विमन्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

जन्म-शिक्षा
दाऊद खां का जन्म धतमरी जिले के कुरूद ब्लॉक स्थित अंवरी गाँ में २५ जुलाई १९२३ को हुआ था। यह वह दौर जब देश अंगरेजी हुकूमत थी। जब देश में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ आज़ादी की लड़ाई चल रही थी। इस दौर में चल रहा था हिन्दुओँ-मुस्लिमों के बीच खूनी संघर्ष। ऐसे वक्त में पले-बढ़े दाऊद खां। प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा धमतरी जिले में हुई। आठवीं तक की शिक्षा ग्रहण करने के बाद वे शिक्षक बन गए। अध्यापन कार्य के साथ उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखते हुए बीए की शिक्षा पूरी की। इस दौरान वे धमतरी सहित कई जिलों में शिक्षक रहें।

७० साल पहले हुई थी रामकथा की शुरुआत
जब दाऊद खां सिर्फ २४ साल के थे तभी उनके जीवन में राम समाहित हो चुके थे। अपने गुरु साहित्यकार पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी और सालिकराम द्विवेदी की प्रेरणा से उन्होंने रामायण का अध्ययन शुरू किया था। २४ साल की उम्र में उन्होंने पहली बार रामकथा कहीं और इसके बाद तो लगातार वे रामायण का प्रवचन देने लगे। । 1947 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में उन्होंने रामायण पर प्रवचन दिया और उसके बाद तो वह उनका जुनून बन गया। १९७० में उन्हें राष्टपति शिक्षक सम्मान मिला। उन्होंने देश कई शहरों में रामायण पर प्रवचन दिया। यहां तक राष्टपति भवन में उन्होंने रामयण पर प्रवचन दिया।

समाज सेवा में भी रहें आगे
दाऊद खां महीने ४ से ५ रामायण का प्रवचन करतें। और इससे होने वाली आय को वो गरीब बच्चों की शिक्षा व बाकी अन्य सहयोग में लगाते थे। उन्होंने कई बच्चों की आर्थिक मदद करने उन्हें अच्छी शिक्षा दी। कुछ विद्यार्थी इनमें से डॉक्टर बने , तो कुछ इंजीनियर भी।

दाऊद खां का परिवार
दाऊद खां की पत्नी का निधन हो चुका है। उनके परिवार में एक लड़का और दो लड़कियां हैं। बेटी कमरुन्निशा हाल ही में रायपुर के डिप्टी कमिश्नर पद से रिटायर हुई हैं।

राजभवन में आयोजित था रामयाण का पाठ
अंतिम सांस तक रामयाण का प्रवनच करने की बात कहने वाले दाऊद खां का आज १० सितंबर को राजभवन में प्रवचन होना था। राज्यपाल बलरामजी दास टंडन की ओर से रामायण पाठ रखा गया था। लेकिन जिस राजभवन में राज्यपाल से लेकर तमाम लोग दाऊद खां का इंतजार कर रहे थे वहां उनकी मौत की खबर आई और राजभवन में मायूसी छा गई।

'रामायण मुझे नहीं छोड़ेगी’
दाऊद खां जब तक जीवित रहे वेम हँसकर यहीं कहते रहे रामायण पाठ को लेकर समुदाय के लोग जमकर विरोध करते रहें, उन्हें कई कड़े विरोध का सामना करना पड़ा। सामाजिक बहिष्कार की धमकियां मिलती। लोग जान से मारने की बात कहते। बावजूद इसके उन्होंने कभी राम से नाता नहीं तो रामायण पाठ करना नहीं छो़ड़ा। वे सब से बस कहते थे 'मैं तो छोड़ दू पर रामायण मुझे नहीं छोड़ेगी’।



रामायाणी के नाम से थे प्रसिद्ध

दाऊद खां वर्ष 1949 से 1960 तक लगातार ११ साल तक रायपुर में मानस प्रवचन । रामचरित मानस पर प्रवचन करने पर माता-पिता और भाई ने विरोध किया था। वर्ष 1970 में हिन्दी, संस्कृत और छत्तीसगढ़ी भाषाओं के विद्वान थे। राष्ट्रपति भवन नई दिल्ली, 1972 में मुख्यमंत्री निवास भोपाल और 1974 में राजभवन भोपाल प्रवचन। रामायण, कुरान, बाईबिल और गुरूग्रंथ साहिब जैसे पवित्र धर्मग्रंथों का गहरा अध्ययन।

दाउद खॉं से लिया गया एक अनौपचारिक साक्षात्‍कार यू ट्यूब में यहॉं है।



टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (11-09-2016) को "प्रयोग बढ़ा है हिंदी का, लेकिन..." (चर्चा अंक-2462) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    श्रद्धांजलि।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त जी की १२९ वीं जयंती“ , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. धर्म कौनसा भी हो सोच इंसान की तरह होनी चाहिये

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