विजय वर्तमान चंदैनी-गोंदा को प्रत्यक्षतः देखने, जानने, समझने और समझा सकने वाले लोग अब गिनती के रह गए हैं। किसी भी विराट कृति में बताने को बहुत कुछ होता है । अब हमीं कुछ लोग हैं जो थोड़ा-बहुत बता सकते हैं । यह लेख उसी ज़िम्मेदारी के तहत उपजा है...... 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में चंदैनी-गोंदा का प्रथम प्रदर्शन हुआ। उसके बाद से आजपर्यंत छ. ग. ( तत्कालीन अविभाजित म. प्र. ) के लगभग सभी समादृत विद्वानों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समीक्षकों, रंगकर्मियों, समाजसेवियों, स्वप्नदर्शियों, सुधी राजनेताओं आदि-आदि सभी ने चंदैनी-गोंदा के विराट स्वरूप, क्रांतिकारी लक्ष्य, अखण्ड मनभावन लोकरंजन के साथ लोकजागरण और लोकशिक्षण का उद्देश्यपूर्ण मिशन, विस्मयकारी कल्पना और उसका सफल मंचीय प्रयोग आदि-आदि पर बदस्तूर लिखा। किसी ने कम लिखा, किसी ने ज़्यादा लिखा, किसी ने ख़ूब ज़्यादा लिखा, किसी ने बार-बार लिखा। तब के स्वनामधन्य वरिष्ठतम साहित्यकारों से लेकर अब के विनोद साव तक सैकड़ों साहित्यकारों की कलम बेहद संलग्नता के साथ चली है। आज भी लिखा जाना जारी है। कुछ ग़ैर-छत्तीसगढ़ी लेखक जैसे परितोष चक्रवर्ती, डॉ हनुमंत नायडू जैसों
सुबह की दिनचर्या में दादाजी अपने लाडले छोटे पोते को रोज घर के नजदीक स्कूल पैदल छोडने जाया करते। स्कूल से लौटने के बाद दादाजी अखबार पढते, चाय पीते फिर घर में मरम्मत करवाए जा रहे, कमरों, दालानों को घूम-घूमकर मुयायना करते थे।
एक दिन स्कूल जाते समय पोते ने अचानक जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया। उसके रोने के घरवाले भी बाहर निकल आये। बच्चो रोते-रोते अपनी पैर की ओर इशारा करके बता रहा था। घरवालों ने सोचा कि पैर में शायद दर्द हो रहा होगा।
तुरंत बच्चे को डॉक्टर के पास ले जाया गया। डॉक्टर ने देख-परखा और दर्द के लिए इंजेक्शन और पेन किलर दवा दिया। फिर भी दर्द कम नहीं हुआ। तब कुछ देर बाद डॉक्टर ने बच्चे के पैर से जूता जब निकाला तो जूते के अंदर एक कंकड पाया गया, जिसके कारण बच्चे की उंगलियों में चुभन हो रही थी। पैर से जूता निकालने के बाद ही दर्द कम हुआ और बच्चे ने रोना बंद किया।
दादाजी अपनी मित्र मंडली के संग शाम को अपने घर में पोते के बारे में चर्चा करने के बाद टी.व्ही. पर एक आतंकवादी घटना से संबंधित समाचार देख रहे थे। समाचार के अंत में दादाजी बोल पडे कि- ' आतंकवाद भी इसी तरह इस देश के जूते में एक कंकड की तरह घुसा हुआ है।' एक मित्र ने प्रत्युत्तर में कहा कि जब तक कंकड नहीं निकलेगा चुभन होती ही रहेगी। दूसरे मित्र ने सहज भाव से कहा कि जूता तो निकालो।
राम पटवा
एन-3, साकेत, बसंत पार्क कॉलोनी
महावीर नगर, न्यू पुरैना, रायपुर-6
आतंकवाद जूते में कन्कड़ शायद नहीं, कांच के धारदार टुकड़े की तरह है। पैर में घाव कर देने वाला कांच।
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